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बाजरा की उन्नत खेती एवं उसका महत्व :
बाजरा (Pearl Millet) एक ऐसी फसल है जिसे किसान विपरीत (प्रतिकूल) परिस्थितियों तथा सीमित या कम वर्षा और कम उर्वरक/खाद के प्रयोग वाले क्षेत्रों में उगाते हैं। जहाँ दूसरी अन्य फसलें अच्छा उत्पादन नहीं देती हैं वही बाजरे(Pearl Millet) की खेती अच्छी उपज दे सकती है। बाजरे (Pearl Millet) का उपयोग भोजन एवं चारे के रूप में किया जाता है। यह दक्षिण पूर्व एशिया, चीन, भारत, पाकिस्तान, अरब, सूडान, रूस और नाइजीरिया की महत्वपूर्ण फसलों में से एक है। भारत में यह हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश, बिहार के कुछ भाग में उगाया जाता है। बाजरे (Pearl Millet) के अंदर में ज्वार की तुलना में बेहतर गुणवत्ता वाले पोषक तत्व होते हैं। बाजरा (Pearl Millet) कम नमी, कम उर्वरता और अधिक तापमान वाले क्षेत्रों की मिट्टी के लिए एक आदर्श फसल है। बाजरे की फसल कम आय वाले किसानों के लिए ऊर्जा, प्रोटीन, विटामिन और खनिजों का मुख्य स्रोत है। अनाज में 12.4 प्रतिशत नमी, 11.6 प्रतिशत प्रोटीन, 5 प्रतिशत वसा, 76 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 2.7 प्रतिशत खनिज होते हैं। यह खाने में स्वादिष्ट एवं सेहद के लिए बहुत लाभकारी होता है। इसमें गुल्टिन की मात्रा नहीं होती है इसलिए बाजरा (Pearl Millet) मधुमेह रोगी (Diabetic)के लिए भी बहुत लाभदायक होता है।
बाजरा (Millet): किसानों के लिए वरदान और भविष्य का सुपरफूड (Millet: A boon for farmers and the superfood of the future)
बाजरा (Pearl Millet) जिसे हमेशा से एक ‘मोटा अनाज’ कहा जाता रहा है, सदियों से भारतीय उपमहाद्वीप और अफ्रीका के कई हिस्सों में आहार का एक मुख्य हिस्सा रहा है। न केवल यह एक अनाज है, बल्कि एक पोषण एवं ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है जो सूखे या काम नमी और कम उपजाऊ मिट्टी में भी उपजने की अद्भुत क्षमता रखता है। बढ़ती गर्मी, बदलती जलवायु और बढ़ती खाद्य सुरक्षा की चिंताओं के बीच, बाजरा (Millet) एक बार फिर से वैश्विक ध्यान आकर्षित कर रहा है। इसे अब सिर्फ गरीबों का भोजन नहीं, बल्कि ‘सुपरफूड’ के रूप में देखा जाने लगा है, जिसमें स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए अपार संभावनाएं हैं।
आज हमलोग बाजरा (Pearl Millet) के विभिन्न पहलुओं पर गहराई से पूरी जानकारी लेंगे – बाजरा (Pearl Millet) के प्रकारों से लेकर इसकी खेती की विधियों तक, रोगों से बचाव से लेकर इसके पोषण संबंधी लाभों तक, और भारत में इसकी बढ़ती लोकप्रियता तक पूरी जानकारी प्राप्त करेंगे। हमारा उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यह जानकारी बाजरा (Pearl Millet) के बारे में इंटरनेट पर सबसे व्यापक और जानकारी पूर्ण स्रोतों में से एक बने जिससे किसान अपने खेती को और भी अधिक लाभकारी बना सके, किसानो की आमदनी और बढ़े।
सबसे पहले जानते हैं – बाजरा (Pearl Millet) क्या है? (What is Pearl Millet?)
बाजरा (Pearl Millet) घास परिवार (पोएसी) से संबंधित छोटे बीज वाले अनाज का एक अलग प्रजाति का समूह है। भारत की पारंपरिक एवं पोषक अनाजों में से एक है। यह सूखे और अर्ध-सूखे क्षेत्रों में उगाया जाता है और इसके दानों में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, फाइबर, आयरन, कैल्शियम तथा एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। वे अत्यधिक पौष्टिक से पूर्ण होते हैं और गर्म जलवायु और काम पानी वाले परिस्थितियों में भी उगाए जा सकते हैं। यहीं कारण है की बाजरा (Millet) खाद्य सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण फसल बन जाते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ पानी की कमी और काम उपजाऊ मिटटी है। बाजरा (Pearl Millet) में प्राकृतिक रूप से कीटों के प्रति प्रतिरोध इसे स्थायी कृषि के लिए एक आदर्श विकल्प बना देता है।
बाजरा के प्रमुख प्रकार | Types of Bajra (Pearl Millet)
प्रकार (Type) | हिंदी नाम (Hindi Name) | मुख्य विशेषताएं (Key Features) |
Pearl Millet | बाजरा (Bajra) | भारत में सबसे व्यापक रूप से उगाया जाने वाला बाजरा। प्रोटीन, फाइबर, आयरन और जिंक से भरपूर। शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिए उपयुक्त। |
Finger Millet | रागी (Ragi) | कैल्शियम का उत्कृष्ट स्रोत, जो हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद, क्योंकि इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है। |
Foxtail Millet | कंगनी (Kangni) | आयरन और प्रोटीन से भरपूर। ग्लूटेन-मुक्त और आसानी से पचने योग्य। हृदय स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद। |
Proso Millet | चेना (Chena) | प्रोटीन और फाइबर का अच्छा स्रोत। उत्तरी भारत में उगाया जाता है। ऊर्जा प्रदान करने वाला। |
Kodo Millet | कोदो (Kodo) | उच्च फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट सामग्री। मधुमेह और हृदय रोगों के प्रबंधन में सहायक। |
Barnyard Millet | सांवा (Sanwa) | ग्लूटेन-मुक्त और आयरन का अच्छा स्रोत। व्रत के दौरान खाया जाता है। |
Little Millet | कुटकी (Kutki) | फाइबर और फाइटोकेमिकल्स से भरपूर। पाचन में सुधार और वजन प्रबंधन में सहायक। |
बाजरा के प्रमुख प्रकार | Types of Bajra (Pearl Millet)
प्रकार | विशेषताएं |
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Hybrid Bajra (हाइब्रिड बाजरा) | अधिक उपज और रोग प्रतिरोधक क्षमता |
Desi Bajra (देशी बाजरा) | पारंपरिक किस्म, कम लागत पर खेती संभव |
Improved Varieties (सुधारित किस्में) | जैसे HHB 67, GHB 558, ICTP 8203 आदि |
Napier-Bajra Hybrid | अधिक चारा उत्पादन के लिए प्रयोग होता है |
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बाजरा (Pearl Millet) की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी (Suitable Soil for Pearl Millet Cultivation)
बाजरा (Pearl Millet) विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जाता है, जो इसे किसानों के लिए एक बहुमुखी फसल बना देता है। जबकि, कुछ मिट्टी की विशेषताएं बाजरे (Pearl Millet) वृद्धि और उपज के लिए बहुत अधिक योग्य होती हैं।
विशेषता (Feature) | विवरण (Description) |
---|---|
मिट्टी का प्रकार (Soil Type) | रेतीली दोमट (Sandy Loam) से लेकर काली कपास की मिट्टी (Black Cotton Soil) तक सभी तरह के मिट्टी के लिए उपयुक्त। |
जल निकासी (Drainage) | मिट्टी में अच्छी जल निकासी (Well-drained soil) सबसे अधिक आवश्यक है, क्योंकि बाजरा (Pearl Millet) ज्यादा जलभराव को सहन नहीं कर सकता है। |
pH मान (pH Value) | 6.0 से 7.5 के बीच का pH मान आदर्श माना गया है, हालांकि यह मान 5.0 से 8.0 pH हो तो भी बाजरे की खेती हो सकती है। |
जैविक पदार्थ (Organic Matter) | मध्यम जैविक पदार्थ (Moderate organic matter) वाली मिट्टी बेहतर माना गया है, जो पौधों को पोषक तत्व प्रदान करती है और इस मिट्टी में जल धारण करने की क्षमता काम होती है। |
लवणीयता (Salinity) | बाजरा (Pearl Millet) कुछ हद तक लवणीय मिट्टी (Saline soil) को सहन कर सकता है, जो इसे लवणीय भूमि के लिए उपयुक्त बनाता है। |

मिट्टी की तैयारी (Soil Preparation):
बाजरे के खेती के लिए मिट्टी को अच्छी तरह से जुताई करके तैयार किया जाना चाहिए ताकि खरपतवारों को नष्ट किया जा सके और मिट्टी को भुरभुरा बनाया जा सके। बुवाई से पहले खेत को समतल करना महत्वपूर्ण है ताकि पानी की समान वितरण सुनिश्चित हो सके। साथ ही जल के निकासी का पूरा प्रबंध करें जिससे खेत में जल भराव न हो। खेत तैयार करने से पहले मिट्टी का lab टेस्ट जरूर करवायें। pH का धयान जरूर रखें।
बीज लगाने का सही तरीका (right way for seeds planting):
- छिड़काव विधि: बीज को समान रूप से खेत में छिड़क दें और हल्की जुताई कर या मिट्टी से ढक दें जिससे पक्षी बीज को नुकसान न पहुंचा सके।
- कतार विधि (बेहतर): इसके विधि के लिए सीड ड्रिल या जीरो ड्रिल का उपयोग ज्यादा फायदेमंद रहता है।
- कतार से कतार की दूरी 45-60 cm रखें।
- पौधे से पौधे की दूरी 10-15 cm रखें।
- बीज की गहराई 2-3 cm से अधिक न हो।
बीज की मात्रा (Seed Rate)
- 3-4 kg/एकड़ बीज पर्याप्त होता है। इससे अधिक बीज डालने से किसान को उपज में कोई फायदा नहीं होता है बल्कि बीज का नुकसान हो सकता है।
- संकर किस्मों के लिए 2-3 kg/एकड़ पर्याप्त होता है। बीज ड्रिल मशीन से लगाने से बीज का बचत होता है और उपज में भी वृद्धि होता है।
4. बीज उपचार (Seed Treatment)
- फफूंदनाशक (जैसे थीरम 2g/kg )बीज से जरूर उपचारित करें।
- किसान कीटनाशक (जैसे इमिडाक्लोप्रिड) का भी प्रयोग कर सकते हैं।
बाजरा के लिए जलवायु | Suitable Climate for Bajra (Pearl Millet)
बाजरा (Pearl Millet) मुख्य रूप से सूखा-बर्दाश्त के लिए जाना जाता है और उन क्षेत्रों में अच्छी फसल देता है जहाँ अन्य अनाज फसलें पनपने के लिए भी संघर्ष करती हैं।
कारक | आदर्श स्थिति |
---|---|
तापमान | 25°C से 35°C |
वर्षा | 400 से 750 मिमी |
दिन की लम्बाई | मध्यम से लंबी दिन की स्थितियाँ |
मौसम | खरीफ और रबी दोनों में लेकिन खरीफ में बेहतर उपज |
बाजरा गर्म और शुष्क जलवायु में सबसे अच्छा उत्पादन देता है।

बाजरे का बुवाई का समय (Sowing Time of pearl
Millet):
भारत में, बाजरा (Pearl Millet) आमतौर पर खरीफ की फसल के रूप में उपजाया जाता है, जिसकी बुवाई मानसून की शुरुआत (जून-जुलाई) में की जाती है। बदलते मौसम और जलवायु और बीज की वेराइटी को धयान में रखते हुए कुछ राज्यों में जुलाई से अगस्त मध्य तक भी लगते हैं।
बाजरा (Pearl Millet) के रोग और नियंत्रण (Diseases and Control of Pearl Millet)
किसी दूसरे फसलों की तरह हीं बाजरा (Pearl Millet) में भी कुछ रोगों और कीटों लगता है। हालांकि, बाजरे में प्राकृतिक रूप से प्रतिरोधक क्षमता कई अन्य फसलों की तुलना में अधिक होती है, फिर भी हमें बाजरे को भी रोगो और कीटो से बचाव करना जरूरी हो गया है।
आइये जानते है बाजरे में होने वाले रोग, उसके लक्षण और उसका बचाव कैसे करें ?
रोग (Disease) | लक्षण (Symptoms) | नियंत्रण (Control) |
---|---|---|
हरी बाली रोग (Green Ear Disease) | पत्तियों पर हल्के पीले या भूरे रंग के धब्बे, फिर बाली का पत्तियों में बदलना। | रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें। प्रभावित पौधों को हटा दें और जला दें। बीज उपचार करें। |
स्मट (Smut) | दानों की जगह काले पाउडर से भरे फंगस के दाने। | स्वस्थ बीजों का उपयोग करें। बीज उपचार (Seed treatment) करें। फसल चक्र (Crop rotation) अपनाएं। |
रस्ट (Rust) | पत्तियों और तनों पर नारंगी-भूरे रंग के फफोले। | प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें। फफूंदनाशक (Fungicides) का प्रयोग करें यदि संक्रमण गंभीर हो। |
डाउनी मिल्ड्यू (Downy Mildew) | पत्तियों पर सफेद, रूईदार परत, पत्तियों का पीला पड़ना। | रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें। अच्छे जल निकासी (Good drainage) का ध्यान रखें। |

कीट नियंत्रण (Pest Control):
बाजरा (Pearl Millet) में आमतौर पर लगने वाले कीटों में तना छेदक (Stem borer) और फली छेदक (Pod borer) मुख्य रूप से शामिल हैं। जैविक नियंत्रण (Organic control) विधियों द्वारा, जैसे नीम पे आधारित कीटनाशकों (Neem-based pesticides) का उपयोग किया जा सकता है। अगर संक्रमण गंभीर हो तो रासायनिक कीटनाशकों (Chemical pesticides) का सहारा लिया जा सकता है, लेकिन रासायनिक कीटनाशकों सावधानी पूर्वक और निर्धारित मात्रा में ही उपयोग करना सही रहता है। ज्यादा जानकारी के लिए किसान अपने नजदकी कृषि विभाग में संपर्क करें। गलत कदम आपको नुकसान दे सकता है। IPM (Integrated Pest Management) तकनीक अपनाएं, जिसमें जैविक, रासायनिक और यांत्रिक तरीके शामिल हों।
तना छेदक (Stem Borer) – Chilo partellus
- लक्षण (Symptoms):
- इसमें पौधे का तना सूख जाता है।
- इसमें तने के अंदर सुरंग (गैलरी) बन जाती है।
- इसमें पत्तियों पर पीले धब्बे और छिद्र दिखाई देते हैं।
- नियंत्रण (Control):
- बीज को इमिडाक्लोप्रिड (Imidacloprid) से उपचारित करें।
- कार्बारिल (Carbaryl 50 WP) या क्लोरपाइरीफॉस (Chlorpyrifos 20 EC) का छिड़काव करें।
- प्राकृतिक शत्रु (Natural Enemies) जैसे ट्राइकोग्रामा (Trichogramma) का उपयोग करें।
हरा तेला (Green Leafhopper) – Nephotettix spp.
- लक्षण:
- इसमें पत्तियों का पीला पड़ना (Yellowing)।
- कीट पत्तियों का रस चूसते हैं, जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं।
- नियंत्रण:
- इमिडाक्लोप्रिड (Imidacloprid 17.8 SL) या थायमेथोक्साम (Thiamethoxam 25 WG) का छिड़काव करें।
बाजरा माहू (Aphid) – Rhopalosiphum maidis
- लक्षण:
- इसमें पत्तियों और बालियों पर चिपचिपा पदार्थ (हनीड्यू) दिखाई देता है।
- इसमें काली फफूंद (Sooty Mold) लग जाती है।
- नियंत्रण:
- डाइमेथोएट (Dimethoate 30 EC) या एसिटामिप्रिड (Acetamiprid 20 SP) का छिड़काव करें।
फुदका (Whitefly) – Bemisia tabaci
- लक्षण:
- इसमें पत्तियों का मुड़ना और पीला पड़ना।
- इसमें वायरस (जैसे मोज़ेक वायरस) फैलाते हैं।
- नियंत्रण:
- नीम का तेल (Neem Oil 2%) या थायमेथोक्साम (Thiamethoxam 25 WG) का प्रयोग करें।
बाजरा कीट (Earhead Caterpillar) – Helicoverpa armigera
- लक्षण:
- इसमें बालियों (Earheads) में छेद कर दाने खाते हैं।
- इसमें फसल की उपज कम हो जाती है।
- नियंत्रण:
- स्पिनोसैड (Spinosad 45 SC) या इंडोक्साकार्ब (Indoxacarb 14.5 SC) का छिड़काव करें।
मिट्टी के कीट (Soil Pests) – दीमक (Termites), सफेद लट (White Grub)
- लक्षण:
- इसमें पौधे की जड़ें कट जाती हैं।
- इसमें पौधे मुरझाकर गिर जाते हैं।
- नियंत्रण:
- इसमें बुवाई से पहले क्लोरपाइरीफॉस (Chlorpyrifos 20 EC) को मिट्टी में मिलाएं।

बाजरा (Pearl Millet) की कटाई और उपज (Harvesting and Yield of Pearl Millet)
कटाई (Harvesting):
बाजरा (Pearl Millet) की कटाई तब की जाती है जब दाने कठोर और परिपक्व हो जाएं। पौधे का रंग पीला पड़ जाता है और इसकी बालियां सूख जाती हैं। कटाई हाथ से या मशीनों से की जा सकती है। कटाई के बाद, दानों को अलग करने के लिए थ्रेशिंग की जाती है, और फिर नमी को कम करने के लिए उन्हें धुप में सुखाया जाता है।
उपज (Yield):
बाजरा (Pearl Millet) की उपज किस्म, मिट्टी की उर्वरता, जलवायु परिस्थितियों और कृषि पद्धतियों पर निर्भर करती है। सामान्य: बाजरा (Millet) की उपज प्रति हेक्टेयर 15 से 25 क्विंटल (1.5 से 2.5 टन) तक हो सकती है, हालांकि उन्नत किस्मों और बेहतर कृषि पद्धति के साथ इसकी उपज अधिक भी हो सकती है।
भारत में बाजरा के उत्पादक राज्य | Bajra Producing States in India
राज्य | विशेषताएं |
---|---|
राजस्थान | भारत में सर्वाधिक उत्पादन वाला राज्य है। |
महाराष्ट्र | खरीफ में प्रमुख फसल में से एक है। |
उत्तर प्रदेश | विशेषकर पश्चिमी भाग फसल के लिए उपर्युक्त है। |
हरियाणा और पंजाब | हाइब्रिड बाजरा के लिए प्रसिद्ध है। |
गुजरात और मध्य प्रदेश | गुजरात के मध्यम से अधिक उत्पादन होती है। |

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बाजरा (Pearl Millet) के पोषण संबंधी लाभ (Nutritional Benefits of Pearl Millet)
बाजरा (Pearl Millet) को ‘सुपरफूड’ कहे जाने के कई मुख्य कारण हैं। यह पोषक तत्वों से भरपूर होता है और कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। डाक्टर इसे खाने का सलाह देते हैं।
- उच्च फाइबर (High Fiber): बाजरा (Pearl Millet) में उच्च मात्रा में आहार फाइबर होता है, जो पाचन में सुधार करता है, कब्ज को रोकता है और sugar के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है।
- ग्लूटेन-मुक्त (Gluten-Free): यह उन लोगों के लिए एक सबसे अच्छा विकल्प है जिन्हें ग्लूटेन से एलर्जी है या सीलिएक रोग है।
- प्रोटीन का स्रोत (Source of Protein): बाजरा (Pearl Millet) प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत है, जो मांसपेशियों के निर्माण और मरम्मत के लिए बहुत आवश्यक है। जो लोग शारीरिक श्रम करते हैं उसे जरूर खाना चाहिए।
- खनिज और विटामिन (Minerals and Vitamins): यह आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, पोटेशियम, जिंक और बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन जैसे आवश्यक खनिजों और विटामिनों से भरपूर होता है।
- कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स (Low Glycemic Index): बाजरा (Pearl Millet) का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, जिसका अर्थ है कि यह रक्त शर्करा के स्तर को धीरे-धीरे बढ़ाता है, जिससे यह मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद होता है।
- एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर (Rich in Antioxidants): इसमें एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो शरीर को मुक्त कणों से होने वाले नुकसान से बचाने में मदद करते हैं, जिससे कैंसर और हृदय रोग जैसी पुरानी बीमारियों का खतरा कम होता है।
- वजन प्रबंधन (Weight Management): उच्च फाइबर सामग्री के कारण, बाजरा (Pearl Millet) खाने के बाद लंबे समय तक पेट भरा हुआ महसूस होता है, जिससे अत्यधिक खाने से बचा जा सकता है और वजन नियंत्रण में मदद मिलती है।
बाजरा (Pearl Millet) का महत्व और भविष्य (Importance and Future of Pearl Millet)
बाजरा (Pearl Millet) का महत्व केवल इसके पोषण और स्वाथ्य तक हीं सीमित नहीं है, बल्कि यह खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था बचाये रखने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
- खाद्य सुरक्षा (Food Security): बाजरा (Pearl Millet) सूखा-सहनेवाला और कम पानी में भी उगने की क्षमता एक महत्वपूर्ण फसल है। जिसके कारण उन क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करता है जहाँ अन्य फसलों की होने की सम्भावना बहुत काम हो जाती है। जैसे – काम वर्षा या अधिक गर्मी
- जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (Climate Change Adaptation): जैसे की आप देख सकते हैं कि जलवायु में परिवर्तन के प्रभाव रोज बढ़ते जा रहे हैं, बाजरा (Pearl Millet) जैसी जलवायु के साथ मेल-जोल रखने वाली फसलें भविष्य की कृषि के लिए महत्वपूर्ण हो जाएंगी।
- किसानों की आय (Farmers’ Income): जिस तरह जलवायु में परिवर्तन हो रहे हैं जल्दीजल्दी हीं बाजरा (Millet) की खेती किसानों के लिए एक व्यवहार्य आय स्रोत हो सकती है, खासकर काम वर्षा और गर्मी वाले क्षेत्र में।
- जैव विविधता (Biodiversity): बाजरा (Pearl Millet) की अलग अलग किस्में खेती में जैविक विविधता को बनाए रखने में मदद करती हैं।
- आर्थिक अवसर (Economic Opportunities): बाजरा (Pearl Millet) नए नए उत्पाद (Processing) और मूल्य संवर्धन (Value addition) में नए आर्थिक अवसर पैदा हो रहे हैं, जैसे बाजरा आटा (Pearl Millet flour) , बाजरा स्नैक्स (Pearl Millet snakes) , पापड़ (Papad), चिप्स (Chips) और बाजरा आधारित पेय पदार्थ (Pearl Millet dependant drinks)।
- सरकारी पहल (Government Initiatives): भारत सरकार ने बाजरा (Pearl Millet) के उत्पादन और खपत को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं। जिसमें इसे ‘श्री अन्न’ के रूप में बढ़ावा देना और ‘अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2023’ का आयोजन करना शामिल है। साथ ही काम वर्षा वाले क्षेत्र में बाजरे की खेती पे जोड़ दे रहे हैं जिससे किसानों को आर्थिक आय को बढ़ाया जा सके।
बाजरा (Pearl Millet) की खेती में आने वाली चुनौतियां और समाधान (Challenges and Solutions in Pearl Millet Cultivation)
बाजरा (Millet) की खेती में कुछ चुनौतियां भी हैं, जिन्हें दूर किया जा सकता है। किसान भाई अगर इस लेख के आधार पे खेती करता हैं तो सम्भवतः 99% तक कोई परेशानी नहीं आएगी। भारत में सभी जगहों पे कृषि केंद्र बने हुए हैं हमारे किसान भाई कृषि केंद्र से सलाह लें और बेहतर खेती करें और अपनी आय को बढ़ाएं।

बाजरा (Millet) आधारित व्यंजन और उनके फायदे (Pearl Millet-based Dishes and Their Benefits)
बाजरा (Pearl Millet) को हमलोग विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजनों में शामिल कर सकते हैं। शुरुआती दौर से इसका उपयोग रोटी, दलिया और खिचड़ी बनाने में किया जाता रहा है। और अब आधुनिक समय में बाजरे का उपयोग पास्ता, कुकीज़, केक और यहां तक कि स्मूदी में भी इस्तेमाल होने लगा है।
- बाजरा (Pearl Millet) की रोटी: गेगेहूं की रोटी का एक स्वस्थ विकल्प है, यह फाइबर और खनिजों से भरपूर होती है।
- रागी (Finger Millet) डोसा/इडली: एक ग्लूटेन-मुक्त नाश्ता, जो कैल्शियम और आयरन से भरपूर होता है।
- बाजरा (Pearl Millet) खिचड़ी: एक हल्का और पौष्टिक भोजन, जो दाल और सब्जियों के साथ बनाया जाता है।
- कंगनी (Foxtail Millet) उपमा: एक जल्दी और स्वस्थ नाश्ता का अच्छा विकल्प है।
- बाजरा (Pearl Millet) दलिया: बच्चों और वयस्कों दोनों के लिए एक सुपाच्य और ऊर्जादायक नाश्ता है।

इन व्यंजनों को अपनी डाइट में शामिल करके आप आसानी से बाजरा (Pearl Millet) के पोषण संबंधी लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
कृषि कार्य प्रणाली | Cultivation Practices for Bajra
बाजरा (Pearl Millet) न केवल पोषण से भरपूर फसल है बल्कि कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल भी है। सही जानकारी और तकनीक से इसकी खेती से किसान अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।
क्रियाविधि | विवरण |
---|---|
बुआई का समय | जून से जुलाई (खरीफ), फरवरी (रबी) |
बीज की मात्रा | 4-5 किग्रा/एकड़ |
बुवाई विधि | कतार से 45 सेमी दूरी पर |
खाद और उर्वरक | NPK @ 60:40:20 प्रति हेक्टेयर |
सिंचाई | खरीफ में सामान्यतः वर्षा पर्याप्त |
निराई-गुड़ाई | 20-25 दिन पर एक बार अवश्य करें |
कटाई का समय | 80-100 दिन में तैयार |
बाजरा की अनुमानित उत्पादकता और अनुमानित लाभ | Estimated productivity and estimated profit of millet
प्रकार | उपज (क्विंटल/हेक्टेयर) | लागत | संभावित लाभ |
---|---|---|---|
हाइब्रिड | 20-25 क्विंटल | ₹8,000-₹12,000 | ₹30,000+ |
देशी | 10-15 क्विंटल | ₹5,000-₹7,000 | ₹15,000-₹20,000 |
बाजरा (Pearl Millet) क्या है?
बाजरा एक प्रमुख मोटा अनाज है जिसे वैज्ञानिक रूप से Pennisetum glaucum कहा जाता है। यह पोषक तत्वों से भरपूर होता है और खासकर सूखे व कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है।
बाजरा की खेती किन राज्यों में होती है?
भारत में राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक और मध्य प्रदेश बाजरा उत्पादन में अग्रणी राज्य हैं।
बाजरा खाने के क्या फायदे हैं?
बाजरा फाइबर, आयरन, मैग्नीशियम और प्रोटीन से भरपूर होता है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है, डायबिटीज में फायदेमंद होता है और हृदय को स्वस्थ रखता है।
बाजरा कब बोया जाता है और कब काटा जाता है?
बाजरा की बुआई जून से जुलाई तक की जाती है और फसल अक्टूबर से नवंबर में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
बाजरा की उन्नत किस्में कौन-कौन सी हैं?
बाजरा की प्रमुख किस्में हैं — HHB 67, ICMH 356, Raj 171, GHB 558, और MP 535। ये अधिक उपज व रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली हैं।
बाजरे की फसल को कौन-कौन से रोग लगते हैं?
बाजरा फसल को जड़ सड़न, पत्ती झुलसा, अर्गट (Ergot), और स्मट जैसे रोग लगते हैं। इनमें अर्गट रोग सबसे खतरनाक होता है।
बाजरा की खेती के लिए कौन सी मिट्टी उपयुक्त है?
बाजरा की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। pH मान 6.5 से 8.0 के बीच होना चाहिए।
बाजरे की खेती के लिए कितनी सिंचाई चाहिए?
बाजरा कम पानी वाली फसल है। लेकिन यदि सिंचाई की सुविधा हो तो 2 से 3 बार सिंचाई करने से अच्छी उपज मिलती है।
बाजरे की खेती से प्रति एकड़ कितनी आमदनी होती है?
बाजरा की खेती से प्रति एकड़ 8 से 12 क्विंटल उपज मिल सकती है। यदि बाजार मूल्य ₹2000/क्विंटल हो तो प्रति एकड़ ₹16,000 से ₹24,000 तक की आय संभव है।
बाजरे के उत्पाद से कौन-कौन से व्यंजन बनाए जाते हैं?
बाजरे से रोटी, खिचड़ी, दलिया, उपमा, कुकीज़, स्नैक्स और हलवा जैसे पौष्टिक व्यंजन बनाए जाते हैं।