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मटर की जैविक खेती (Organic Peas Farming): कम लागत में ज़्यादा मुनाफ़ा पाने का 100% देसी तरीका

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किसान भाइयों, आज के समय में खेती तभी फायदेमंद है जब लागत कम हो और फसल का दाम अच्छा मिले। ऐसे में मटर की जैविक खेती (Organic Peas Farming) किसानों के लिए एक बेहतरीन विकल्प बनकर उभरी है। जैविक मटर की बाजार में भारी मांग है, क्योंकि लोग अब ज़हर-मुक्त सब्ज़ी खाना चाहते हैं। मटर की जैविक खेती करने से न सिर्फ मिट्टी की सेहत सुधरती है, बल्कि लंबे समय तक उत्पादन भी बना रहता है।
इस लेख में हम मटर की जैविक खेती (Organic Peas Farming) की पूरी जानकारी जानेंगे, ताकि आप भी इसे अपनाकर अपनी आमदनी बढ़ा सकें।

मटर की जैविक खेती क्या है? (What is Organic Peas Farming)

मटर की जैविक खेती (Organic Peas Farming) वह खेती है जिसमें रासायनिक खाद, कीटनाशक और जहरीले स्प्रे का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसकी जगह गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, जीवामृत, नीम खली जैसे प्राकृतिक साधनों का उपयोग होता है।
मटर की जैविक खेती (Organic Peas Farming) से उगाई गई मटर स्वाद में बेहतर होती है और लंबे समय तक खराब नहीं होती। यही कारण है कि होटल, रेस्टोरेंट और बड़े शहरों में जैविक मटर की कीमत सामान्य मटर से ज्यादा मिलती है।
मटर की जैविक खेती अपनाने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और आने वाली फसलों को भी फायदा मिलता है।

खेत और मिट्टी की तैयारी (Soil Preparation for Organic Peas)

सफल मटर की जैविक खेती (Organic Peas Farming) के लिए खेत की सही तैयारी बेहद जरूरी है। मटर के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है, जिसमें जल निकास अच्छा हो।
खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें, ताकि पुराने कीट नष्ट हो जाएं। इसके बाद 2–3 जुताई देसी हल से करें। आखिरी जुताई में प्रति एकड़ 20–25 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालें।
जैविक मटर की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का pH 6.0–7.5 होना चाहिए।

बीज का चुनाव और जैविक उपचार (Seed Selection & Treatment)

मटर की जैविक खेती (Organic Peas Farming) में बीज की गुणवत्ता सबसे अहम होती है। हमेशा देशी या प्रमाणित जैविक बीज का चयन करें।
बुवाई से पहले बीज का जैविक उपचार ज़रूरी है। इसके लिए ट्राइकोडर्मा या बीजामृत का उपयोग करें। इससे बीज जनित रोगों से बचाव होता है।
एक एकड़ में लगभग 25–30 किलो बीज पर्याप्त होता है। सही बीज उपचार से अंकुरण अच्छा होता है और पौधे मजबूत बनते हैं, जिससे जैविक मटर की उपज बढ़ती है।

बुवाई का समय और तरीका (Sowing Time and Method)

मटर की जैविक खेती (Organic Peas Farming) में बुवाई का सही समय पैदावार को 30% तक बढ़ा सकता है। उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में इसकी बुवाई अक्टूबर के मध्य से नवंबर के अंत तक करना सबसे अच्छा रहता है। पहाड़ों में इसकी बुवाई मार्च-अप्रैल में की जाती है।

बुवाई के लिए कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 5 से 7 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बीज को मिट्टी में लगभग 2-3 इंच गहरा बोना चाहिए। जैविक तरीके में बीजों का उपचार ‘बीजामृत’ से करना सबसे अच्छा रहता है, जो मिट्टी से होने वाले रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है। यदि आप अगेती फसल ले रहे हैं, तो बीज की मात्रा थोड़ी अधिक (40-45 किलो प्रति एकड़) रखनी चाहिए।

सिंचाई और पोषण प्रबंधन (Irrigation & Nutrition Management)

मटर की जैविक खेती में ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती। पहली सिंचाई बुवाई के 20–25 दिन बाद करें। इसके बाद मौसम और मिट्टी के अनुसार 2–3 सिंचाई काफी होती है।
पोषण के लिए जीवामृत, घनजीवामृत या गोमूत्र घोल का छिड़काव करें। इससे पौधों की बढ़वार तेज होती है।
मटर की जैविक खेती (Organic Peas Farming) में संतुलित सिंचाई और जैविक पोषण से फसल स्वस्थ रहती है और उत्पादन बेहतर मिलता है।

जैविक खाद और पोषण प्रबंधन (Organic Fertilizer and Nutrient Management)

मटर की जैविक खेती (Organic Peas Farming) में रासायनिक यूरिया या डीएपी (DAP) का उपयोग वर्जित है। इसके बजाय, हम प्राकृतिक उर्वरकों का उपयोग करते हैं। मटर खुद एक दलहनी फसल है, इसलिए इसे नाइट्रोजन की कम जरूरत होती है। पोषण के लिए बुवाई के 25-30 दिन बाद ‘जीवामृत’ को सिंचाई के साथ देना चाहिए।

इसके अलावा, वेस्ट डीकंपोजर का उपयोग भी मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मदद करता है। यदि पौधों में पीलापन दिखे, तो गौमूत्र और पानी का घोल (1:10 का अनुपात) बनाकर स्प्रे करना चाहिए। इससे पौधों को तुरंत नाइट्रोजन और अन्य सूक्ष्म तत्व मिल जाते हैं। राख का छिड़काव करने से न केवल पोटाश की कमी पूरी होती है, बल्कि यह छोटे कीटों से भी फसल की रक्षा करता है।

रोग एवं कीट नियंत्रण (Disease and Pest Management)

मटर की फसल में मुख्य रूप से चूर्णिल आसिता (Powdery Mildew) और माहू (Aphids) का प्रकोप होता है। मटर की जैविक खेती (Organic Peas Farming) में हम ‘नीम के तेल’ या ‘नीम के काढ़े’ का स्प्रे करके इन कीटों को रोक सकते हैं। 5 लीटर गौमूत्र में 2 किलो नीम की पत्तियां उबालकर बनाया गया घोल एक बेहतरीन जैविक कीटनाशक है।

उकठा रोग (Wilt) से बचने के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी (Trichoderma Viride) को गोबर की खाद में मिलाकर मिट्टी में डालना चाहिए। इल्लियों (Pod Borers) के नियंत्रण के लिए खेत में ‘फेरोमोन ट्रैप’ या ‘बर्ड परचर’ (पक्षियों के बैठने के लिए डंडे) लगाएं, ताकि पक्षी कीड़ों को खा सकें। दशपर्णी अर्क का छिड़काव भी हर तरह के कीटों के लिए रामबाण इलाज है।

तुड़ाई, पैदावार और मुनाफा (Harvesting, Yield, and Profit)

मटर की तुड़ाई तब शुरू करनी चाहिए जब फलियां पूरी तरह से भर जाएं और उनका रंग गहरा हरा हो जाए। जैविक मटर की बाजार में बहुत मांग है। मटर की जैविक खेती (Organic Peas Farming) से प्रति एकड़ लगभग 30 से 50 क्विंटल हरी फलियां प्राप्त की जा सकती हैं।

यदि आप इसे सीधे ग्राहकों को या जैविक स्टोर पर बेचते हैं, तो आपको सामान्य मटर के मुकाबले 1.5 से 2 गुना अधिक दाम मिल सकते हैं। इसके अलावा, मटर की फसल के बाद जो अवशेष (बेल) बचते हैं, वे पशुओं के लिए पौष्टिक चारा होते हैं या उन्हें खेत में ही दबाकर शानदार हरी खाद बनाई जा सकती है। इस तरह, कम लागत में यह खेती किसानों के लिए एक मुनाफे का सौदा साबित होती है।

किसान भाइयों, आज के समय में रासायनिक खादों और कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग ने न केवल हमारी जमीन को बंजर बनाया है, बल्कि हमारे स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुँचाया है। ऐसे में मटर की जैविक खेती (Organic Peas Farming) एक वरदान साबित हो सकती है। मटर एक ऐसी फसल है जिसे हर घर में पसंद किया जाता है और बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। जैविक तरीके से उगाई गई मटर न केवल स्वाद में बेहतर होती है, बल्कि इसकी बाजार में कीमत भी सामान्य मटर से अधिक मिलती है।

इस लेख के माध्यम से हमने अपने किसान भाई को मटर की जैविक खेती (Organic Peas Farming) करने की पूरी जानकारी देने की कोसिस की है। हमारे किसान भाई इसे पढ़े और खेती से अधिक लाभ प्राप्त करें।

सरकारी योजनाएँ और किसान क्रेडिट कार्ड (Government Schemes and KCC)

मटर के रोग (Peas diseases): खेती में मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए किसान सरकारी योजनाओं का भी लाभ उठा सकते हैं। ये योजनाएँ खेती की लागत को कम करने और पूंजी (Capital) की व्यवस्था करने में मदद करती हैं।

मटर के रोग (Peas diseases): भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा चलाई जाने वाली कई योजनाएँ हैं, जो किसानों को सब्ज़ी और बागवानी (Horticulture) फसलों के लिए सब्सिडी (Subsidy) देती हैं।

  1. राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM): इस योजना के तहत, आलू की खेती के लिए उन्नत बीज, प्लांटर मशीन, कोल्ड स्टोरेज बनाने और माइक्रो-इरिगेशन सिस्टम लगाने पर सब्सिडी मिल सकती है।
  2. प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN): यह योजना सीधे किसानों के खाते में सालाना ₹6,000 की वित्तीय सहायता देती है, जिसका उपयोग किसान खेती के छोटे-मोटे ख़र्चों के लिए कर सकते हैं।

सबसे ज़रूरी है किसान क्रेडिट कार्ड (Kisan Credit Card – KCC)। केसीसी के ज़रिए किसान बहुत कम ब्याज दर पर (लगभग 4% प्रति वर्ष) खेती के लिए लोन (Loan) ले सकते हैं। इस पैसे का उपयोग आलू के बीज, खाद, कीटनाशक खरीदने या बुवाई के ख़र्चों को पूरा करने के लिए किया जा सकता है। इससे किसान को तुरंत पैसा उधार लेने या अपनी बचत को ख़र्च करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। किसान को हमेशा अपने क्षेत्र के कृषि विभाग या बागवानी विभाग से संपर्क करके नवीनतम योजनाओं और सब्सिडी के बारे में जानकारी लेते रहना चाहिए।

FAQ: मटर की जैविक खेती (Organic Peas Farming) पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

मटर की जैविक खेती में यूरिया की जगह क्या उपयोग करें?

यूरिया की जगह आप जीवामृत, घन-जीवामृत और अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग कर सकते हैं।

मटर में फल छेदक इल्ली को जैविक तरीके से कैसे रोकें?

नीम का तेल (5ml प्रति लीटर पानी) या दशपर्णी अर्क का छिड़काव करें। खेत में प्रकाश प्रपंच (Light Traps) लगाना भी प्रभावी है।

जैविक मटर की खेती के लिए सबसे अच्छा समय क्या है?

15 अक्टूबर से 15 नवंबर का समय सबसे उपयुक्त है।

क्या जैविक मटर की पैदावार रासायनिक खेती से कम होती है?

शुरुआती एक-दो साल में थोड़ी कमी आ सकती है, लेकिन मिट्टी के सुधरते ही पैदावार बराबर या उससे अधिक हो जाती है और लागत बहुत कम हो जाती है।

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