Vertical farming खेती का एक आधुनिक तरीका है जिसमें फसलों को एक नियंत्रित वातावरण में, एक के ऊपर एक, ऊर्ध्वाधर (vertically) उगाया जाता है।
सरल शब्दों में कहें तो, यह एक ऐसी खेती है जो पारंपरिक खेतों में नहीं, बल्कि इमारतों या बड़े ढांचों के अंदर की जाती है। इसमें मिट्टी की जगह हाइड्रोपोनिक्स (पानी में उगाना), एरोपोनिक्स (हवा में उगाना) या एक्वापोनिक्स जैसी तकनीकों का इस्तेमाल होता है, जहाँ पौधों को ज़रूरी पोषक तत्व सीधे पानी या हवा से मिलते हैं।
इसका मुख्य उद्देश्य कम जगह में, कम पानी का इस्तेमाल करके और बिना कीटनाशकों के, पूरे साल फसल उगाना है।
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वर्टिकल फार्मिंग क्या है? | What is Vertical Farming?
वर्टिकल फार्मिंग (Vertical Farming) खेती की एक आधुनिक तकनीक है, जिसमें पौधों को जमीन पर फैलाने की बजाय ऊँचाई में परतों (layers) में उगाया जाता है। इसे हम “सीधे खड़े खेत” भी कह सकते हैं। यह खेती इंडोर (Indoor) यानी इमारतों के अंदर, ग्रीनहाउस, या खास डिज़ाइन किए गए कंटेनरों में होती है।
इसमें LED Grow Lights, हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics), एरोपोनिक्स (Aeroponics) जैसी तकनीकों का इस्तेमाल होता है, जिससे मौसम, मिट्टी और बारिश पर निर्भरता कम हो जाती है।
सीधी भाषा में कहें तो – वर्टिकल फार्मिंग मतलब कम जगह में ज्यादा और बेहतर उत्पादन।
वर्टिकल फार्मिंग का इतिहास | History of Vertical Farming
- वर्टिकल फार्मिंग का आइडिया प्राचीन सभ्यताओं में भी था, जब लोग पहाड़ों पर सीढ़ीनुमा खेती (Terrace Farming) करते थे।
- 1999 में डॉ. डिक्सन डेसपॉमियर (Dr. Dickson Despommier) ने इस कॉन्सेप्ट को नए तरीके से पेश किया।
- उनका मानना था कि 2050 तक दुनिया की आबादी इतनी बढ़ जाएगी कि पारंपरिक खेती पर्याप्त भोजन नहीं दे पाएगी, इसलिए शहरों में ही फसल उगानी होगी।
वर्टिकल फार्मिंग की ज़रूरत क्यों है? | Why Do We Need Vertical Farming?
- तेज़ी से घटती खेती की जमीन – शहरीकरण और औद्योगिकीकरण की वजह से जमीन कम हो रही है।
- पानी की कमी – पारंपरिक खेती में बहुत पानी खर्च होता है, जबकि वर्टिकल फार्मिंग में 90% पानी बचता है।
- क्लाइमेट चेंज – मौसम में बदलाव के कारण खेती प्रभावित हो रही है।
- शहर में ताज़ा भोजन की ज़रूरत – लंबी सप्लाई चेन में भोजन की क्वालिटी घट जाती है।
वर्टिकल फार्मिंग कैसे काम करती है? | How Vertical Farming Works?
- संरचना (Structure) – स्टील रैक या मल्टी-लेवल शेल्फ़ पर पौधे लगाए जाते हैं।
- प्रकाश (Lighting) – सूरज की रोशनी के साथ LED Grow Lights का प्रयोग।
- सिंचाई (Irrigation) – ड्रिप सिस्टम, हाइड्रोपोनिक्स या एरोपोनिक्स।
- पोषण (Nutrients) – पानी में घुलनशील पोषक घोल पौधों को दिया जाता है।
- कंट्रोल सिस्टम – सेंसर से तापमान, नमी और CO₂ लेवल कंट्रोल किया जाता है।
- हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics): ज़्यादातर वर्टिकल फार्मिंग में इस तकनीक का इस्तेमाल होता है। इसमें पौधों को सीधे पानी और पोषक तत्वों के घोल में उगाया जाता है।
- एरोपोनिक्स (Aeroponics): इसमें पौधों की जड़ों पर पोषक तत्वों का घोल स्प्रे किया जाता है।
- LED लाइट्स (LED Lights): पौधों को सूरज की रोशनी की जगह LED लाइट्स दी जाती हैं, जिससे उनके बढ़ने के लिए ज़रूरी प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) की प्रक्रिया होती है।
- स्वचालित प्रणाली (Automated System): तापमान, नमी और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जिससे पौधों को सबसे बेहतर वातावरण मिलता है।
इस तरह, वर्टिकल फार्मिंग कम जगह और कम पानी में ज़्यादा फसल पैदा करती है।
वर्टिकल फार्मिंग की तकनीकें | Techniques of Vertical Farming

- वर्टिकल फार्मिंग में मिट्टी के बिना खेती के लिए तीन प्रमुख तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है, जो हर एक अपने तरीके से काम करती हैं:
- हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics): यह सबसे आम तकनीक है, जिसमें पौधों की जड़ों को मिट्टी के बजाय पोषक तत्वों से भरपूर पानी में डुबोकर रखा जाता है। इससे पौधों को सीधे आवश्यक पोषक तत्व मिल जाते हैं।
- एरोपोनिक्स (Aeroponics): इस तकनीक में, पौधों की जड़ों को हवा में लटका दिया जाता है और उन पर पोषक तत्वों का घोल फुहार (mist) के रूप में छिड़का जाता है। यह पानी और पोषक तत्वों का सबसे कुशल उपयोग करती है।
- एक्वापोनिक्स (Aquaponics): यह हाइड्रोपोनिक्स और मछली पालन (aquaculture) का एक मिला-जुला रूप है। इसमें मछली के टैंक से निकलने वाला पानी, जिसमें पोषक तत्व होते हैं, पौधों को दिया जाता है। पौधे इस पानी को प्राकृतिक रूप से साफ करते हैं, और फिर यह साफ पानी वापस मछली के टैंक में चला जाता है।
- ये तकनीकें मिलकर वर्टिकल फार्मिंग को एक टिकाऊ और आधुनिक खेती का विकल्प बनाती हैं।
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वर्टिकल फार्मिंग के फायदे | Benefits of Vertical Farming

- वर्टिकल फार्मिंग के कई फायदे हैं जो इसे भविष्य की खेती के लिए एक शानदार विकल्प बनाते हैं।
- कम जगह में ज़्यादा उपज: शहरी क्षेत्रों में, जहाँ ज़मीन कम है, यह खेती का सबसे अच्छा तरीका है। इमारतों के अंदर कई परतों में खेती करने से पारंपरिक खेती की तुलना में बहुत कम जगह में कई गुना ज़्यादा फसल पैदा होती है।
- साल भर खेती: वर्टिकल फार्मिंग का वातावरण पूरी तरह से नियंत्रित होता है, इसलिए मौसम का इस पर कोई असर नहीं होता। किसान किसी भी मौसम में, किसी भी फसल को उगा सकते हैं।
- पानी की बचत: इसमें हाइड्रोपोनिक्स जैसी तकनीकों का उपयोग होता है, जिससे पारंपरिक खेती की तुलना में 95% तक कम पानी खर्च होता है। पानी का पुनर्चक्रण (recycling) किया जाता है, जिससे बर्बादी नहीं होती।
- कीटनाशक-मुक्त फसलें: नियंत्रित वातावरण के कारण पौधों पर कीड़े नहीं लगते, इसलिए कीटनाशकों का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होता। इससे फसलें ज़्यादा सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक होती हैं।
- परिवहन की लागत में कमी: वर्टिकल फार्म शहरों के पास ही होते हैं, जिससे दूर से फसल लाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। इससे परिवहन की लागत और कार्बन उत्सर्जन दोनों में कमी आती है।
- ये सभी फायदे वर्टिकल फार्मिंग को एक स्थायी और कुशल खेती का तरीका बनाते हैं।
वर्टिकल फार्मिंग की चुनौतियाँ | Challenges of Vertical Farming
- वर्टिकल फार्मिंग, हालांकि एक बेहतरीन तरीका है, लेकिन इसकी अपनी कुछ चुनौतियाँ भी हैं जिन पर ध्यान देना ज़रूरी है।
- शुरुआती लागत: वर्टिकल फार्म स्थापित करने की शुरुआती लागत बहुत ज़्यादा होती है। इसमें आधुनिक तकनीक, जैसे LED लाइट्स और स्वचालित प्रणालियों, को लगाने में काफी पैसा खर्च होता है।
- बिजली की खपत: यह पूरी तरह से बिजली पर निर्भर है। कृत्रिम रोशनी, तापमान और आर्द्रता को नियंत्रित करने के लिए लगातार बिजली की ज़रूरत होती है, जिससे संचालन लागत (operational cost) बढ़ जाती है।
- तकनीकी ज्ञान: इसे चलाने के लिए पारंपरिक खेती से अलग खास तकनीकी ज्ञान और कौशल की आवश्यकता होती है। किसानों को हाइड्रोपोनिक्स और अन्य प्रणालियों को समझने और प्रबंधित करने के लिए प्रशिक्षित होने की ज़रूरत है।
- फ़सल की सीमा: कुछ खास तरह की फसलें ही इसमें सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं, जैसे पत्तेदार सब्ज़ियाँ और स्ट्रॉबेरी। सभी तरह की फसलें, जैसे अनाज, इसमें उगाना अभी भी मुश्किल है।
- इन चुनौतियों के बावजूद, वर्टिकल फार्मिंग भविष्य की खाद्य सुरक्षा (food security) के लिए एक महत्वपूर्ण समाधान है।
सरकारी योजनाएँ और सहायता | Government Schemes and Support
- सीड ड्रिल और पैडी ड्रिल मशीन पर सब्सिडी उपलब्ध
- कृषि विभाग द्वारा प्रशिक्षण और डेमो प्लॉट
- ऑनलाइन जानकारी: भारत सरकार कृषि पोर्टल
भारत में वर्टिकल फार्मिंग | Vertical Farming in India
भारत में वर्टिकल फार्मिंग की शुरुआत अभी हुई है, लेकिन इसकी संभावनाएं बहुत ज़्यादा हैं। भारत जैसे घनी आबादी वाले देश के लिए जहाँ खेती की ज़मीन कम हो रही है, वर्टिकल फार्मिंग एक अच्छा विकल्प है।

- शहरी खेती: बेंगलुरु, हैदराबाद और दिल्ली जैसे शहरों में कई स्टार्टअप्स और कंपनियाँ वर्टिकल फार्मिंग को बढ़ावा दे रही हैं। वे शहरी उपभोक्ताओं को सीधे ताज़ी और कीटनाशक-मुक्त सब्ज़ियाँ उपलब्ध करा रहे हैं।
- पानी की बचत: भारत में पानी की कमी एक बड़ी समस्या है, और वर्टिकल फार्मिंग में पानी की बचत इसे बहुत ज़रूरी बनाती है।
- सरकार का समर्थन: सरकार भी कृषि-तकनीकी स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित कर रही है, जिससे इस क्षेत्र को बढ़ावा मिल रहा है।
- युवा उद्यमियों का योगदान: कई युवा उद्यमी इस तकनीक को अपनाकर खेती को एक आधुनिक और लाभदायक व्यवसाय बना रहे हैं।
कुल मिलाकर, वर्टिकल फार्मिंग भारत की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने और स्थायी कृषि को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
- भारत में मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु जैसे शहरों में इसकी शुरुआत हो चुकी है।
- कई स्टार्टअप छत पर वर्टिकल गार्डन बना रहे हैं।
- सरकार भी स्मार्ट सिटी मिशन के तहत इसे बढ़ावा दे रही है।
वर्टिकल फार्मिंग का भविष्य | Future of Vertical Farming

- AI और रोबोटिक्स से पूरी तरह ऑटोमेटेड फार्म।
- कम खर्च में ज्यादा और बेहतर फसल।
- शहरों में स्थानीय फूड मार्केट को बढ़ावा।
निष्कर्ष | Conclusion
वर्टिकल फार्मिंग आने वाले समय की सबसे महत्वपूर्ण खेती तकनीक है। यह न केवल शहरों में ताज़ा और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराएगी बल्कि पानी और जमीन की बचत करके पर्यावरण को भी सुरक्षित रखेगी।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
वर्टिकल फार्मिंग क्या है?
वर्टिकल फार्मिंग एक आधुनिक खेती की तकनीक है जिसमें फसलों को ऊँचाई में एक के ऊपर एक लेयर में उगाया जाता है। यह तरीका खासकर शहरी इलाकों में जगह और पानी की बचत करता है।
वर्टिकल फार्मिंग के लिए कौन-कौन सी तकनीकें इस्तेमाल होती हैं?
इसमें मुख्य रूप से हाइड्रोपोनिक्स, एरोपोनिक्स और एक्वापोनिक्स तकनीकें उपयोग होती हैं, जिनमें मिट्टी की जगह पोषक तत्वों से भरे पानी या धुंध का प्रयोग होता है।
वर्टिकल फार्मिंग की लागत कितनी आती है?
लागत आपके प्रोजेक्ट के आकार, इस्तेमाल की तकनीक और लोकेशन पर निर्भर करती है। छोटे स्तर पर इसे ₹50,000 से शुरू किया जा सकता है, जबकि बड़े कमर्शियल सेटअप के लिए लाखों रुपये लग सकते हैं।
क्या वर्टिकल फार्मिंग भारत में सफल हो सकती है?
हाँ, भारत में शहरी आबादी, जगह की कमी और पानी की बचत की जरूरत को देखते हुए वर्टिकल फार्मिंग एक बेहतरीन समाधान है। यह खासकर मेट्रो सिटी और टियर-2 शहरों में तेजी से लोकप्रिय हो रही है।
वर्टिकल फार्मिंग में कौन-कौन सी फसलें उगाई जा सकती हैं?
लेट्यूस(Lettuce), पालक, धनिया, टमाटर, मिर्च, स्ट्रॉबेरी और माइक्रोग्रीन्स जैसी फसलें वर्टिकल फार्मिंग में आसानी से उगाई जा सकती हैं।
क्या वर्टिकल फार्मिंग पर्यावरण के लिए फायदेमंद है?
हाँ, यह खेती का एक टिकाऊ और पर्यावरण-हितैषी तरीका है, क्योंकि इसमें पानी की खपत कम होती है और ट्रांसपोर्टेशन से होने वाला कार्बन उत्सर्जन भी घटता है।
वर्टिकल फार्मिंग के फायदे क्या हैं?
कम जगह में ज्यादा उत्पादन
सालभर खेती की संभावना
कम पानी की जरूरत
कीटनाशकों का कम इस्तेमाल
ताज़ा और पौष्टिक फसलें