ज्वार के खेती कैसे करें? (Sorghum Cultivation) – 10 आसान स्टेप्स में ज़्यादा उत्पादन और मुनाफ़ा

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किसान भाइयों, अगर आप कम पानी में, कम लागत में और ज़्यादा मुनाफ़ा देने वाली फसल की तलाश में हैं, तो ज्वार के खेती कैसे करें? (Sorghum Cultivation) यह सवाल आपके लिए बेहद ज़रूरी है। ज्वार एक ऐसी मोटे अनाज (Millets) की फसल है जो सूखा सहन करने की क्षमता रखती है और आज के समय में इसकी डिमांड तेजी से बढ़ रही है। इस लेख में हम आपको ज्वार के खेती कैसे करें? (Sorghum Cultivation) पर चर्चा करेंगे जिससे आप ज्यादा से ज्यादा मुनाफा और बेहतरीन पैदावार ले सके।

ज्वार की फसल का महत्व (Importance of Sorghum)

ज्वार को ‘सुपरफूड’ माना जाता है। यह मधुमेह (Diabetes) और मोटापे जैसी समस्याओं में रामबाण है। पशुपालन के लिए ज्वार का चारा सबसे उत्तम माना जाता है क्योंकि यह रसीला और पौष्टिक होता है।

गुणमहत्व
कम पानी की फसलसूखे क्षेत्रों के लिए आदर्श
पोषक तत्वइसमें आयरन, कैल्शियम और फाइबर की प्रचुर मात्रा होती है।
मानव आहारज्वार में फाइबर, आयरन और प्रोटीन भरपूर
जलवायु अनुकूलनयह फसल सूखे को सहने की अद्भुत क्षमता रखती है।
पशु आहारहरा और सूखा चारा दोनों ही दुधारू पशुओं के लिए बेहतरीन हैं।
बाज़ार मांगमिलेट्स की बढ़ती मांग से अच्छे दाम
औद्योगिक उपयोगइसका उपयोग इथेनॉल और शराब बनाने में भी किया जाता है।

जलवायु और भूमि चयन (Climate & Soil Selection)

ज्वार के खेती कैसे करें? (Sorghum Cultivation) की शुरुआत सही जलवायु और भूमि से होती है। ज्वार गर्म और शुष्क जलवायु में अच्छी होती है। 25–35°C तापमान इसके लिए आदर्श माना जाता है। बहुत अधिक ठंड या पाला ज्वार की फसल को नुकसान पहुँचा सकता है।
भूमि की बात करें तो दोमट से लेकर बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी रहती है। खेत में जल निकास (Drainage) अच्छा होना चाहिए, क्योंकि पानी रुकने से जड़ सड़ने की समस्या हो सकती है। खेत का pH मान 6.0 से 7.5 के बीच हो तो ज्वार की पैदावार बेहतर मिलती है। यह कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी अच्छी उपज देती है, जिससे यह महाराष्ट्र, राजस्थान और हरियाणा के किसानों की पहली पसंद है।

खेत की तैयारी (Field Preparation)

ज्वार के खेती कैसे करें? (Sorghum Cultivation) में खेत की तैयारी सबसे पहला व्यावहारिक कदम है। सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करें, जिससे पुरानी फसल के अवशेष नष्ट हो जाएँ। इसके बाद 2–3 हल्की जुताई कर खेत को भुरभुरा बना लें।
अंतिम जुताई के समय 8–10 टन गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट डालें। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और नमी बनी रहती है। समतल खेत में बीज की बुवाई समान रूप से होती है, जिससे पौधों की बढ़वार एकसमान रहती है।

उन्नत किस्मों का चयन (Best Sorghum Varieties)

ज्वार के खेती कैसे करें? (Sorghum Cultivation) में सही किस्म का चुनाव बहुत मायने रखता है। अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग किस्में उपयुक्त होती हैं। जैसे CSV-15, CSH-14, मालदांडी और पूसा चरी-6।
अगर आप दाने के लिए खेती कर रहे हैं तो दाना वाली किस्म चुनें, और अगर चारे के लिए तो चारा किस्म बेहतर रहती है। उन्नत किस्में रोग प्रतिरोधक होती हैं और कम लागत में ज़्यादा उत्पादन देती हैं। किसान भाइयों को हमेशा प्रमाणित बीज ही खरीदना चाहिए, ताकि अंकुरण अच्छा हो और फसल मजबूत बने।

बीज मात्रा और बुवाई का तरीका (Seed Rate & Sowing)

ज्वार के खेती कैसे करें? (Sorghum Cultivation) में बीज की सही मात्रा बहुत ज़रूरी है। एक हेक्टेयर में लगभग 8–10 किलो बीज पर्याप्त होता है।
बुवाई जून–जुलाई (खरीफ) और अक्टूबर–नवंबर (रबी) में की जाती है। बीज को कतारों में बोना सबसे अच्छा रहता है। कतार से कतार की दूरी 45 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 15 सेमी रखें। इससे पौधों को पर्याप्त पोषण और हवा मिलती है।

खाद और उर्वरक प्रबंधन (Fertilizer Management)

ज्वार के खेती कैसे करें? (Sorghum Cultivation) में संतुलित खाद प्रबंधन से उत्पादन बढ़ता है। सामान्य खेती में 80:40:40 (NPK) किलो प्रति हेक्टेयर की सिफारिश की जाती है।
नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय और बाकी आधी 30–35 दिन बाद दें। इससे पौधे हरे-भरे और मजबूत बनते हैं। फास्फोरस जड़ विकास में मदद करता है और पोटाश रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।

जैविक तरीके से ज्वार की खेती (Organic Sorghum Cultivation)

आजकल जैविक उत्पादों की मांग बहुत ज्यादा है। ज्वार के खेती कैसे करें? (Sorghum Cultivation) अगर ऑर्गेनिक तरीके से करना चाहते हैं तो यह और भी फायदेमंद है। ज्वार के खेती कैसे करें? (Sorghum Cultivation) अगर ऑर्गेनिक तरीके से करना चाहते हैं तो यह और भी फायदेमंद है। बीज उपचार के लिए ट्राइकोडर्मा या जीवामृत का उपयोग करें।

ज्वार की खेती (Sorghum Cultivation) के दौरान रासायनिक खाद की जगह प्रति हेक्टेयर 10-15 टन गोबर की सड़ी हुई खाद या वर्मीकम्पोस्ट का प्रयोग करें। बीजोपचार के लिए बीजामृत का प्रयोग करें और कीट नियंत्रण के लिए नीम तेल या दशपर्णी अर्क या गौमूत्र का छिड़काव करें। जैविक तरीके से उगाई गई ज्वार का बाजार भाव सामान्य ज्वार से काफी अधिक मिलता है, और इससे मिट्टी की उर्वरक शक्ति भी बनी रहती है।

सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management)

ज्वार के खेती कैसे करें? (Sorghum Cultivation) में सिंचाई की ज़रूरत कम पड़ती है। यदि वर्षा न हो, तो इन चरणों में सिंचाई जरूर करें। बुवाई के समय हल्की सिंचाई करें। इसके बाद 20–25 दिन पर पानी देना पर्याप्त होता है।
फूल आने और दाना बनने के समय नमी ज़रूरी होती है। लेकिन ज़्यादा पानी से बचें, क्योंकि इससे फसल गिर सकती है। ड्रिप या स्प्रिंकलर सिंचाई अपनाने से पानी की बचत होती है।

खरपतवार और कीट नियंत्रण (Weed & Pest Control)

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ज्वार के खेती कैसे करें? (Sorghum Cultivation) में खरपतवार बड़ी समस्या बन सकते हैं। पहली निराई-गुड़ाई 20–25 दिन में करें। खरपतवार न केवल पोषण छीनते हैं, बल्कि कीटों को भी आमंत्रण देते हैं। यदि आप रासायनिक नियंत्रण चाहते हैं, तो ‘एट्राजीन’ का उपयोग कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर कर सकते हैं।

ज्वार में मुख्य रूप से तना मक्खी (Shoot Fly) और चेपा का प्रकोप होता है। तना मक्खी से बचाव के लिए बुवाई जल्दी करनी चाहिए। रोगों में ‘कंडुआ’ (Smut) रोग प्रमुख है, जिससे बचाव के लिए बीज को उपचारित करना सबसे बेहतर उपाय है। जैविक नियंत्रण के लिए पीला चिपचिपा ट्रैप (Yellow Sticky Trap) लगाएं। ज्वार की खेती कैसे करें? (Sorghum Cultivation) में समय पर निगरानी ही फसल को नुकसान से बचा सकती है।

कटाई, उत्पादन और भंडारण (Harvesting, Yield and Storage)

ज्वार के खेती कैसे करें? (Sorghum Cultivation) में कटाई सही समय पर करना बहुत ज़रूरी है। जब ज्वार के दानों में नमी 20-25% रह जाए और दाने सख्त हो जाएं और पत्तियाँ पीली पड़ने लगें, तब कटाई करें। मड़ाई के बाद दानों को अच्छी तरह धूप में सुखाएं ताकि नमी 10-12% तक आ जाए। नमी कम होने पर ही भंडारण करें, वरना घुन लगने का डर रहता है। भंडारित अनाज को सूखे और हवादार स्थान पर रखें। औसतन 25–30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिल जाता है। सही प्रबंधन से इससे भी ज़्यादा पैदावार संभव है।

सरकारी योजनाएँ और किसान क्रेडिट कार्ड (Government Schemes and KCC)

मटर के रोग (Peas diseases): खेती में मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए किसान सरकारी योजनाओं का भी लाभ उठा सकते हैं। ये योजनाएँ खेती की लागत को कम करने और पूंजी (Capital) की व्यवस्था करने में मदद करती हैं।

मटर के रोग (Peas diseases): भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा चलाई जाने वाली कई योजनाएँ हैं, जो किसानों को सब्ज़ी और बागवानी (Horticulture) फसलों के लिए सब्सिडी (Subsidy) देती हैं।

  1. राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM): इस योजना के तहत, आलू की खेती के लिए उन्नत बीज, प्लांटर मशीन, कोल्ड स्टोरेज बनाने और माइक्रो-इरिगेशन सिस्टम लगाने पर सब्सिडी मिल सकती है।
  2. प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN): यह योजना सीधे किसानों के खाते में सालाना ₹6,000 की वित्तीय सहायता देती है, जिसका उपयोग किसान खेती के छोटे-मोटे ख़र्चों के लिए कर सकते हैं।

सबसे ज़रूरी है किसान क्रेडिट कार्ड (Kisan Credit Card – KCC)। केसीसी के ज़रिए किसान बहुत कम ब्याज दर पर (लगभग 4% प्रति वर्ष) खेती के लिए लोन (Loan) ले सकते हैं। इस पैसे का उपयोग आलू के बीज, खाद, कीटनाशक खरीदने या बुवाई के ख़र्चों को पूरा करने के लिए किया जा सकता है। इससे किसान को तुरंत पैसा उधार लेने या अपनी बचत को ख़र्च करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। किसान को हमेशा अपने क्षेत्र के कृषि विभाग या बागवानी विभाग से संपर्क करके नवीनतम योजनाओं और सब्सिडी के बारे में जानकारी लेते रहना चाहिए।

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FAQ: ज्वार के खेती कैसे करें? (Sorghum Cultivation) पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

ज्वार की खेती में प्रति एकड़ कितनी उपज होती है?

उन्नत किस्मों और सही प्रबंधन से प्रति एकड़ 12 से 15 क्विंटल अनाज और भारी मात्रा में चारा प्राप्त किया जा सकता है।

ज्वार की बुवाई के लिए बीज दर क्या है?

एक हेक्टेयर के लिए लगभग 10-12 किलो बीज की आवश्यकता होती है।

क्या ज्वार की खेती बिना सिंचाई के संभव है?

हाँ, कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इसे ‘बारानी’ फसल के रूप में उगाया जा सकता है, क्योंकि यह सूखे के प्रति बहुत सहनशील है।

ज्वार की खेती से कितना मुनाफ़ा होता है?

ज्वार की खेती में कम लागत और अच्छा बाज़ार भाव मिलने से 30–40% तक मुनाफ़ा हो सकता है।

ज्वार की ऑर्गेनिक खेती कैसे करें?

गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट और नीम आधारित कीटनाशकों से ऑर्गेनिक ज्वार की खेती की जा सकती है।

ज्वार की खेती के लिए सबसे अच्छी किस्म कौन सी है?

CSV-15 और मालदांडी किस्म सबसे लोकप्रिय मानी जाती हैं।

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