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अरहर / तुअर (Pigeon Pea) की खेती: किसानों के लिए सम्पूर्ण गाइड

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अरहर / तुअर (Pigeon Pea / Toor) क्या है?

अरहर/तुअर (Pigeon Pea) देश में उगाया जाता है पर कर किसान को ये जानना चाहिए की अरहर/तुअर (Pigeon Pea) क्या है ? अरहर/तुअर (Pigeon Pea), जिसे वैज्ञानिक रूप से कजनस कजान (Cajanus cajan) के नाम से भी जाना जाता है और यह फैबेसी (Fabaceae) कुल से संबंधित है। भारत में इसे तूर दाल (Toor Dal) के नाम से भी जाना जाता है। ।

भारतीय उपमहाद्वीप में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। यह प्रोटीन का एक बहुत हीं अच्छा स्रोत है और लाखों लोगों के रोज के खाने में शामिल है। ये न केवल हमलोगो के खाने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी सहायक है क्योंकि यह वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। भारत में यह खासतौर पर खड़ी फसल (standing crop) के रूप में खरीफ मौसम में उगाई जाती है।

अरहर/तुअर (Pigeon Pea / Toor) का महत्व (Importance of Pigeon Pea)

अरहर/तुअर (Pigeon Pea/Toor) भारत की प्रमुख दलहन फसल है और इसकी लोकप्रियता का मुख्य कारण इसके अंदर अधिक प्रोटीन की मात्रा है। इसका अनोखा स्वाद हर खाने वाले का दिल जीत लेता है। जो अरहर/तुअर (Pigeon Pea) को खाने के लिए एक महत्वपूर्ण भोजन बनाती है। इसके अलावा, इसकी की खेती और भी कई प्रकार से पर्यावरण को लाभ प्रदान करती है:

अरहर/तुअर (Pigeon Pea) के प्रकार/किस्में (Types/Varieties of Pigeon Pea):

भारत में इसकी अनेक किस्में उपलब्ध हैं। हर किस्मों की उपज के लिए मिट्टी के प्रकार और जलवायु अलग-अलग होती है। भारत में अरहर/तुअर (Pigeon Pea) मुख्य रूप से उनकी परिपक्वता अवधि के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है:

शीघ्र पकने वाली किस्में (Early Maturing Varieties)

ये किस्में 120-150 दिनों में परिपक्व हो जाती हैं और अक्सर दोहरी फसल प्रणाली (double cropping system) में उपयोग की जाती हैं।

किस्म का नामविवरण
ICPL 88039 (आशा)यह एक उच्च उपज देने वाली किस्म है जो सूखे के प्रति सहिष्णु है।
UPAS 120यह भी एक लोकप्रिय किस्म है जो जल्दी परिपक्व होती है।
पूसा अगेतीउत्तर भारत के लिए उपयुक्त।
ICPL 87 (लक्ष्मी)कर्नाटक और महाराष्ट्र के लिए अच्छी।

और प्रजातियों की पूरी सूची सरकारी वेबसाइट पर देखें

मध्यम अवधि की किस्में (Medium Duration Varieties)

इन किस्मों को परिपक्व होने में 150-180 दिन लगते हैं।

किस्म का नामविवरण
ICPL 87119 (आशा)यह भी एक व्यापक रूप से उगाई जाने वाली किस्म है।
मालवीय अरहर 1 (एमए-1)उत्तरी मैदानों के लिए उपयुक्त।
बहारउत्तर प्रदेश और बिहार के लिए अनुशंसित।
एनडीए-1 (NDA-1)इसकी पैदावार अच्छी होती है।

देर से पकने वाली किस्में (Late Maturing Varieties)

ये किस्में 180-250 दिनों में परिपक्व होती हैं और अक्सर उन क्षेत्रों में उगाई जाती हैं जहाँ फसल का मौसम लंबा होता है।

किस्म का नामविवरण
बीडीएन 2 (BDN 2)महाराष्ट्र के लिए उपयुक्त।
टीएटी 10 (TAT 10)उत्तर भारत के लिए अच्छी।
जेए-4 (JA-4)यह भी एक लोकप्रिय किस्म है।

अरहर/तुअर (Pigeon Pea) के लिए उपयुक्त मिट्टी (Suitable Soil for Pigeon Pea)

यह एक कठोर (बड़े दाने वाली) फसल है जो विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है, लेकिन कुछ विशेष मिट्टी की विशेषताएं बेहतर उपज के लिए महत्वपूर्ण हैं:

अरहर/तुअर (Pigeon Pea) के लिए उपयुक्त: मिट्टी का प्रकार (Soil Type)

अरहर/तुअर (Pigeon Pea) के लिए उपयुक्त: मिट्टी की विशेषताएं (Soil Characteristics)

अरहर/तुअर (Pigeon Pea) के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान (Suitable Climate and Temperature for Pigeon Pea)

यह एक उष्णकटिबंधीय फसल है और इसे गर्म और शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। तीन चीजें इसे प्रभावित करती हैं।

  1. वर्षा (Rainfall): इसको 600-1000 मिमी वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। यह फसल सूखे के प्रति अपेक्षाकृत सहिष्णु है, लेकिन फूल आने और फली बनने के समय पर्याप्त नमी आवश्यक है। अत्यधिक वर्षा, विशेष रूप से फूल आने के दौरान, फूलों के गिरने और रोगों के प्रसार को बढ़ावा दे सकती है।
  2. तापमान (Temperature): फसल के लिए आदर्श तापमान 20°C से 30°C के बीच होता है। अंकुरण के लिए 25°C से 30°C तापमान सबसे अच्छा होता है। फूल आने और फली बनने के समय उच्च तापमान (35°C से अधिक) उपज को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।
  3. सूर्य का प्रकाश (Sunlight): अच्छी उपज के लिए भरपूर धूप की आवश्यकता होती है।

खेत की तैयारी (Land Preparation)

खेत की तैयारी के लिए आधुनिक मशीन का इस्तेमाल अच्छा रहता है। इससे श्रम, समय और लागत तीनो का फायदा होता है।

बुवाई और प्रबंधन (Sowing and Management)

खेत की तैयारी (Field Preparation)

अरहर/तुअर (Pigeon Pea) की खेती के लिए खेत को अच्छी तरह से जोतकर तैयार करना चाहिए ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। अंतिम जुताई के समय 10-15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट का प्रयोग करें। जिससे मिट्टी की उर्वरक शक्ति बढ़ेगी और उपज अधिक होगा।

बुवाई का समय (Sowing Time)

भारत में, खरीफ फसल के रूप में, इसकी बुवाई आमतौर पर जून के मध्य से जुलाई के मध्य तक की जाती है, जो मानसून की शुरुआत पर निर्भर करता है।जहाँ सिचाई की उत्तम व्यवस्था वहाँ किसान अगात फसल भाई लगते हैं।

बुवाई की विधि (Sowing Method)

बीज दर (Seed Rate)

पोषक तत्व प्रबंधन (Nutrient Management)

किसी भी पोषक को देने से पहले हमें मिट्टी की जाँच अच्छे से करनी चाहिए। इससे पता चलता है की मिट्टी में कौन कौन से पोषक की कमी है और कौन सा पोषक तत्व कितनी मात्रा में देना है।

बीज उपचार और जैविक उपाय (Seed Treatment and Bio Solutions)

जिस तरह से फसल बोने से पहले खेत तैयार किया जाता है, उसी तरह से बीज को बोने से पहले बीज को उपचारित करना चाहिए। इससे बीज का अंकुरण अनुपात बढ़ता है। बीज उपचार का तरीका निचे दिया गया है।

खरपतवार नियंत्रण (Weed Control)

खरपतवार नियंत्रण काफी जरुरी है क्युकी खरपतवार इसकी उपज को काफी कम कर सकते हैं।

अरहर/तुअर (Pigeon Pea) के प्रमुख रोग और उनका नियंत्रण (Major Diseases of Pigeon Pea and Their Control)

यह कई रोगों के प्रति संवेदनशील होती है, जो उपज को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। हमेशा बीज का चुनाव जलवायु और मिट्टी के जाँच के बाद करें। इससे फसल में रोग लगने की सम्भावना काम हो जाती है।

क्रमरोग / कीट का नामलक्षणनियंत्रण उपाय
1.उकठा / विल्ट (Wilt)पौधे मुरझा जाते हैं, पत्तियों का पीला पड़ना, तने का आंतरिक भाग काला पड़ना।– प्रतिरोधी किस्में: BDN-2, ICPL 88039, Maruti
– फसल चक्र अपनाएं
– स्वस्थ बीज का उपयोग
– बीजोपचार: ट्राइकोडर्मा @4g/kg या कार्बेन्डाजिम @2g/kg बीज
2.फाइटोफ्थोरा ब्लाइट (Phytophthora Blight)पत्तियों पर पानी जैसे धब्बे, जो बाद में भूरे हो जाते हैं; तने पर गहरे भूरे धब्बे, तना गलना।– जल निकासी व्यवस्था करें
– प्रतिरोधी किस्में लगाएं
– फफूंदनाशक: मेटालैक्सिल + मैनकोजेब का छिड़काव करें
3.बंजर मोजेक रोग (Sterility Mosaic Disease)पत्तियों का छोटा और विकृत होना, फूल न आना, पौधे का बाँझ होना; एसरिया माइट द्वारा फैलता है।– प्रतिरोधी किस्में: बहार, ICPL 88039
– माइट नियंत्रण हेतु कीटनाशकों का प्रयोग
– शुरुआती बुवाई करें
4.फली छेदक (Pod Borer)फलियों को छेदकर अंदर के दानों को खा जाते हैं, जिससे भारी नुकसान होता है।– जैविक नियंत्रण: फेरोमोन ट्रैप
– कीटनाशक: इमामेक्टिन बेंजोएट या क्लोरेंट्रानिलिप्रोल
– शुरुआती बुवाई से बचाव

कटाई और उपज (Harvesting and Yield)

भारत के प्रमुख अरहर/तुअर (Pigeon Pea) उत्पादक राज्य (Major Pigeon Pea Producing States in India)

भारत दुनिया में अरहर/तुअर (Pigeon Pea) का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है। प्रमुख उत्पादक राज्य इस प्रकार हैं:

अरहर/तुअर (Pigeon Pea) के अन्य लाभ (Other Benefits of Pigeon Pea)

अरहर/तुअर (Pigeon Pea) के बहुत सारे अन्य लाभ हैं कुछ निम्नलिखित है :-

अरहर/तुअर (Pigeon Pea) की खेती पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (Frequently Asked Questions on Pigeon Pea Farming – FAQs)

अरहर की बुआई कब करनी चाहिए?

👉 जून से जुलाई के बीच

क्या अरहर जैविक खेती के लिए उपयुक्त है?

👉 हां, अरहर जैविक तरीके से भी सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है।

अरहर की उपज को कैसे बढ़ाया जा सकता है?

👉 HYV बीज, संतुलित खाद, रोग नियंत्रण और समय पर सिंचाई से बढ़ाया जा सकता है

अरहर का बाजार भाव क्या होता है?

👉 मंडी दर ₹6000-₹8000 प्रति क्विंटल (स्थान के अनुसार बदलता है)

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