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अरहर / तुअर (Pigeon Pea) क्या है?
अरहर/तुअर (Pigeon Pea) पे देश में उगाया जाता है पर कर किसान को ये जानना चाहिए की अरहर/तुअर (Pigeon Pea) क्या है ? अरहर/तुअर (Pigeon Pea), जिसे वैज्ञानिक रूप से कजनस कजान (Cajanus cajan) के नाम से भी जाना जाता है और यह फैबेसी (Fabaceae) कुल से संबंधित है। भारत में इसे तूर दाल (Toor Dal) के नाम से भी जाना जाता है। । भारतीय उपमहाद्वीप में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। यह प्रोटीन का एक बहुत हीं अच्छा स्रोत है और लाखों लोगों के रोज के खाने में शामिल है। अरहर/तुअर (Pigeon Pea) न केवल हमलोगो के खाने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी सहायक है क्योंकि यह वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। भारत में यह खासतौर पर खड़ी फसल (standing crop) के रूप में खरीफ मौसम में उगाई जाती है।
अरहर/तुअर (Pigeon Pea) का महत्व (Importance of Pigeon Pea)
अरहर/तुअर (Pigeon Pea) भारत की प्रमुख दलहन फसल है और इसकी लोकप्रियता का मुख्य कारण इसके अंदर अधिक प्रोटीन की मात्रा है। इसका अनोखा स्वाद हर खाने वाले का दिल जीत लेता है। जो अरहर/तुअर (Pigeon Pea) को खाने के लिए एक महत्वपूर्ण भोजन बनाती है। इसके अलावा, अरहर/तुअर (Pigeon Pea) की खेती और भी कई प्रकार से पर्यावरण को लाभ प्रदान करती है:
- मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि: यह एक फलीदार फसल है और फलीदार फसल होने के कारण जड़ों में नाइट्रोजन-स्थिरीकरण करने वाले बैक्टीरिया को सुरक्षित रखती है, जिससे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है और रासायनिक उर्वरकों (खाद) पर निर्भरता कम होती है।
- मृदा संरक्षण: अरहर/तुअर (Pigeon Pea) के पौधों की लम्बाई ५-६ फ़ीट तक हो सकती है इसकी गहरी जड़ें मिट्टी को बंधे रखती है जिससे मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद करती हैं।
- फसल विविधीकरण: अरहर/तुअर (Pigeon Pea) को विभिन्न फसल प्रणालियों में आसानी से शामिल किया जाता है, जिससे किसानों को बेहतर आय प्राप्त करने में मदद मिलती है और बाजार में हमेशा मांग में भी रहता है।
अरहर/तुअर (Pigeon Pea) के प्रकार/किस्में (Types/Varieties of Pigeon Pea):
भारत में अरहर/तुअर (Pigeon Pea) की अनेक किस्में उपलब्ध हैं। हर किस्मों की उपज के लिए मिट्टी के प्रकार और जलवायु अलग-अलग होती है। भारत में अरहर/तुअर (Pigeon Pea) मुख्य रूप से उनकी परिपक्वता अवधि के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है:
शीघ्र पकने वाली किस्में (Early Maturing Varieties)
अरहर/तुअर (Pigeon Pea) ये किस्में 120-150 दिनों में परिपक्व हो जाती हैं और अक्सर दोहरी फसल प्रणाली (double cropping system) में उपयोग की जाती हैं।
किस्म का नाम | विवरण |
---|---|
ICPL 88039 (आशा) | यह एक उच्च उपज देने वाली किस्म है जो सूखे के प्रति सहिष्णु है। |
UPAS 120 | यह भी एक लोकप्रिय किस्म है जो जल्दी परिपक्व होती है। |
पूसा अगेती | उत्तर भारत के लिए उपयुक्त। |
ICPL 87 (लक्ष्मी) | कर्नाटक और महाराष्ट्र के लिए अच्छी। |
मध्यम अवधि की किस्में (Medium Duration Varieties)
इन किस्मों को परिपक्व होने में 150-180 दिन लगते हैं।
किस्म का नाम | विवरण |
---|---|
ICPL 87119 (आशा) | यह भी एक व्यापक रूप से उगाई जाने वाली किस्म है। |
मालवीय अरहर 1 (एमए-1) | उत्तरी मैदानों के लिए उपयुक्त। |
बहार | उत्तर प्रदेश और बिहार के लिए अनुशंसित। |
एनडीए-1 (NDA-1) | इसकी पैदावार अच्छी होती है। |
देर से पकने वाली किस्में (Late Maturing Varieties)
ये किस्में 180-250 दिनों में परिपक्व होती हैं और अक्सर उन क्षेत्रों में उगाई जाती हैं जहाँ फसल का मौसम लंबा होता है।
किस्म का नाम | विवरण |
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बीडीएन 2 (BDN 2) | महाराष्ट्र के लिए उपयुक्त। |
टीएटी 10 (TAT 10) | उत्तर भारत के लिए अच्छी। |
जेए-4 (JA-4) | यह भी एक लोकप्रिय किस्म है। |
Note:- प्रत्येक क्षेत्र के लिए उपयुक्त किस्म का चयन वहां की मिट्टी, जलवायु और कृषि पद्धतियों के आधार पर करना चाहिए।
अरहर/तुअर (Pigeon Pea) के लिए उपयुक्त मिट्टी (Suitable Soil for Pigeon Pea)
अरहर/तुअर (Pigeon Pea) एक कठोर फसल है जो विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है, लेकिन कुछ विशेष मिट्टी की विशेषताएं बेहतर उपज के लिए महत्वपूर्ण हैं:
अरहर/तुअर (Pigeon Pea) के लिए उपयुक्त: मिट्टी का प्रकार (Soil Type)
- दोमट मिट्टी (Loamy Soil): हल्की से मध्यम दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है क्योंकि इसमें पानी की निकासी अच्छी होती है और पोषक तत्वों को धारण करने की क्षमता भी होती है।
- रेतीली दोमट मिट्टी (Sandy Loam Soil): इन मिट्टियों में भी अच्छी पैदावार मिलती है, बशर्ते पर्याप्त नमी और पोषक तत्व उपलब्ध हों।
- काली मिट्टी (Black Soil): महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में काली मिट्टी में भी अरहर/तुअर (Pigeon Pea) की खेती सफलतापूर्वक की जाती है।
अरहर/तुअर (Pigeon Pea) के लिए उपयुक्त: मिट्टी की विशेषताएं (Soil Characteristics)
- जल निकासी (Drainage): अरहर/तुअर (Pigeon Pea) जलभराव के प्रति संवेदनशील है, इसलिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी आवश्यक है। यदि मिट्टी में पानी जमा होता है, तो जड़ें सड़ सकती हैं और फसल को नुकसान हो सकता है।
- पीएच मान (pH Value): अरहर/तुअर (Pigeon Pea) के लिए आदर्श पीएच मान 6.0 से 7.5 के बीच होता है। हालांकि, यह थोड़ी अम्लीय या थोड़ी क्षारीय मिट्टी में भी उग सकती है।
- कार्बनिक पदार्थ (Organic Matter): कार्बनिक पदार्थ से भरपूर मिट्टी पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करती है और मिट्टी की संरचना में सुधार करती है।
- गहराई (Depth): अरहर/तुअर (Pigeon Pea) की जड़ें गहरी होती हैं, इसलिए 60-90 सेमी तक गहरी मिट्टी फसल के लिए आदर्श होती है ताकि जड़ें ठीक से विकसित हो सकें।
अरहर/तुअर (Pigeon Pea) के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान (Suitable Climate and Temperature for Pigeon Pea)
अरहर/तुअर (Pigeon Pea) एक उष्णकटिबंधीय फसल है और इसे गर्म और शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। तीन चीजें इसे प्रभावित करती हैं।
- वर्षा (Rainfall): अरहर/तुअर (Pigeon Pea) को 600-1000 मिमी वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। यह फसल सूखे के प्रति अपेक्षाकृत सहिष्णु है, लेकिन फूल आने और फली बनने के समय पर्याप्त नमी आवश्यक है। अत्यधिक वर्षा, विशेष रूप से फूल आने के दौरान, फूलों के गिरने और रोगों के प्रसार को बढ़ावा दे सकती है।
- तापमान (Temperature): फसल के लिए आदर्श तापमान 20°C से 30°C के बीच होता है। अंकुरण के लिए 25°C से 30°C तापमान सबसे अच्छा होता है। फूल आने और फली बनने के समय उच्च तापमान (35°C से अधिक) उपज को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।
- सूर्य का प्रकाश (Sunlight): अच्छी उपज के लिए भरपूर धूप की आवश्यकता होती है।
खेत की तैयारी (Land Preparation)
बुवाई और प्रबंधन (Sowing and Management)
खेत की तैयारी (Field Preparation)
अरहर/तुअर (Pigeon Pea) की खेती के लिए खेत को अच्छी तरह से जोतकर तैयार करना चाहिए ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। अंतिम जुताई के समय 10-15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट का प्रयोग करें। जिससे मिट्टी की उर्वरक शक्ति बढ़ेगी और उपज अधिक होगा।
बुवाई का समय (Sowing Time)
भारत में, खरीफ फसल के रूप में, अरहर/तुअर (Pigeon Pea) की बुवाई आमतौर पर जून के मध्य से जुलाई के मध्य तक की जाती है, जो मानसून की शुरुआत पर निर्भर करता है।जहाँ सिचाई की उत्तम व्यवस्था वहाँ किसान अगात फसल भाई लगते हैं।
बुवाई की विधि (Sowing Method)
- पंक्ति में बुवाई (Row Sowing): यह सबसे अनुशंसित विधि है। पंक्तियों के बीच की दूरी 60-75 सेमी और पौधों के बीच की दूरी 15-20 सेमी होनी चाहिए। यह विधि खरपतवार नियंत्रण और अंतर-खेती कार्यों में आसानी प्रदान करती है। इस विधि से बुआई करने से निराई-गुराई करने में मदद मिलती है जिससे फसल का विकास अच्छी तरह होती है।
- सीड ड्रिल / सीड प्लांटर (Seed Drill /Seed Planter): बीज से बीज की दुरी और पंक्ति से पंक्ति दुरी के लिए आवश्यक यंत्र है। यह ट्रेक्टर और हाथ और बैल से चलने वाला बाजार में उपलब्ध है।
- बीज की गहराई (Seed Depth): बीज को 4-5 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए।
बीज दर (Seed Rate)
- शीघ्र पकने वाली किस्में: 20-25 किग्रा प्रति हेक्टेयर।
- मध्यम पकने वाली किस्में: 12-15 किग्रा प्रति हेक्टेयर।
- देर से पकने वाली किस्में: 12-15 किग्रा प्रति हेक्टेयर।
पोषक तत्व प्रबंधन (Nutrient Management)
किसी भी पोषक को देने से पहले हमें मिट्टी की जाँच अच्छे से करनी चाहिए। इससे पता चलता है की मिट्टी में कौन कौन से पोषक की कमी है और कौन सा पोषक तत्व कितनी मात्रा में देना है।
- नाइट्रोजन (Nitrogen): अरहर/तुअर (Pigeon Pea) नाइट्रोजन स्थिरीकरण करती है, इसलिए शुरुआती विकास के लिए केवल 20 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।
- फॉस्फोरस (Phosphorus): सामान्यतः 40-60 किग्रा फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह जड़ विकास और फली के निर्माण में मदद करता है।
- पोटाश (Potash): यदि मिट्टी में कमी हो, तो 20 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर का प्रयोग किया जा सकता है।
- सूक्ष्म पोषक तत्व (Micronutrients): मिट्टी जिंक और सल्फर की कमी होने पर उनका भी प्रयोग किया जाना चाहिए।
बीज उपचार और जैविक उपाय (Seed Treatment and Bio Solutions)
जिस तरह से फसल बोने से पहले खेत तैयार किया जाता है, उसी तरह से बीज को बोने से पहले बीज को उपचारित करना चाहिए। इससे बीज का अंकुरण अनुपात बढ़ता है। बीज उपचार का तरीका निचे दिया गया है।
- ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) 4 ग्राम प्रति किलो बीज
- राइजोबियम कल्चर (Rhizobium culture)
- नीम केक का उपयोग: 150-200 किलो प्रति हेक्टेयर
खरपतवार नियंत्रण (Weed Control)
खरपतवार नियंत्रण काफी जरुरी है क्युकी खरपतवार अरहर/तुअर (Pigeon Pea) की उपज को काफी कम कर सकते हैं।
- हाथ से निराई (Manual Weeding): बुवाई के 25-30 दिनों और 45-50 दिनों बाद दो निराई की सलाह दी जाती है।
- रसायनिक खरपतवारनाशी (Chemical Herbicides): पेंडिमेथालिन (Pendimethalin) 1.0-1.5 किग्रा सक्रिय संघटक प्रति हेक्टेयर का बुवाई के तुरंत बाद, लेकिन अंकुरण से पहले छिड़काव किया जा सकता है। अंकुरण के बाद छिड़काव करने से फसल पे असर पड़ सकता है।
अरहर/तुअर (Pigeon Pea) के प्रमुख रोग और उनका नियंत्रण (Major Diseases of Pigeon Pea and Their Control)
अरहर/तुअर (Pigeon Pea) कई रोगों के प्रति संवेदनशील होती है, जो उपज को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। हमेशा बीज का चुनाव जलवायु और मिट्टी के जाँच के बाद करें। इससे फसल में रोग लगने की सम्भावना काम हो जाती है।
क्रम | रोग / कीट का नाम | लक्षण | नियंत्रण उपाय |
---|---|---|---|
1. | उकठा / विल्ट (Wilt) | पौधे मुरझा जाते हैं, पत्तियों का पीला पड़ना, तने का आंतरिक भाग काला पड़ना। | – प्रतिरोधी किस्में: BDN-2, ICPL 88039, Maruti – फसल चक्र अपनाएं – स्वस्थ बीज का उपयोग – बीजोपचार: ट्राइकोडर्मा @4g/kg या कार्बेन्डाजिम @2g/kg बीज |
2. | फाइटोफ्थोरा ब्लाइट (Phytophthora Blight) | पत्तियों पर पानी जैसे धब्बे, जो बाद में भूरे हो जाते हैं; तने पर गहरे भूरे धब्बे, तना गलना। | – जल निकासी व्यवस्था करें – प्रतिरोधी किस्में लगाएं – फफूंदनाशक: मेटालैक्सिल + मैनकोजेब का छिड़काव करें |
3. | बंजर मोजेक रोग (Sterility Mosaic Disease) | पत्तियों का छोटा और विकृत होना, फूल न आना, पौधे का बाँझ होना; एसरिया माइट द्वारा फैलता है। | – प्रतिरोधी किस्में: बहार, ICPL 88039 – माइट नियंत्रण हेतु कीटनाशकों का प्रयोग – शुरुआती बुवाई करें |
4. | फली छेदक (Pod Borer) | फलियों को छेदकर अंदर के दानों को खा जाते हैं, जिससे भारी नुकसान होता है। | – जैविक नियंत्रण: फेरोमोन ट्रैप – कीटनाशक: इमामेक्टिन बेंजोएट या क्लोरेंट्रानिलिप्रोल – शुरुआती बुवाई से बचाव |
कटाई और उपज (Harvesting and Yield)
- कटाई का समय: अरहर/तुअर (Pigeon Pea) की कटाई तब की जाती है जब फलियां सूख जाएं और दाने कठोर हो जाएं। पत्तियों का पीला पड़ना और गिरना भी कटाई का संकेत है।
- कटाई की विधि: पौधे को या तो हाथ से काटा जा सकता है या मशीन से।
- सुखाना: कटाई के बाद, फलियों को धूप में अच्छी तरह सुखाया जाता है ताकि नमी कम हो और भंडारण के दौरान फफूंद न लगे।
- थ्रेसिंग: सूखी फलियों को पीटकर या थ्रेशर का उपयोग करके दानों को अलग किया जाता है।
- उपज (Yield): उचित कृषि पद्धतियों और अच्छी किस्मों के साथ, अरहर/तुअर (Pigeon Pea) की औसत उपज 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है, जबकि कुछ उन्नत किस्में 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक भी उपज दे सकती हैं।
भारत के प्रमुख अरहर/तुअर (Pigeon Pea) उत्पादक राज्य (Major Pigeon Pea Producing States in India)
भारत दुनिया में अरहर/तुअर (Pigeon Pea) का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है। प्रमुख उत्पादक राज्य इस प्रकार हैं:
- महाराष्ट्र (Maharashtra): यह भारत में अरहर/तुअर (Pigeon Pea) का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।
- मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh): दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य।
- उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh): उत्तरी भारत में एक महत्वपूर्ण उत्पादक राज्य।
- कर्नाटक (Karnataka): दक्षिणी भारत में प्रमुख उत्पादक।
- गुजरात (Gujarat): पश्चिमी भारत में महत्वपूर्ण।
- ओडिशा (Odisha): पूर्वी भारत में भी इसकी खेती होती है।
- बिहार (Bihar): यहाँ भी अरहर/तुअर (Pigeon Pea) की अच्छी पैदावार होती है।
- राजस्थान (Rajasthan): कुछ क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है।
- आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) और तेलंगाना (Telangana): इन राज्यों में भी अरहर/तुअर (Pigeon Pea) का उत्पादन होता है।
अरहर/तुअर (Pigeon Pea) के अन्य लाभ (Other Benefits of Pigeon Pea)
अरहर/तुअर (Pigeon Pea) के बहुत सारे अन्य लाभ हैं कुछ निम्नलिखित है :-
- पशु चारा (Animal Fodder): अरहर/तुअर (Pigeon Pea) की पत्तियों और तनों का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जा सकता है।
- हरी खाद (Green Manure): इसे हरी खाद के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता में और सुधार होता है।
- जलाऊ लकड़ी (Firewood): पौधे के सूखे डंठल का उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में जलाऊ लकड़ी के रूप में किया जाता है।
- पोषण मूल्य (Nutritional Value): यह प्रोटीन, आहार फाइबर, फोलेट और अन्य आवश्यक खनिजों से भरपूर है, जो इसे एक पौष्टिक भोजन बनाता है।
अरहर/तुअर (Pigeon Pea) की खेती पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (Frequently Asked Questions on Pigeon Pea Farming – FAQs)
अरहर की बुआई कब करनी चाहिए?
👉 जून से जुलाई के बीच
क्या अरहर जैविक खेती के लिए उपयुक्त है?
👉 हां, अरहर जैविक तरीके से भी सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है।
अरहर की उपज को कैसे बढ़ाया जा सकता है?
👉 HYV बीज, संतुलित खाद, रोग नियंत्रण और समय पर सिंचाई से बढ़ाया जा सकता है
अरहर का बाजार भाव क्या होता है?
👉 मंडी दर ₹6000-₹8000 प्रति क्विंटल (स्थान के अनुसार बदलता है)