BIHAR AGRO

चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण (Gram Diseases and Control)

5/5 - (1 vote)
चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण ,Gram Diseases and Control,

चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण (Gram Diseases and Control): चना (gram/chickpea) भारत की प्रमुख रबी फसलों में से एक प्रमुख दलहनी फसल है। यह फसल प्रोटीन से भरपूर होती है इसलिए इसे प्रोटीन का एक सस्ता और बेहतरीन स्रोत मना गया है और किसान भाइयों के लिए कम लागत में अच्छी कमाई देने वाली फसल भी है। लेकिन हर साल पर्यावरण की अनियमितता (Climate Change) के कारण चना में कई तरह के रोग लग जाते हैं, जिससे पैदावार भारी मात्रा में कम हो जाती है।

यदि इन रोगों का सही समय पर प्रबंधन न किया जाए, तो किसान को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए किसानों के लिए चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण (Gram Diseases and Control) की सही जानकारी होना सबसे जरूरी है।

आज हमलोग चने की फसल को प्रभावित करने वाले मुख्य रोगों, उनके लक्षणों और सबसे प्रभावी नियंत्रण के उपायों के बारे में आसान भाषा में चर्चा करेंगे।

चने की फसल का महत्व (Importance of Gram Crop)

चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण (Gram Diseases and Control): चना न केवल किसानों की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, बल्कि यह मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभाता है।

चना का महत्वविवरण
पोषक तत्व20–22% प्रोटीन होने से दलहन में सबसे पौष्टिक, प्रोटीन, फाइबर और कार्बोहाइड्रेट का उत्कृष्ट स्रोत।
आर्थिक लाभभारत की प्रमुख दलहनी फसल, किसानों को अच्छा मूल्य दिलाती है।
कम लागत वाली खेतीसिंचाई और खाद कम लगती है
मिट्टी सुधारइसकी जड़ें राइजोबियम जीवाणु के साथ सहजीवी संबंध बनाकर नाइट्रोजन स्थिरीकरण करती हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
अच्छी मार्केट डिमांडदाल, बेसन व उद्योगों में लगातार मांग
सूखा सहनशीलकम वर्षा में भी अच्छी उपज
पशु चाराचने के डंठल (भूसा) पशुओं के लिए पौष्टिक चारा होते हैं।

चना में लगने वाले प्रमुख रोग और उनके लक्षण

चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण (Gram Diseases and Control): चने की फसल में मुख्य रूप से तीन तरह के रोग देखने को मिलते हैं: कवक (फंगस) जनित रोग, जीवाणु (बैक्टीरिया) जनित रोग और विषाणु (वायरस) जनित रोग

1. उकठा या विल्ट रोग (Fusarium Wilt)

चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण (Gram Diseases and Control): यह चना में लगने वाला सबसे विनाशकारी और आम रोग है। यह एक फफूंदी जनित रोग है, जो फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम (Fusarium oxysporum) नामक कवक के कारण होता है।

लक्षण:

नियंत्रण:

2. झुलसा (चित्ती रोग) या एस्कोकाइटा ब्लाइट (Ascochyta Blight)

चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण (Gram Diseases and Control): यह रोग मुख्य रूप से ठंडे और नम मौसम में तेजी से फैलता है। यह भी फफूंदी (एस्कोकाइटा रैबी, Ascochyta rabiei) के कारण होता है।

लक्षण:

नियंत्रण:

3. झुलसा रोग (रस्ट) या गेरुआ रोग (Rust/Dry Root Rot / Rhizoctonia)

चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण (Gram Diseases and Control): यह रोग फसल पकने के समय यानी फरवरी-मार्च के आसपास दिखाई देता है, जब तापमान थोड़ा बढ़ जाता है।

लक्षण:

नियंत्रण:

4. शुष्क मूल विगलन या रूट रॉट (Dry Root Rot)

चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण (Gram Diseases and Control): यह रोग अक्सर गर्म और शुष्क मौसम में और कम नमी वाली मिट्टी में लगता है। यह राइजोक्टोनिया बटाटीकोला (Rhizoctonia bataticola) नामक फफूंदी के कारण होता है।

लक्षण:

नियंत्रण:

चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण (Gram Diseases and Control) Gram Disease Management

चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण (Gram Diseases and Control) के लिए एक एकीकृत रोग प्रबंधन (Integrated Disease Management – IDM) की रणनीति अपनानी चाहिए, जिसमें सांस्कृतिक, रासायनिक और जैविक उपाय शामिल हों। जिससे Gram Disease Management किया जा सके।

1. सांस्कृतिक नियंत्रण (Cultural Control)

चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण (Gram Diseases and Control): यह सबसे महत्वपूर्ण और सस्ता नियंत्रण उपाय है:

2. जैविक नियंत्रण (Biological Control)

3. रासायनिक नियंत्रण (Chemical Control)

चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण (Gram Diseases and Control): रोग के लक्षण दिखते ही तुरंत रासायनिक नियंत्रण उपाय अपनाएं:

चना में कीट-रोग मिश्रित समस्या (Insect-Disease Complex)

चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण (Gram Diseases and Control): अक्सर चना की फसल में कीट और रोग दोनों एक साथ लगते हैं, जिससे नुकसान और बढ़ जाता है।

नियंत्रण:

चना रोग नियंत्रण के लिए जरूरी टिप्स

सरकारी योजनाएँ और किसान क्रेडिट कार्ड (Government Schemes and KCC)

चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण (Gram Diseases and Control): खेती में मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए किसान सरकारी योजनाओं का भी लाभ उठा सकते हैं। ये योजनाएँ खेती की लागत को कम करने और पूंजी (Capital) की व्यवस्था करने में मदद करती हैं।

चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण (Gram Diseases and Control): भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा चलाई जाने वाली कई योजनाएँ हैं, जो किसानों को सब्ज़ी और बागवानी (Horticulture) फसलों के लिए सब्सिडी (Subsidy) देती हैं।

  1. राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM): इस योजना के तहत, आलू की खेती के लिए उन्नत बीज, प्लांटर मशीन, कोल्ड स्टोरेज बनाने और माइक्रो-इरिगेशन सिस्टम लगाने पर सब्सिडी मिल सकती है।
  2. प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN): यह योजना सीधे किसानों के खाते में सालाना ₹6,000 की वित्तीय सहायता देती है, जिसका उपयोग किसान खेती के छोटे-मोटे ख़र्चों के लिए कर सकते हैं।

चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण (Gram Diseases and Control): सबसे ज़रूरी है किसान क्रेडिट कार्ड (Kisan Credit Card – KCC)। केसीसी के ज़रिए किसान बहुत कम ब्याज दर पर (लगभग 4% प्रति वर्ष) खेती के लिए लोन (Loan) ले सकते हैं। इस पैसे का उपयोग आलू के बीज, खाद, कीटनाशक खरीदने या बुवाई के ख़र्चों को पूरा करने के लिए किया जा सकता है। इससे किसान को तुरंत पैसा उधार लेने या अपनी बचत को ख़र्च करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। किसान को हमेशा अपने क्षेत्र के कृषि विभाग या बागवानी विभाग से संपर्क करके नवीनतम योजनाओं और सब्सिडी के बारे में जानकारी लेते रहना चाहिए।

FAQs: चना में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण (Gram Diseases and Control) पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

What is the most effective way to prevent Fusarium wilt in chickpea?
(चने में विल्ट रोग को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका क्या है?)

सबसे प्रभावी रणनीति यह है कि बुवाई से पहले प्रतिरोधी किस्मों (Resistant varieties) (उदाहरण के लिए, जेजी-11, पूसा-256) का उपयोग, कार्बेन्डाजिम (Carbendazim) जैसे फफूंदनाशक (fungicide) और ट्राइकोडर्मा विरिडी (Trichoderma viride) जैसे जैविक कारक (bio-agent) के साथ बीज उपचार (seed treatment) को मिलाया जाए।

How often should fungicides be sprayed to control Ascochyta Blight in gram?
(चने में एस्कोकाइटा ब्लाइट को नियंत्रित करने के लिए फफूंदनाशकों का छिड़काव कितनी बार करना चाहिए?)

फफूंदनाशक (Fungicide), जैसे मैनकोजेब (Mancozeb) या क्लोरोथालोनिल (Chlorothalonil), का छिड़काव (sprayed) पहले लक्षण दिखते ही तुरंत करना चाहिए और इसे हर 10 से 15 दिनों में दोहराना चाहिए, खासकर यदि मौसम ठंडा और नम (cool and wet) बना रहे।

Can root rot disease in chickpea be managed without chemical treatments?
(क्या चने में जड़ गलन रोग का प्रबंधन रासायनिक उपचार के बिना किया जा सकता है?)

हाँ, इसे अच्छी सांस्कृतिक क्रियाओं (cultural practices) का उपयोग करके महत्वपूर्ण रूप से प्रबंधित (managed) किया जा सकता है, जैसे जल जमाव (water logging) से बचने के लिए उचित खेत की जल निकासी (field drainage) बनाए रखना और मिट्टी जनित रोगजनक भार (soil-borne pathogen load) को कम करने के लिए 3-4 साल का फसल चक्र (crop rotation) अपनाना।

चना में उकठा रोग कैसे फैलता है?

उकठा रोग मुख्य रूप से फफूंद और संक्रमित मिट्टी के जरिए फैलता है। बीज उपचार इसका सबसे अच्छा समाधान है।

चना के चित्ती रोग को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका क्या है?

0.2% मैनकोजेब का स्प्रे और रोग-रोधी किस्मों का उपयोग सबसे कारगर तरीका है।

चना फसल में जड़ गलन का घरेलू इलाज क्या है?

ट्राइकोडर्मा + गोबर खाद का उपयोग एक प्राकृतिक और प्रभावी तरीका है।

चना में रोग लगने पर फसल कितने प्रतिशत घट जाती है?

अगर उपचार न किया जाए तो उत्पादन 40–70% तक कम हो सकता है।

ज्वार के खेती कैसे करें? (Sorghum Cultivation) – 10 आसान स्टेप्स में ज़्यादा उत्पादन और मुनाफ़ा

ज्वार के खेती कैसे करें? (Sorghum Cultivation) – 10 आसान स्टेप्स में ज़्यादा उत्पादन और मुनाफ़ा

ज्वार की फसल का महत्व (Importance of Sorghum)जलवायु और भूमि चयन (Climate & Soil Selection)खेत की तैयारी (Field Preparation)उन्नत किस्मों…

मटर की जैविक खेती (Organic Peas Farming): कम लागत में ज़्यादा मुनाफ़ा पाने का 100% देसी तरीका

मटर की जैविक खेती (Organic Peas Farming): कम लागत में ज़्यादा मुनाफ़ा पाने का 100% देसी तरीका

मटर की जैविक खेती क्या है? (What is Organic Peas Farming)खेत और मिट्टी की तैयारी (Soil Preparation for Organic Peas)बीज…

मटर की सिंचाई (Peas Irrigation): 5 आसान टिप्स से बढ़ाएं अपनी पैदावार!

मटर की सिंचाई (Peas Irrigation): 5 आसान टिप्स से बढ़ाएं अपनी पैदावार!

मटर की सिंचाई की आवश्यकता (Need for Peas Irrigation)मटर की सिंचाई का समय (Best Time for Peas Irrigation)सही सिंचाई विधि…

मटर की उन्नत किस्में (Varieties of Peas Seeds) – बेहतरीन विकल्प, ज्यादा पैदावार और पक्का मुनाफा

मटर की उन्नत किस्में (Varieties of Peas Seeds) – बेहतरीन विकल्प, ज्यादा पैदावार और पक्का मुनाफा

मटर की उन्नत किस्में क्या होती हैं? (What are Improved Varieties of Peas Seeds)मटर की बेहतरीन किस्में (Varieties of Peas…

अरहर के बीज (Pigeon Pea Seeds): उन्नत खेती और बंपर पैदावार की पूरी जानकारी

अरहर के बीज (Pigeon Pea Seeds): उन्नत खेती और बंपर पैदावार की पूरी जानकारी

अरहर के बीज क्या हैं? (What are Pigeon Pea Seeds?)अरहर के बीज का सही चुनाव (Right Selection of Pigeon Pea…

अरहर की सिंचाई कैसे करें? (Pigeon Pea Irrigation Guide) – 7 आसान स्टेप में ज़्यादा पैदावार

अरहर की सिंचाई कैसे करें? (Pigeon Pea Irrigation Guide) – 7 आसान स्टेप में ज़्यादा पैदावार

अरहर की सिंचाई का महत्व (Importance of Pigeon Pea Irrigation)अरहर की सिंचाई के मुख्य चरण (Critical Stages of Pigeon Pea…

Exit mobile version