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सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki Top 5 Variety)

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किसान भाइयों, अगर आप सरसों की खेती करते हैं और हर साल यह सोचते हैं कि कौन-सी सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) सबसे ज्यादा उपज देगी, तो यह पूरा लेख आपके लिए है। यहां हम भारत में सबसे ज्यादा भरोसेमंद और उच्च उत्पादन देने वाली वैरायटीज़ के बारे में सरल भाषा में जानकारी दे रहे हैं—जिससे खेती आसान हो और मुनाफा दुगुना होता जाए।

आप सभी जानते हैं कि भारत में रबी की फसलों में सरसों (Mustard) का अपना ही महत्व है। यह न सिर्फ हमारे खाने में इस्तेमाल होने वाले तेल का मुख्य स्रोत है, बल्कि इसकी खेती किसानों को बंपर मुनाफ़ा भी दिलाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मुनाफ़ा तब और बढ़ जाता है जब आप सरसों के बीज का सही किस्म का चुनाव करते हैं?

आज की भाग-दौड़ भरी दुनिया में, खेती-किसानी भी टेक्नोलॉजी और सही जानकारी पर आधारित हो गई है। ऐसे में, यह जानना बहुत ज़रूरी है कि बाजार में कौन सी नई और उन्नत सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki Top 5 Variety) उपलब्ध हैं जो आपको सबसे ज्यादा पैदावार और ज्यादा तेल का मात्रा दे सकती हैं।

बहुत से किसान भाई सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) की तलाश में हैं, जो कम समय में अच्छी उपज दें और रोगों का सामना भी आसानी से कर सकें। आज हमलोग 2025 की उन 5 सबसे बेहतरीन और भरोसेमंद किस्मों के बारे में विस्तार से जानेंगे, जिन्हें अपनाकर आप अपनी ज़मीन से अधिकतम लाभ कमा सकते हैं। ये किस्में न केवल आपकी उपज बढ़ाएँगी, बल्कि आपके तेल की गुणवत्ता को भी बेहतर करेंगी। तो आइए, जानते हैं कि वे कौन सी सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) हैं जो आपके फसल की किस्मत बदल सकती हैं।

1. पूसा बोल्ड (Pusa Bold) – उच्च तेल वाली किस्म (High Oil Content Variety)

किसान भाइयों के बीच यह वैरायटी कई सालों से सबसे भरोसेमंद मानी जाती है। Sarso ki top 5 variety की लिस्ट में यह इसलिए आती है क्योंकि यह बड़े दानों वाली सरसों है, जिससे तेल की मात्रा अधिक मिलती है। पूसा बोल्ड (Pusa Bold) भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली द्वारा विकसित एक ऐतिहासिक और बेहद सफल किस्म है।

जब बात आती है उच्च तेल प्रतिशत वाली सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) की, तो पूसा बोल्ड का नाम सबसे पहले आता है। इसका नाम ही इसके गुणों को दर्शाता है – बड़े, बोल्ड (मोटे) दाने। यह किस्म विशेष रूप से उत्तरी भारत के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के लिए बहुत उपयुक्त मानी जाती है।

पूसा बोल्ड की एक खास बात यह भी है कि यह पाले (Frost) के प्रति अच्छी सहनशीलता रखती है, जिससे ठंड के मौसम में फसल को होने वाले नुकसान का खतरा कम हो जाता है। इसका तेल प्रतिशत आमतौर पर 40 से 42% के बीच होता है, जो इसे तेल मिलों और बाजार में उच्च मांग वाली किस्म बनाता है। यह लगभग 130 से 140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है और खेत में पौधे का विकास काफी तेजी से होता है।

यह ठंडे मौसम में शानदार प्रदर्शन करती है। अगर आप तेल की गुणवत्ता और मात्रा से कोई समझौता नहीं करना चाहते हैं, तो यह सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) में से एक बेहतरीन चुनाव है। सही सिंचाई और पोषण प्रबंधन के साथ, पूसा बोल्ड से प्रति एकड़ 8 से 10 क्विंटल तक की उपज आसानी से प्राप्त की जा सकती है।

उत्पादन क्षमता: 8–10 क्विंटल प्रति एकड़
लाभ: बड़े दाने, ज्यादा तेल, सूखा और ठंड सहन करने की क्षमता।

2. आरएच 749 (RH 749) की बंपर पैदावार (Bumper Yield of RH 749)

यह किस्म हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (HAU) द्वारा विकसित की गई है यह वैरायटी उत्तर भारत में बहुत तेजी से लोकप्रिय हुई है। Sarso ki top 5 variety में इसे इसलिए शामिल किया जाता है क्योंकि इसकी उपज बाकी वैरायटीज़ की तुलना में बहुत अधिक है। आरएच 749 (RH 749) पिछले कुछ सालों से किसानों के बीच एक बहुत ही लोकप्रिय और भरोसेमंद किस्म के रूप में उभरी है।

इसकी सबसे बड़ी खासियत इसकी बंपर पैदावार है। यह न सिर्फ कम पानी और विपरीत परिस्थितियों में भी खुद को संभाल लेती है, बल्कि रोगों के प्रति भी काफी प्रतिरोधी है।यह वैरायटी सफेद सुंडी और माहू जैसी कीटों पर नियंत्रित रहती है, जिससे किसानों को कम लागत में अधिक उत्पादन मिलता है।

किसान भाइयों, अगर आप ऐसी सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) ढूंढ रहे हैं जो आपकी ज़मीन की उर्वरता को देखते हुए अधिकतम उपज दे, तो आरएच 749 एक शानदार विकल्प है। इसके बीज का आकार बड़ा होता है, जिससे तेल का प्रतिशत भी काफी अच्छा मिलता है।

यह किस्म लगभग 140 से 150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जो इसे दोहरी फसल प्रणाली के लिए भी उपयुक्त बनाती है। इसकी औसत पैदावार प्रति एकड़ 10 से 12 क्विंटल तक दर्ज की गई है, जो इसे अन्य पारंपरिक किस्मों से काफी आगे रखती है। इस किस्म की बुवाई करने से पहले मिट्टी की सही तैयारी करना बहुत महत्वपूर्ण है। यह निश्चित रूप से सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) की लिस्ट में पहले स्थान की हकदार है।

उत्पादन क्षमता: 10–12 क्विंटल प्रति प्रति एकड़
लाभ: जल्दी पकने वाली, कीटों से बचाव, उत्कृष्ट तेल मात्रा।

3. गिरिराज/एनआरसीएचबी 101 (Giriraj/NRCHB 101/NRCDR-2)

गिरिराज, जिसे एनआरसीएचबी 101 (NRCHB 101/NRCDR-2) के नाम से भी जाना जाता है, भारत की पहली और सबसे सफल हाइब्रिड सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) में से एक है। हाइब्रिड होने के नाते, इसकी पैदावार क्षमता अन्य किस्मों की तुलना में बहुत अधिक होती है। जिन किसान भाइयों के पास बेहतरीन मिट्टी, पर्याप्त सिंचाई और उचित पोषण प्रबंधन की सुविधा है, वे इस किस्म से बंपर मुनाफ़ा कमा सकते हैं। इसकी उपज क्षमता 15 से 18 क्विंटल प्रति एकड़ तक दर्ज की गई है, जो इसे सबसे अधिक उपज देने वाली सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) बनाती है।

पकने का समय लगभग 140 से 145 दिन है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसका तेल प्रतिशत 42% से भी अधिक हो सकता है, जिससे बाजार में इसकी कीमत भी ज्यादा मिलती है। हालांकि हाइब्रिड बीज थोड़े महंगे होते हैं, लेकिन इसकी बढ़ी हुई पैदावार लागत को आसानी से कवर कर लेती है। यह किस्म मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में बहुत लोकप्रिय है। सघन खेती (Intensive Farming) करने वाले किसानों के लिए गिरिराज एक क्रांतिकारी सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) साबित हो सकती है।

गिरिराज सरसों एक हाई-यील्डिंग वैरायटी है जो Sarso ki top 5 variety में हर साल शीर्ष पर रहती है। यह कीटों और बीमारियों पर नियंत्रण रखने के लिए जानी जाती है। पौधे की ऊंचाई मध्यम रहती है और 135–140 दिन में पक जाती है। इसके दाने काफी भारी होते हैं और तेल की मात्रा 40% से भी ज्यादा पहुंच जाती है।

उत्पादन क्षमता: 15–18 क्विंटल प्रति एकड़
लाभ: तेल की मात्रा अधिक, रोग प्रतिरोधक, स्थिर उत्पादन।

4. पीएम 30 (PM 30) – कम समय में अधिक उपज (High Yield in Short Duration)

जिन किसान भाइयों के पास सिंचाई की पर्याप्त सुविधा नहीं है या जो दो फसलों के बीच जल्दी से सरसों की कटाई करना चाहते हैं, उनके लिए पीएम 30 (PM 30) एक वरदान है। यह किस्म अपनी जल्दी पकने की क्षमता के लिए जानी जाती है और सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) की सूची में इसका शामिल होना आवश्यक है। पीएम 30 सिर्फ 125 से 135 दिनों के भीतर ही कटाई के लिए तैयार हो जाती है, जिससे यह उन क्षेत्रों के लिए आदर्श है जहाँ किसान आलू या गेहूँ जैसी अगली फसल की बुवाई तुरंत करना चाहते हैं।

इस किस्म का जल्दी बाजार में आना किसानों को बेहतर प्रारंभिक मूल्य दिला सकता है। इसकी उपज क्षमता भी समय के मुकाबले बहुत अच्छी है, जो 8 से 9 क्विंटल प्रति एकड़ तक प्राप्त की जा सकती है। हालांकि इसका तेल प्रतिशत 40% के आसपास होता है, लेकिन कम समय में इतनी उपज देना इसे अत्यधिक लाभकारी बनाता है। यह किस्म विपरीत मौसमों का सामना करने में भी काफी सक्षम है। किसान भाइयों, यदि आपके पास कम समय है और आप अपनी ज़मीन का अधिकतम उपयोग करना चाहते हैं, तो पीएम 30 जैसी सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) को अवश्य चुनें।

उत्पादन क्षमता: 9–10 क्विंटल प्रति एकड़
लाभ: तेल की मात्रा अधिक, रोग प्रतिरोधक, स्थिर उत्पादन।

5. आरएच 725 (RH 725) – रोगों से लड़ने की क्षमता (Disease Resistance Power)

आरएच 725 (RH 725) एक और शानदार किस्म है, जिसे हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (HAU) ने किसानों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए विकसित किया है। यह सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) में इसलिए शामिल है क्योंकि यह फंगस (फफूंद) जनित रोगों, खासकर सफेद रतुआ (White Rust) और पत्ती धब्बा (Leaf Spot) के प्रति अद्भुत प्रतिरोधक क्षमता रखती है। जिन क्षेत्रों में रोगों का प्रकोप अधिक होता है, वहाँ के किसान भाइयों के लिए यह किस्म वरदान से कम नहीं है। रोगों से सुरक्षा का मतलब है कम कीटनाशक का उपयोग और शुद्ध, स्वस्थ उपज।

इसका पकने का समय आरएच 749 के आसपास ही है, लगभग 145 से 150 दिन। इसकी पैदावार क्षमता भी बहुत अच्छी है, और यह प्रति एकड़ 10 क्विंटल से अधिक उपज दे सकती है। यह मध्यम ऊंचाई का पौधा होता है, जिससे कटाई में भी आसानी होती है। आरएच 725 की खेती करके आप न केवल अपनी फसल को सुरक्षित रख सकते हैं, बल्कि बाज़ार में अपनी उपज का बेहतर मूल्य भी प्राप्त कर सकते हैं। यह किस्म उन किसानों के लिए आदर्श है जो कम जोखिम में अच्छी पैदावार चाहते हैं। यह अपने रोग प्रतिरोधक गुणों के कारण सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) में अपनी जगह बनाती है।

उत्पादन क्षमता: 10–12 क्विंटल प्रति एकड़
लाभ: बड़े दाने, ज्यादा तेल, सूखा और ठंड सहन करने की क्षमता।

इसके अलावा भी कुछ अच्छी वैरायटी के किस्में हैं

आरजीएम-1129 (RGM-1129 Mustard)

राजस्थान के शुष्क इलाकों के लिए यह वैरायटी सबसे बेहतरीन मानी जाती है। यह पानी और मौसम की कमी में भी शानदार उत्पादन देती है। Sarso ki top 5 variety में RGM-1129 इसलिए आती है क्योंकि यह सूखा-प्रतिरोधी है और मिट्टी की कम उर्वरता में भी अच्छा परिणाम देती है। इसकी अवधि लगभग 120–125 दिन होती है।

उत्पादन क्षमता: 8–10 क्विंटल प्रति एकड़
लाभ: सूखा सहनशील, कम लागत, कम सिंचाई में अधिक उत्पादन।

पूसा सरसों-26 (Pusa Mustard-26 – PM 26)

यह सरसों की सबसे लोकप्रिय वैरायटी में से एक है और किसान भाइयों को बेहतरीन उत्पादन देती है। Sarso ki top 5 variety में PM-26 इसलिए शामिल है क्योंकि यह कम पानी में भी अच्छा प्रदर्शन करती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह पौधा मजबूत होता है और गिरने का खतरा कम रहता है। पकने की अवधि 115–120 दिन के आसपास होती है, जिससे किसानों को समय पर फसल काटने का मौका मिलता है।

उत्पादन क्षमता: 8–9 क्विंटल प्रति एकड़
लाभ: रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत, दाना चमकीला और तेल की मात्रा ज्यादा।

पुसा मस्टर्ड 25 (Pusa Mustard 25 – NPJ 112)

पुसा मस्टर्ड 25 सरसों की उन उन्नत किस्मों में से एक है जो समय से बोई गई सिंचित फसलों के लिए खास तौर पर सिफारिश की जाती है। यह वैरायटी दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, जम्मू‑कश्मीर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे इलाकों में अच्छी तरह फिट बैठती है और यहां के मौसम के हिसाब से स्थिर पैदावार देती है। सही खेती के तरीके अपनाने पर यह वैरायटी लगभग 13–16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के आसपास औसत उपज देने में सक्षम पाई गई है और इसमें तेल की मात्रा लगभग 36–41 प्रतिशत तक बताई जाती है, जो किसान भाइयों के लिए अच्छा मुनाफा दे सकती है।

पुसा मस्टर्ड 26 (Pusa Mustard 26 – NPJ 113)

पुसा मस्टर्ड 26 सरसों की देर से बोई जाने वाली सिंचित फसलों के लिए बेहतरीन वैरायटी मानी जाती है, खासकर रबी सीजन में जब बुवाई थोड़ा लेट हो जाए। यह किस्म जम्मू‑कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के लिए सिफारिश की गई है और इन इलाकों में किसानों को स्थिर और अच्छी उपज देने के लिए जानी जाती है। इसके उत्पादन की क्षमता लगभग 14–19 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक देखी गई है और तेल की मात्रा सामान्यतः 30–41 प्रतिशत के बीच पाई जाती है, जिससे तेल मिल और मार्केट दोनों में अच्छे दाम मिलने की संभावना बढ़ जाती है।

पुसा डबल जीरो मस्टर्ड 33 (Pusa Double Zero Mustard 33 – PDZ 11)

पुसा डबल जीरो मस्टर्ड 33 को गुणवत्ता के लिहाज से बहुत खास वैरायटी माना जाता है, क्योंकि इसमें एरूसिक एसिड 2 प्रतिशत से कम और ग्लूकोसिनोलेट 30 ppm से कम रखा गया है। इसे “डबल जीरो” इसलिए कहा जाता है क्योंकि तेल और खली दोनों ही अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप कम हानिकारक तत्वों के साथ ज्यादा सुरक्षित और अच्छा पोषण देती हैं, जिससे यह किसानों के साथ‑साथ उपभोक्ताओं के लिए भी फायदेमंद विकल्प बन जाती है। यह किस्म पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू‑कश्मीर के मैदानी भाग और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों के लिए सिफारिश की गई है और समय से बोई गई सिंचित फसल में अच्छी औसत उपज देने के लिए जानी जाती है।

गुजरात दांतीवाड़ा मस्टर्ड 5 (Gujarat Dantiwada Mustard 5 – GDM 5)

गुजरात दांतीवाड़ा मस्टर्ड 5 यानी GDM‑5 को खास तौर पर ऊंची पैदावार और ज्यादा तेल प्रतिशत वाली सरसों की वैरायटी के रूप में जाना जाता है। इसे मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली जैसे इलाकों के लिए सिफारिश की गई है, जहां यह सही प्रबंधन के साथ लगभग 20–23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक औसत उपज देने की क्षमता दिखा चुकी है। इस किस्म में तेल की मात्रा लगभग 38–41 प्रतिशत के आसपास बताई जाती है, जिससे किसानों को प्रति क्विंटल अच्छी कीमत मिल सकती है और यह वैरायटी व्यापारिक सरसों की खेती के लिए एक मजबूत विकल्प बन जाती है।

पंत श्वेता (Pant Sweta – Yellow Mustard)

पंत श्वेता पीली सरसों की एक उन्नत वैरायटी है जो खास तौर पर उत्तराखंड और आसपास के पहाड़ी‑मैदानी इलाकों के लिए सिफारिश की गई है। यह किस्म अक्टूबर में सिंचित स्थिति में बोने के लिए उपयुक्त मानी जाती है और सामान्य तौर पर लगभग 16–20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देने की क्षमता रखती है, जो छोटे‑मध्यम किसानों के लिए काफी लाभदायक साबित हो सकती है। पंत श्वेता में तेल की मात्रा करीब 45 प्रतिशत तक बताई जाती है, जो इसे ज्यादा तेल वाली वैरायटी की श्रेणी में रखती है और खाद्य उद्योग के लिए भी आकर्षक बनाती है।

Note:- सरसों के बीज का चुनाव हमेशा जलवायु, मिट्टी की गुणवत्ता और सिंचाई की व्यवस्था को धयान में रख कर करना चाहिए।

सरकारी योजनाएँ और किसान क्रेडिट कार्ड (Government Schemes and KCC)

सरसों की खेती (Mustard Farming): सरसों की खेती में मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए किसान सरकारी योजनाओं का भी लाभ उठा सकते हैं। ये योजनाएँ खेती की लागत को कम करने और पूंजी (Capital) की व्यवस्था करने में मदद करती हैं।

भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा चलाई जाने वाली कई योजनाएँ हैं, जो किसानों को सब्ज़ी और बागवानी (Horticulture) फसलों के लिए सब्सिडी (Subsidy) देती हैं।

  1. राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM): इस योजना के तहत, आलू की खेती के लिए उन्नत बीज, प्लांटर मशीन, कोल्ड स्टोरेज बनाने और माइक्रो-इरिगेशन सिस्टम लगाने पर सब्सिडी मिल सकती है।
  2. प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN): यह योजना सीधे किसानों के खाते में सालाना ₹6,000 की वित्तीय सहायता देती है, जिसका उपयोग किसान खेती के छोटे-मोटे ख़र्चों के लिए कर सकते हैं।

सबसे ज़रूरी है किसान क्रेडिट कार्ड (Kisan Credit Card – KCC)। केसीसी के ज़रिए किसान बहुत कम ब्याज दर पर (लगभग 4% प्रति वर्ष) खेती के लिए लोन (Loan) ले सकते हैं। इस पैसे का उपयोग आलू के बीज, खाद, कीटनाशक खरीदने या बुवाई के ख़र्चों को पूरा करने के लिए किया जा सकता है। इससे किसान को तुरंत पैसा उधार लेने या अपनी बचत को ख़र्च करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। किसान को हमेशा अपने क्षेत्र के कृषि विभाग या बागवानी विभाग से संपर्क करके नवीनतम योजनाओं और सब्सिडी के बारे में जानकारी लेते रहना चाहिए।

सरसों की टॉप 5 वैरायटी की बुवाई का सही समय (Right Sowing Time for Sarso ki Top 5 Variety)

सरसों की किसी भी सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) से अधिकतम पैदावार लेने के लिए, सही समय पर बुवाई करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। सरसों की बुवाई का आदर्श समय सितंबर के अंतिम सप्ताह से लेकर अक्टूबर के मध्य तक माना जाता है। इस समय बुवाई करने से पौधे को शुरुआती विकास के लिए पर्याप्त अनुकूल तापमान मिलता है। यदि बुवाई में देरी होती है (नवंबर के बाद), तो फसल पाले (Frost) की चपेट में आ सकती है और फूल आने तथा दाना भरने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है।

देरी से बुवाई करने पर उपज में 25% तक की कमी आ सकती है। किसान भाइयों को अपने क्षेत्र के मौसम और मिट्टी के प्रकार को देखते हुए स्थानीय कृषि विश्वविद्यालयों की सलाह लेनी चाहिए। पूसा बोल्ड जैसी किस्मों को शुरुआती बुवाई से फायदा होता है, जबकि पीएम 30 जैसी जल्दी पकने वाली सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) को थोड़ा बाद में भी बोया जा सकता है। सही समय पर बुवाई करने से न केवल पैदावार बढ़ती है, बल्कि सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) में रोगों और कीटों का प्रकोप भी कम होता है, जिससे खेती की लागत में कमी आती है।

अच्छी पैदावार के लिए ज़रूरी खाद और उर्वरक (Essential Manure and Fertilizer for Good Yield)

कोई भी सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) तब तक अपनी पूरी क्षमता नहीं दिखा सकती, जब तक उसे सही पोषण न मिले। सरसों एक ऐसी फसल है जिसे नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश के अलावा सल्फर की विशेष आवश्यकता होती है। सल्फर की सही मात्रा से ही तेल का प्रतिशत बढ़ता है। प्रति एकड़ आमतौर पर 60 से 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है।

इसके अलावा, 20 किलोग्राम सल्फर डालना अनिवार्य है, जिसे जिप्सम या बेंटोनाइट सल्फर के रूप में दिया जा सकता है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय और शेष आधी मात्रा पहली सिंचाई के बाद देनी चाहिए। फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय ही खेत में मिला देनी चाहिए। मिट्टी की जाँच (Soil Testing) कराना सबसे बेहतर तरीका है, जिससे आपको पता चलता है कि आपकी मिट्टी में किस पोषक तत्व की कमी है। पर्याप्त और संतुलित उर्वरक प्रबंधन, आपकी चुनी हुई सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) से बंपर पैदावार सुनिश्चित करता है और तेल की गुणवत्ता भी बेहतर होती है।

सिंचाई प्रबंधन: कब और कितनी (Irrigation Management: When and How Much)

सरसों की फसल को वैसे तो बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन दो चरण ऐसे हैं जब सिंचाई करना अनिवार्य होता है। पहली सिंचाई फूल आने से पहले (बुवाई के 30 से 40 दिन बाद) करनी चाहिए। यह चरण पौधे के विकास और फूल बनने के लिए महत्वपूर्ण है। दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण सिंचाई दाना भरने के समय (बुवाई के 70 से 90 दिन बाद) करनी चाहिए।

इस समय पानी देने से दाने मोटे और भरे हुए बनते हैं, जिससे उपज और तेल का प्रतिशत दोनों बढ़ते हैं। ध्यान रखें कि सिंचाई हमेशा हल्की होनी चाहिए। अत्यधिक पानी देने से खेत में जल जमाव हो सकता है, जिससे जड़ गलन जैसे रोग हो सकते हैं। पाले की आशंका होने पर, किसान भाइयों को शाम के समय हल्की सिंचाई करनी चाहिए। पानी देने से खेत का तापमान नियंत्रित रहता है और पाले से फसल का बचाव होता है। सही सिंचाई प्रबंधन आपकी सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) की पैदावार को 15-20% तक बढ़ा सकता है।

सरसों की फसल में रोग नियंत्रण के उपाय (Disease Control Measures in Mustard Crop)

सरसों की फसल में रोग और कीटों का प्रकोप आम है, जो सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) की पैदावार को बहुत कम कर सकते हैं।

  1. सबसे आम कीट माहू (एफिड) है, जो फूलों और फलियों का रस चूसकर फसल को बर्बाद कर देता है। इसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड जैसे कीटनाशकों का छिड़काव किया जा सकता है।
  2. दूसरा प्रमुख रोग सफेद रतुआ (White Rust) है, जिसके लिए आरएच 725 जैसी प्रतिरोधी सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) का चुनाव करना सबसे अच्छा है। इसके रासायनिक नियंत्रण के लिए मेंकोजेब जैसे फफूंदनाशक का छिड़काव उपयोगी है।

रोगों से बचाव के लिए बुवाई से पहले बीज उपचार करना सबसे पहली और ज़रूरी क्रिया है। थीरम या कार्बेन्डाजिम से बीज उपचार करने से कई फंगस जनित रोगों से सुरक्षा मिलती है। जैविक नियंत्रण के लिए नीम आधारित कीटनाशकों का उपयोग भी किया जा सकता है। सही समय पर रोग की पहचान और नियंत्रण से आप अपनी सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) से पूरी उपज ले सकते हैं।

सरसों की टॉप 5 वैरायटी से अधिकतम मुनाफ़ा कैसे कमाएँ? (How to Maximize Profit from Sarso ki Top 5 Variety?)

सिर्फ अच्छी सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) बोना ही काफी नहीं है, अधिकतम मुनाफ़ा कमाने के लिए आपको कुछ व्यावसायिक कदम उठाने होंगे।

  1. सबसे पहले, अपनी फसल की सही ग्रेडिंग और सफाई करें। अच्छी तरह से साफ, चमकदार और बड़े दानों वाली सरसों को बाज़ार में हमेशा बेहतर कीमत मिलती है।
  2. दूसरा, बाज़ार के रुझानों पर नज़र रखें। कई बार कटाई के तुरंत बाद कीमतें कम होती हैं, लेकिन कुछ महीने बाद बढ़ जाती हैं। अगर आपके पास भंडारण की सुविधा है, तो उचित समय पर बेचना लाभकारी हो सकता है।
  3. तीसरा, अपनी उपज को स्थानीय तेल मिलों या बड़े खरीदारों को सीधे बेचने की कोशिश करें। मंडी के बिचौलिए से बचकर आप अपनी सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) का सीधा लाभ उठा सकते हैं।
  4. चौथा, अपनी उपज के साथ अपनी वैरायटी (जैसे आरएच 749) का उल्लेख करें, क्योंकि उच्च गुणवत्ता वाली किस्मों की मांग हमेशा ज्यादा होती है।

इन रणनीतियों का पालन करके, आप अपनी सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) की खेती को एक सफल और बंपर मुनाफ़े वाला व्यवसाय बना सकते हैं।

FAQs: सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki Top 5 Variety) पे अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

सरसों की सबसे ज्यादा तेल देने वाली किस्म कौन सी है? (Which mustard variety gives the highest oil content?)

पूसा बोल्ड (Pusa Bold) और हाइब्रिड किस्म गिरिराज (NRCHB 101) सरसों की सबसे ज्यादा तेल देने वाली किस्मों में से हैं। इन किस्मों में तेल का प्रतिशत अक्सर 42% या उससे अधिक होता है।

सरसों की खेती में प्रति एकड़ कितना मुनाफा होता है? (What is the profit per acre in mustard farming?)

सरसों की खेती में मुनाफा ₹25,000 से ₹40,000 प्रति एकड़ या इससे अधिक हो सकता है। यह आपकी चुनी हुई सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety), बाजार मूल्य और आपकी उपज (10-12 क्विंटल/एकड़) पर निर्भर करता है।

क्या सरसों की फसल में दो बार सिंचाई करनी चाहिए? (Should mustard crop be irrigated twice?)

हाँ, सरसों की फसल में कम से कम दो बार सिंचाई करना आवश्यक है: पहली फूल आने से पहले (30-40 दिन बाद) और दूसरी दाना भरने के समय (70-90 दिन बाद)।

सरसों की उन्नत किस्मों के लिए कौन सा खाद डालें? (Which fertilizer should be applied for improved mustard varieties?)

उन्नत सरसों की किस्मों के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश के साथ सल्फर (Sulfur) सबसे महत्वपूर्ण है। सल्फर तेल की मात्रा को बढ़ाता है। प्रति एकड़ 20 किलो सल्फर का प्रयोग अनिवार्य है।

सरसों की उन्नत किस्मों के लिए कौन सा खाद डालें? (Which fertilizer should be applied for improved mustard varieties?)

उन्नत सरसों की किस्मों के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश के साथ सल्फर (Sulfur) सबसे महत्वपूर्ण है। सल्फर तेल की मात्रा को बढ़ाता है। प्रति एकड़ 20 किलो सल्फर का प्रयोग अनिवार्य है।

भारत में सरसों की सबसे अच्छी किस्म कौन सी है? (Which is the best variety of mustard in India?)

भारत में क्षेत्रीय जलवायु के अनुसार कई अच्छी किस्में हैं, लेकिन आरएच 749 (RH 749) और गिरिराज/एनआरसीएचबी 101 (NRCHB 101) को उनकी बंपर पैदावार क्षमता और उच्च तेल प्रतिशत के कारण सर्वश्रेष्ठ सरसों की टॉप 5 वैरायटी (Sarso ki top 5 variety) माना जाता है।

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मटर की जैविक खेती (Organic Peas Farming): कम लागत में ज़्यादा मुनाफ़ा पाने का 100% देसी तरीका

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मटर की जैविक खेती क्या है? (What is Organic Peas Farming)खेत और मिट्टी की तैयारी (Soil Preparation for Organic Peas)बीज…

मटर की सिंचाई (Peas Irrigation): 5 आसान टिप्स से बढ़ाएं अपनी पैदावार!

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मटर की सिंचाई की आवश्यकता (Need for Peas Irrigation)मटर की सिंचाई का समय (Best Time for Peas Irrigation)सही सिंचाई विधि…

मटर की उन्नत किस्में (Varieties of Peas Seeds) – बेहतरीन विकल्प, ज्यादा पैदावार और पक्का मुनाफा

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मटर की उन्नत किस्में क्या होती हैं? (What are Improved Varieties of Peas Seeds)मटर की बेहतरीन किस्में (Varieties of Peas…

अरहर के बीज (Pigeon Pea Seeds): उन्नत खेती और बंपर पैदावार की पूरी जानकारी

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अरहर के बीज क्या हैं? (What are Pigeon Pea Seeds?)अरहर के बीज का सही चुनाव (Right Selection of Pigeon Pea…

अरहर की सिंचाई कैसे करें? (Pigeon Pea Irrigation Guide) – 7 आसान स्टेप में ज़्यादा पैदावार

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अरहर की सिंचाई का महत्व (Importance of Pigeon Pea Irrigation)अरहर की सिंचाई के मुख्य चरण (Critical Stages of Pigeon Pea…

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