
नमस्ते मेरे प्यारे किसान भाइयों और बहनों! मैं आज आपके लिए एक ऐसा विषय लेकर आया हूँ जो आपकी खेती और आय को एक नई दिशा दे सकता है। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं “कपास” (Cotton) की खेती की। कपास, जिसे “सफेद सोना” भी कहा जाता है, भारत की एक एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है जो लाखों किसानों के जीवन को रोशन करती है। आज इस लेख में, हम कपास (Cotton) की खेती से जुड़ी हर छोटी-बड़ी सारि जानकारी साझा करेंगे, ताकि आप अपनी फसल की अच्छी देखभाल कर सके और अधिकतम लाभ उठा सकें और एक सफल और सक्षम किसान बन सकें। कपास जो भारत की एक महत्वपूर्ण नकदी फसल में से एक है, कपास भारत की अर्थव्यवस्था और कृषि दोनों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कपास को एक बहुमुखी फसल माना गया है। यह बहुमुखी फसल भारत के विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में उगाई जाती है और देश की विविध जलवायु और मिट्टी की स्थितियों से लाभान्वित होती है।
हमारा भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ ५८% लोग खेती पे निर्भर हैं और हमारे देश के अनेकों फसलों में से कपास (Cotton) का एक विशेष स्थान है। कपास (Cotton) न केवल वस्त्र उद्योग का आधार है, बल्कि किसानों के लिए भी एक स्थिर आय का स्रोत भी है। लेकिन बेहतर कपास (Cotton) की खेती के लिए सही ज्ञान, सही तकनीक और सही समझ का होना आवश्यक है। तो आइए, इस सफ़ेद सोने की खेती के हर पहलू को गहराई से समझते हैं।
Table of Contents
कपास (Cotton) क्या है और इसका क्या महत्त्व है? What is Cotton and What is its Importance?
कपास (Cotton) एक बहुत हीं मुलायम रोयेंदार फाइबर है जो मालवेसी परिवार के पौधों के बीजकोष से प्राप्त होता है। यह दुनिया की सभी प्राकृतिक फाइबर में से एक सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक फाइबर फसल है और इसका सबसे ज्यादा इस्तमाल मुख्य रूप से कपड़ा उद्योग में, धागे और अन्य वस्त्र बनाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा, कपास (Cotton) के बीज से तेल भी निकाला जाता है, जिसका उपयोग खाने और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। कपास का तेल मुख्यतः महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटका में किया जाता है। इसके खली को मवेशी के चारे के रूप में उपयोग होता है। भारत में, लाखों किसान कपास (Cotton) की खेती पर निर्भर हैं, जिससे यह देश की अर्थव्यवस्था और किसानों की आय में एक महत्वपूर्ण भूमिका देने वाला फसल बन जाता है।
कपास (Cotton) के प्रकार कौन-कौन से हैं (What are the types of cotton):

भारत (India) में मुख्यतः चार किस्म के कपास (Cotton) उगाए जाते हैं। हर प्रकार के कपास अपनी विशेषताएं होती हैं जो उसे विशिष्ट जलवायु और मिट्टी की परिस्थितियों के लिए उपयुक्त बनाती हैं।
- गॉसिपियम अर्बोरियम (Gossypium arboreum): इसे “देसी कपासी” या “कपासी देसी” के नाम से जाना जाता है। यह कपास के वेराइटी भारत का मूल कपास है और कम पानी वाले क्षेत्रों में भी अच्छी तरह उगता है। इसकी फाइबर की साइज छोटी और मोटी होती है।
- गॉसिपियम हर्बेशियम (Gossypium herbaceum): कपास के इस वेराइटी को भी “देसी कपासी” की हीं एक प्रजाति माना गया है, जो मुख्य रूप से गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में उगाई जाती है। इसकी भी फाइबर छोटी और मोटी होती है।
- गॉसिपियम हिरसुटम (Gossypium hirsutum): यह कपास (Cotton) की सबसे व्यापक रूप से उगाई जाने वाली एक प्रजाति है, जिसे “अमेरिकी कपास” या “अमेरिकन कॉटन” के नाम से भी जाना जाता है। इसकी फाइबर मध्यम साइज से लंबी होती है और यह उच्च गुणवत्ता वाले कपड़े बनाने के लिए उपयोग की जाती है। भारत में, बीटी कपास (BT Cotton) इसी प्रजाति का एक संशोधित रूप है जो भारतीय जलवायु के उपर्युक्त है।
- गॉसिपियम बारबाडेंस (Gossypium barbadense): इसे “सी-आइलैंड कॉटन” या “ईजिप्शियन कॉटन” के नाम से भी जाना जाता है। इसकी फाइबर सबसे लंबी और महीन होती है, जिससे यह उच्च गुणवत्ता वाले धागे और कपड़े बनाने के लिए उपयुक्त है। भारत में इसकी खेती बहुत हीं सीमित जगहों पे होती है। इस कपास (Cotton) को उपजाने के लिए ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है। ज्यादातर किसान इस कपास (Cotton) को नहीं लगते हैं, पर बाजार में इसकी सबसे अच्छी कीमत मिलती है।
सी-आइलैंड कॉटन (Sea Island Cotton)
सी-आइलैंड कॉटन (Sea Island Cotton) को विश्व की सबसे लंबी और मुलायम रेशे वाली कपास माना जाता है। यह अमेरिका के दक्षिण-पूर्वी तट के पास “Sea Islands” नामक द्वीपों (जॉर्जिया और साउथ कैरोलिना) में उगाई जाती थी। इसकी गुणवत्ता इतनी शानदार होती है कि इसका उपयोग खासकर लग्ज़री फैब्रिक्स में होता है।
मुख्य विशेषताएं
विशेषता | विवरण |
---|---|
🌾 रेशे की लंबाई | 1.5 से 2.5 इंच (लगभग 38 से 64 mm) |
✨ नरमी | अत्यंत मुलायम और चिकना |
💎 चमक | प्राकृतिक चमकदार सफेदी |
🧵 धागा | फाइन और स्ट्रॉन्ग यार्न में उपयोग |
उत्पादन क्षेत्र
देश | स्थान |
---|---|
अमेरिका | पहले जॉर्जिया, साउथ कैरोलिना (अब लगभग बंद) |
वेस्ट इंडीज | Barbados, Jamaica, Antigua जैसे द्वीप |
कृषि विशेषताएं
- मिट्टी: रेतीली और जलनिकासी युक्त मिट्टी
- जलवायु: गर्म और आर्द्र जलवायु
- खास बात: इसकी खेती कठिन और श्रम-प्रधान होती है, लेकिन बाजार में दाम बहुत अधिक मिलते हैं।
उपयोग
- लक्ज़री सूट, हैंडकरचीफ, शर्ट्स और फाइन लिनन फैब्रिक में
- उच्च श्रेणी की बेडशीट्स और ड्रेसिंग
ईजिप्शियन कॉटन (Egyptian Cotton)
ईजिप्शियन कॉटन (Egyptian Cotton) को भी प्रीमियम ग्रेड कपास माना जाता है। यह नील नदी (Nile River) के किनारे उगाई जाती है, जहां की मिट्टी और जलवायु इसकी गुणवत्ता को श्रेष्ठ बनाते हैं। इसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत मांग है।
मुख्य विशेषताएं
विशेषता | विवरण |
---|---|
🌾 रेशे की लंबाई | 1.25 से 2 इंच (लगभग 32 से 50 mm) |
✨ नरमी | बहुत ही सॉफ्ट और स्किन-फ्रेंडली |
💪 मजबूती | लंबे समय तक टिकाऊ |
💦 शोषण क्षमता | अधिक, जिससे रंग अच्छे से पकड़ता है |
उत्पादन क्षेत्र
देश | स्थान |
---|---|
मिस्र | Nile Delta क्षेत्र (मुख्य उत्पादन क्षेत्र) |
भारत (थोड़ी मात्रा में) | Tamil Nadu में कुछ प्रकार उगाए जाते हैं |
कृषि विशेषताएं
- मिट्टी: उपजाऊ दोमट (Alluvial) मिट्टी
- जलवायु: गर्म दिन और ठंडी रातें, उच्च आद्र्रता
- पानी: सिंचाई के लिए भरपूर जल की जरूरत
उपयोग
- प्रीमियम बेडशीट्स, तौलिए, गाउन, और हाई-एंड गारमेंट्स
- ब्रांडेड घरेलू कपड़ों में (जैसे कि होटल-ग्रेड लिनन)
तुलना तालिका: सी-आइलैंड (Sea Island Cotton) बनाम ईजिप्शियन कॉटन (Egyptian Cotton)
विशेषता | Sea Island Cotton | Egyptian Cotton |
---|---|---|
उत्पत्ति | अमेरिका | मिस्र |
रेशे की लंबाई | सबसे लंबा (1.5–2.5 इंच) | बहुत लंबा (1.25–2 इंच) |
चमक | अधिक | मध्यम |
मुलायमपन | अत्यधिक | बहुत अधिक |
उत्पादन | दुर्लभ और सीमित | ज्यादा मात्रा में |
मूल्य | बहुत महंगा | महंगा |
उपयोग | लग्ज़री सूट और यार्न | प्रीमियम बेडशीट्स और तौलिए |
तालिका: कपास (Cotton) के प्रकार
प्रकार (Type) | प्रमुख विशेषता (Key Feature) | उपयोग (Use) |
---|---|---|
गॉसिपियम अर्बोरियम (देसी कपास) | छोटी, मोटी फाइबर, कम पानी में अच्छी | मोटे वस्त्र, पारंपरिक उपयोग |
गॉसिपियम हर्बेशियम (देसी कपास) | छोटी फाइबर, विशेषतः पश्चिमी भारत में | मोटे वस्त्र, पारंपरिक उपयोग |
गॉसिपियम हिरसुटम (अमेरिकी कपास) | मध्यम से लंबी फाइबर, व्यापक रूप से | अधिकांश कपड़े, धागे, बीटी कपास का आधार |
गॉसिपियम बारबाडेंस (सी-आइलैंड) | सबसे लंबी, महीन फाइबर, उच्च गुणवत्ता | प्रीमियम कपड़े, धागे, विशेष वस्त्र |
कपास (Cotton) के लिए उपयुक्त मिट्टी और उसकी विशेषताएं क्या क्या है ? (What is the suitable soil for cotton and its characteristics?):
जब भी हमलोग किसी फसल की अच्छी पैदावार के बारे में सोचते हैं तो सबसे पहले मिट्टी का चुनाव करते हैं। कपास (Cotton) की अच्छी पैदावार के लिए सही मिट्टी का चुनाव सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है।

- मिट्टी का प्रकार: कपास (Cotton) के लिए मध्यम से भारी काली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। काली मिट्टी (Black cotton soil) इसके लिए आदर्श मानी जाती है क्योंकि इसमें नमी बनाए रखने की क्षमता सबसे अच्छी होती है।
- पीएच (pH) स्तर: कपास (Cotton) लगाने के लिए मिट्टी का पीएच (pH) मान 6.0 से 8.0 के बीच होना चाहिए, जो हल्का अम्लीय से हल्का क्षारीय होता है।
- पोषक तत्व: मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में जैविक पदार्थ (organic matter), नाइट्रोजन (nitrogen), फास्फोरस (phosphorus) और पोटेशियम (potassium) जैसे आवश्यक पोषक तत्व होने चाहिए। फसल चक्र से मिट्टी की उर्वरकता को बढ़ाया जा सकता है।
- जल निकासी: कपास (Cotton) की खेती के लिए खेतों की जल निकासी अच्छी होनी चाहिए ताकि खेतों में पानी का जमाव न हो, क्योंकि कपास (Cotton) की जड़ें पानी के जमाव के प्रति संवेदनशील होती हैं और ज्यादा पानी लगने से जड़े ख़राब हो जाती है।
- मिट्टी की गहराई: कपास (Cotton) की जड़ें गहरी जाती हैं, इसलिए कम से कम 60-90 सेमी गहरी मिट्टी बीज लगाना अच्छा माना गया है।
तालिका: कपास (Cotton) के लिए उपयुक्त मिट्टी की विशेषताएं
विशेषता (Characteristic) | विवरण (Description) |
---|---|
मिट्टी का प्रकार (Soil Type) | गहरी, अच्छी जल निकासी वाली काली मिट्टी (Black Soil) |
पीएच (pH) स्तर (pH Level) | 6.0 – 8.0 (हल्का अम्लीय से हल्का क्षारीय) |
पोषक तत्व (Nutrients) | जैविक पदार्थ, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम पर्याप्त मात्रा में |
जल निकासी (Drainage) | अच्छी जल निकासी (Good Drainage) |
मिट्टी की गहराई (Soil Depth) | कम से कम 60-90 सेमी गहरी (Deep Soil) |
कपास (Cotton) के लिए उपर्युक्त जलवायु (Climate for Cotton):
कपास (Cotton) एक उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय फसल है जिसे बढ़ने के लिए अच्छी नमी, पर्याप्त गर्मी और पर्याप्त धूप की आवश्यकता होती है।
- तापमान: कपास (Cotton) के बुवाई के समय 20-30°C तापमान आदर्श होता है। फसल के विकास और फसल पकने के लिए 21-27°C तापमान सर्वोत्तम होता है। ठंड और पाला कपास (Cotton) के लिए नुकसानदायक होते हैं। यहीं वजह है की भारत के सभी हिस्सों में इसकी खेती नहीं होती है।
- वर्षा: कपास (Cotton) को लगभग 500-1200 मिमी वर्षा की आवश्यकता होती है, जो अच्छी तरह से वितरित हो। शुरुआती विकास के लिए हल्की वर्षा और फिर फूलों और बोल बनने के समय शुष्क और सूखा मौसम बेहतर होता है। अत्यधिक वर्षा और नमी रोगों को बढ़ावा देती है।
- धूप: कपास (Cotton) को अच्छी धूप की आवश्यकता होती है, विशेषकर फसल पकने के समय।
तालिका: कपास (Cotton) के लिए उपयुक्त जलवायु
कारक (Factor) | आवश्यकता (Requirement) |
---|---|
तापमान (Temperature) | बुवाई: 20-30°C, विकास: 21-27°C |
वर्षा (Rainfall) | 500-1200 मिमी (वितरित), फूल-बोल बनने पर शुष्क मौसम |
धूप (Sunshine) | पर्याप्त धूप, विशेषकर बोल पकने के समय |
कपास (Cotton) की उन्नत किस्में और बुवाई का तरीका (Improved Varieties and Sowing of Cotton):
कपास (Cotton) के उन्नत किस्मों का चुनाव और सही बुवाई तकनीक अधिकतम पैदावार के लिए महत्वपूर्ण हैं। कपास के चुनाव के लिए कुछ निम्नलिखित बातों का धयान रखें।
- उन्नत किस्में: बीटी कपास (BT Cotton) भारत में सबसे अधिक उगाई जाने वाली किस्मों में से एक है क्योंकि यह कुछ प्रमुख कीटों, विशेषकर गुलाबी सुंडी (pink bollworm) के प्रति प्रतिरोधी क्षमता रखता है। बीटी कपास (BT Cotton) भारतीय मिट्टी और जलवायु के हिसाब से भी उपयुक्त है। इसके अलावा और भी विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों द्वारा विकसित कई अन्य उच्च उपज वाली किस्में भी बाजार में उपलब्ध हैं जो स्थानीय जलवायु और मिट्टी के अनुकूल होती हैं।
- बुवाई का समय: कपास (Cotton) की बुवाई का समय जलवायु, सिचाई का संसाधन और कपास (Cotton) किस्म पर निर्भर करता है। आमतौर पर, मानसून की शुरुआत के साथ या जून के पहले सप्ताह में बुवाई कर दी जाती है।जबकि जहाँ सिचाई का संसाधन होता है वहां मई में फसल लगा दिया जाता है।
- बुवाई विधि: कपास (Cotton) की बुवाई सीड ड्रिलिंग या पारम्परिक तरीके (हाथ से) की जाती है। पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दूरी किस्म और मिट्टी की उर्वरता पर निर्भर करती है, लेकिन आमतौर पर 90-120 सेमी x 30-45 सेमी की दूरी रखी जाती है। कपास (Cotton) की बुवाई सीड ड्रिल या सीड प्लांटर से करना सही माना जाता है। इससे बीज और समय की बचत होती है और साथ हीं मजदूरी भी काम लगता है।
मेरा सभी किसान भाइयों से अनुरोध है की किसी भी फसल लगाने से पहले अपने नजदीकी KVK (कृषि विज्ञान केंद्र ) या किसी जानकार से जरूर सलाह लें।
तालिका: कपास (Cotton) के लिए उपयुक्त जलवायु
कारक (Factor) | आवश्यकता (Requirement) |
---|---|
तापमान (Temperature) | बुवाई: 20-30°C, विकास: 21-27°C |
वर्षा (Rainfall) | 500-1200 मिमी (वितरित), फूल-बोल बनने पर शुष्क मौसम |
धूप (Sunshine) | पर्याप्त धूप, विशेषकर बोल पकने के समय |
सिंचाई और पोषण प्रबंधन का तरीका (Irrigation and Nutrient Management):
कपास (Cotton) को उसकी वृद्धि की विभिन्न अवस्थाओं में पर्याप्त पानी और पोषक तत्वों जैसे – रासायनिक खाद, कम्पोस्ट की आवश्यकता होती है।
- सिंचाई: कपास (Cotton) को फूल आने और बॉल बनने की अवस्था में पर्याप्त पानी की आवश्यकता होती है। ड्रिप सिंचाई (drip irrigation) पानी बचाने और पैदावार बढ़ाने का एक प्रभावी और उत्तम तरीका है। अत्यधिक सिंचाई से बचना चाहिए क्योंकि इससे जड़ में सड़न हो सकती है और फंगस का भी खतरा बना रहता है।
- पोषण प्रबंधन: मिट्टी परीक्षण के आधार पर रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करना सही रहता है। नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के अलावा, बोरॉन (boron) और जस्ता (zinc) जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की भी आवश्यकता होती है। जैविक खाद (organic manure) का उपयोग मिट्टी के स्वास्थ्य और उर्वरता में सुधार करता है तथा मिट्टी की पारंपरिक उर्वरकता बना रहता है।
कपास (Cotton) में लगने वाले प्रमुख रोग और कीट तथा उसपे नियंत्रण (Major Diseases and Pest Control in Cotton):
कपास (Cotton) की फसल को कई तरह के रोग और कीट प्रभावित करते हैं, जिससे फसल का भारी नुकसान हो सकता है। समय पर पहचान और नियंत्रण करने से नुकसान से बचा जा सकता है। इसलिए आवश्यक है कि हमेशा सजग होकर फसल की निगरानी करते रहें। कॉटन में लगने वाले कुछ मुख्य रोग निम्नलिखित है।
कपास (Cotton) में लगने वाले प्रमुख रोग (Major diseases in Cotton):
- विल्ट (Wilt): यह एक फंगल रोग है जिससे पौधे मुरझा जाते हैं। रोग प्रतिरोधी दवा का उपयोग करें और हमेशा फसल चक्र अपनाएं।
- पत्ती मोड़ विषाणु (Leaf Curl Virus): यह एक वायरल रोग है जो सफेद मक्खी द्वारा फैलता है। सफेद मक्खी का नियंत्रण करें और रोगग्रस्त पौधों को हटा दें। सफ़ेद मक्खी को नियंत्रण करने के लिए बहुत सरे रासायनिक दवा बाजार में उपलब्ध है।
- जीवाणु अंगमारी (Bacterial Blight): यह एक जीवाणु रोग है जिससे पत्तियों पर भूरे धब्बे पड़ जाते हैं। इस रोग की वजह से पौधें की वृद्धि कम जाती है। हमेशा बीज उपचार और प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें।
कपास (Cotton) में लगने वाले प्रमुख कीट (Major Pests in Cotton):
- गुलाबी सुंडी (Pink Bollworm): यह कपास (Cotton) में लगने वाला सबसे विनाशकारी कीट है, जो फूल और बोल को नुकसान पहुंचाता है। बीटी कपास (BT Cotton) इस कीट के प्रति प्रतिरोधी क्षमता रखता है, लेकिन अब इसके प्रति कीट में भी प्रतिरोधकता विकसित हो रही है, इसलिए हमेशा एकीकृत कीट प्रबंधन (Integrated Pest Management – IPM) अपनाएं।
- सफेद मक्खी (Whitefly): यह कपास (Cotton) पत्तियों से रस चूसती है और पत्ती मोड़ विषाणु फैलाती है। कीटनाशकों का उपयोग और पीले चिपचिपे जाल (yellow sticky traps) लगाएं। इससे किट चिपक जाते हैं और पौधों को बचाया जा सकता है।
- चेपा (Aphids) और हरा तेला (Jassids): ये भी रस चूसने वाले कीट हैं। जैविक नियंत्रण विधियों और उपयुक्त कीटनाशकों का उपयोग करके नियंत्रित किया जाता है।
- अमेरिकन बोलवर्म (American Bollworm): यह भी कपास के बॉल को नुकसान पहुंचाता है। फेरोमोन ट्रैप (pheromone traps) और जैविक नियंत्रण विधियों का उपयोग करना चाहिए।

रोग और कीट नियंत्रण के सामान्य उपाय (General Measures for Disease and Pest Control):
- स्वस्थ बीज और रोपण सामग्री का उपयोग करें।
- फसल चक्र (crop rotation) अपनाएं।
- खेत की स्वच्छता बनाए रखें।
- कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं को बढ़ावा दें।
- कीटनाशकों का विवेकपूर्ण उपयोग करें, रसायनों के अंधाधुंध छिड़काव से बचें।
- एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) तकनीकों को अपनाएं।
तालिका: कपास (Cotton) के प्रमुख रोग और उसपे नियंत्रण
समस्या (Problem) | प्रकार (Type) | लक्षण (Symptoms) | नियंत्रण (Control) |
---|---|---|---|
विल्ट (Wilt) | फंगल रोग | पत्तियां मुरझाना, पौधा सूखना | प्रतिरोधी किस्में, फसल चक्र |
पत्ती मोड़ विषाणु (Leaf Curl) | वायरल रोग | पत्तियां मुड़ना, छोटी होना | सफेद मक्खी नियंत्रण, रोगग्रस्त पौधे हटाना |
जीवाणु अंगमारी (Bacterial Blight) | जीवाणु रोग | पत्तियों पर भूरे धब्बे, तने पर घाव | बीज उपचार, प्रतिरोधी किस्में |
तालिका: कपास (Cotton) के प्रमुख कीट और उसपे नियंत्रण
समस्या (Problem) | प्रकार (Type) | लक्षण (Symptoms) | नियंत्रण (Control) |
---|---|---|---|
गुलाबी सुंडी (Pink Bollworm) | कीट | बोल के अंदर नुकसान, रेशे की गुणवत्ता में कमी | बीटी कपास, फेरोमोन ट्रैप, आईपीएम |
सफेद मक्खी (Whitefly) | कीट | पत्तियों से रस चूसना, काला फफूंद, विषाणु फैलाना | कीटनाशक, पीले चिपचिपे जाल |
चेपा (Aphids) | कीट | पत्तियों से रस चूसना, चिपचिपा पदार्थ | जैविक नियंत्रण, कीटनाशक |
हरा तेला (Jassids) | कीट | पत्तियों से रस चूसना, पत्तियां पीली पड़ना | कीटनाशक |
अमेरिकन बोलवर्म (American Bollworm) | कीट | बोल को नुकसान, छेद करना | फेरोमोन ट्रैप, जैविक नियंत्रण, आईपीएम |
कपास (Cotton) की कटाई और उपज (Harvesting and Yield):
कपास (Cotton) की कटाई आमतौर पर हाथ से होती है, सामान्यतः कपास की कटाई ३ चरणों में होती है। पर अधिक मजदूरी और अधिक समय लगने के कारण अब किसान मशीन से भी कपास की कटाई करने लगे हैं। इस cotton picking कहा जाता है।
- कटाई का समय: जब कपास (Cotton) के बॉल पूरी तरह खुल जाएं और रेशे मुलायम और फूले हुए और सूखे हों, तो समझे की कपास (Cotton) के कटाई का समय हो गया है।
- विधि: हाथ से कटाई (Hand Picking) से कपास (Cotton) की गुणवत्ता बेहतर रहती है, लेकिन इसमें बहुत समय, परिश्रम (मजदूरी) लगता है। मशीन से कटाई करने पर काम समय और काम मजदूरी लगता है। और अब बड़े पैमाने पर मशीन से कपास की कराइ की जाती है।
- उपज: बीज की उन्नत किस्मों, अच्छी खेती की पद्धत्ति और अनुकूल मौसम के साथ, प्रति एकड़ 8-12 क्विंटल (लगभग 2-3 टन प्रति हेक्टेयर) या इससे भी अधिक कपास (Cotton) की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
भारत में कपास (Cotton) का उत्पादन और उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य (Cotton Production and Major States in India):
भारत विश्व का सबसे बड़ा कपास (Cotton) उत्पादक देशों में से एक है। भारत की जलवायु कपास की खेती के लिए उपयुक्त है। भारत में उपजने वाली कपास में रोग/कीट प्रतिरोधी क्षमता ज्यादा है, जो कपास की खेती को भारत में बढ़ावा देता है। अब भारत में कपास (Cotton) का उत्पादन व्यापक रूप से फैला हुआ है।
तालिका: भारत में कपास (Cotton) उत्पादन और प्रमुख राज्य (अनुमानित 2024-25 के आंकड़े) (नोट: ये आंकड़े वर्ष-दर-वर्ष भिन्न हो सकते हैं और अनुमानित हैं। नवीनतम सटीक जानकारी के लिए कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट देखें।)
क्रम संख्या (S. No.) | राज्य (State) | अनुमानित उत्पादन (लाख गांठें) (Estimated Production in Lakh Bales – 170 kg each) | कुल उत्पादन में हिस्सेदारी (Approx. Share in Total Production) |
---|---|---|---|
1 | गुजरात (Gujarat) | 80-90 | 25-28% |
2 | महाराष्ट्र (Maharashtra) | 70-80 | 22-25% |
3 | तेलंगाना (Telangana) | 60-70 | 19-22% |
4 | आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) | 25-30 | 8-10% |
5 | राजस्थान (Rajasthan) | 20-25 | 6-8% |
6 | कर्नाटक (Karnataka) | 15-20 | 5-6% |
7 | मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) | 15-20 | 5-6% |
8 | पंजाब (Punjab) | 8-10 | 2-3% |
9 | हरियाणा (Haryana) | 8-10 | 2-3% |
10 | ओडिशा (Odisha) | 5-7 | 1-2% |
कुल भारत (Total India) | 300-330 (लगभग) | 100% |
कपास (Cotton) से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण बातें जो किसानों को लाभ पहुंचा सके (Other Important Information Related to Cotton for Farmers’ Benefit):
- जैविक कपास (Organic Cotton): जैविक कपास (Organic Cotton): बिना रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के कपास (Cotton) की खेती करने को जैविक कपास (Organic Cotton) कहते हैं। यह पर्यावरण के अनुकूल है और बाजार में बेहतर मूल्य दिला सकती है। जैविक कपास (Organic Cotton) के लिए किसान को जमीन की तैयारी बहुत अच्छे से करनी होती है। पारम्परिक रूप से जैविक कपास (Organic Cotton) की खेती बहुत मुश्किल है पर मशीनो द्वारा इस खेती को आसान बनाया जा सकता है।
- मूल्य संवर्धन (Value Addition): कपास (कॉटन) के खरीद बिक्री में दलाल को अक्सर देखा गया है। किसान अपनी कपास (Cotton) को सीधे मिलों को बेच सकते हैं या सहकारी समितियों के माध्यम से लघु उद्योग चला कर फिनिश गुडस के रूप में बेच कर अपने कपास (cotton) बेहतर मूल्य ले सकते हैं, जैसे कि बीज निकालना या धागा बनाना, दीप बत्ती बनाना।
- सरकारी योजनाएं और सहायता (Government Schemes and Support): कपास (cotton) को cash crop के श्रेणी में रखा गया है। भारत विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है जिससे भारत के अर्थव्यवस्था पे असर पड़ता है। जिस कारण भारत सरकार और राज्य सरकारें कपास (Cotton) किसानों के लिए विभिन्न योजनाएं चलाती हैं, जिनमें सब्सिडी, ऋण और प्रशिक्षण कार्यक्रम शामिल हैं। किसानों को इन योजनाओं का लाभ उठाना चाहिए।
- मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड (Soil Health Card): मिट्टी में pH , बैक्टरीआ, कीट और किसी तरह का infection का धयान रखें। नियमित रूप से अपनी मिट्टी का परीक्षण करवाएं और मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड के आधार पर उर्वरकों का उपयोग करें। मिट्टी का परीक्षण के लिए प्रत्येक जिले में लैब बना हुआ है। मिट्टी का परीक्षण किसान के खेती में होने वाले अनावश्यक खर्चों से बचाता है और मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखता है।
- फसल बीमा (Crop Insurance): किसान अपनी कपास (Cotton) की फसल का बीमा जरूर करवाएं ताकि प्राकृतिक आपदाओं या अन्य अनिश्चितताओं से होने वाले नुकसान से बच सके।
- बाजार की जानकारी (Market Information): कीमत के अनियमित्ता को देखते हुए किसान बाजार की कीमतों और रुझानों पर नज़र जरूर रखें ताकि आप अपनी फसल को सही समय पर और सही कीमत पर बेच सकें।
- किसान उत्पादक संगठन (FPO – Farmer Producer Organizations): एफपीओ (FPO) में शामिल होकर या उनका गठन करके, किसान सामूहिक रूप से अपनी उपज का प्रचार (Marketing) कर सकते हैं, जिससे उन्हें बेहतर सौदेबाजी की शक्ति और अधिक लाभ मिलता है। इसमें किसानों के साथ खरीदार को भी फायदा होता है। खरीदार को किसानों को ढूंढना नहीं पड़ता है।अधिक लाभ मिलता है।
- अद्यतन तकनीकें (Updated Technologies): कपास (Cotton) की खेती में समय समय पे बदलाव आते रहते हैं। नए जानकारी के लिए किसानों को कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) और इंटरनेट के माध्यम से नई कृषि तकनीकों और अनुसंधान के बारे में जानकारी प्राप्त करते रहना चाहिए।
कपास (Cotton) की खेती एक लाभदायक व्यवसाय हो सकता है यदि इसे सही ज्ञान, उन्नत तकनीकों और नये कृषि पद्धतियों के साथ किया जाए। एक लेखक के रूप में, मेरा उद्देश्य किसानों को सशक्त बनाना है ताकि किसान अपनी कृषि से अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न और उनके उत्तर
कपास की खेती के लिए कौन सी मिट्टी सबसे अच्छी होती है?

कपास की खेती के लिए गहरी काली मिट्टी (black cotton soil) सबसे उपयुक्त मानी जाती है। यह मिट्टी नमी को अच्छी तरह से बनाए रखती है और इसमें जल निकासी (drainage) की क्षमता भी अच्छी होती है। इसके अलावा, दोमट (loamy) और जलोढ़ (alluvial) मिट्टी भी उपयुक्त होती है, जिनका पीएच स्तर 6.0 से 7.5 के बीच हो। रेतीली, खारी या जल-जमाव वाली मिट्टी कपास के लिए अच्छी नहीं होती।
Note:- कपास के लिए काली मिट्टी (रेगुर) सबसे उपयुक्त होती है, जो जल धारण क्षमता वाली हो। दोमट मिट्टी भी चल सकती है यदि उसमें जल निकासी ठीक हो। pH मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
कपास की बुवाई का सही समय क्या है?
भारत में कपास की बुवाई का समय क्षेत्र और सिंचाई की उपलब्धता पर निर्भर करता है:
सिंचित क्षेत्रों में: अप्रैल के पहले सप्ताह से मई के पहले सप्ताह के बीच।
वर्षा आधारित क्षेत्रों में (खरीफ फसल): मानसून के सक्रिय होने के बाद जून के मध्य से जुलाई के पहले सप्ताह तक। समय पर बुवाई उपज को प्रभावित करती है, इसलिए सही समय का पालन करना महत्वपूर्ण है।
Note:- कपास की खेती गर्म जलवायु में की जाती है। इसकी बुवाई जून से जुलाई के बीच करनी चाहिए। खेत की गहरी जुताई करें और अच्छे जल निकास वाली दोमट या काली मिट्टी में बुवाई करें। बीज उपचार के बाद कतारों में 45-60 सेमी की दूरी पर बीज बोएं।
कपास की फसल के लिए कैसी जलवायु और तापमान आवश्यक है?
कपास एक गर्म मौसम की फसल है। इसके लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ अनुकूल होती हैं:
तापमान: 21°C से 30°C के बीच का उच्च तापमान। अंकुरण से लेकर पकने तक ठंढ-मुक्त अवधि (लगभग 210 दिन) आवश्यक है।
वर्षा: 500-1500 मिमी वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है, लेकिन अच्छी जल निकासी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जलभराव के प्रति संवेदनशील है। फूल और टिंडे बनने के दौरान हल्की बारिश या सिंचाई फायदेमंद होती है।
धूप: अच्छी वृद्धि और टिंडे खुलने के लिए प्रचुर मात्रा में तेज धूप आवश्यक है।
Note:– कपास की खेती के लिए गर्म और शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है। इसे 21°C से 30°C तापमान और 50-100 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है। अत्यधिक वर्षा या पाले से नुकसान होता है।
भारत में कपास का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन सा है?
आंकड़ों के अनुसार, गुजरात भारत में कपास का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। इसके बाद महाराष्ट्र, तेलंगाना, राजस्थान और पंजाब का स्थान आता है। ये रैंकिंग सालाना बदल सकती है।
बीटी कपास (Bt Cotton) क्या है और क्या यह भारत में अनुमती है?
बीटी कपास आनुवंशिक रूप से संशोधित (Genetically Modified – GM) कपास की किस्म है जिसमें बेसिलस थुरिंजेंसिस (Bacillus thuringiensis – Bt) नामक जीवाणु का जीन डाला गया है। यह जीन पौधों को कुछ कीटों, विशेष रूप से बोलवर्म (bollworm) के प्रति प्रतिरोधी बनाता है। हाँ, बीटी कपास भारत में व्यापक रूप से खेती के लिए अनुमत है और यह किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय है क्योंकि यह कीट नियंत्रण में मदद करता है और उपज बढ़ाता है।
कपास की एक एकड़ खेती से कितनी उपज और लाभ हो सकता है?
एक एकड़ में कपास की उपज और लाभ कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे किस्म, मिट्टी की उर्वरता, मौसम, कीट-रोग प्रबंधन और खेती के तरीके।
औसत उपज: 8 से 12 क्विंटल कच्ची कपास प्रति एकड़।
बाजार मूल्य (MSP): ₹5,500 से ₹6,500 प्रति क्विंटल (समय-समय पर बदलता है)।
सकल आय: ₹44,000 से ₹78,000 प्रति एकड़।
शुद्ध लाभ: अनुमानित ₹22,000 से ₹55,000 प्रति एकड़। (यह लागत को घटाकर है)।
Note:- सामान्यत: एक एकड़ में 8 से 12 क्विंटल तक कपास की उपज होती है। यदि आप उन्नत बीटी किस्म, सिंचाई और जैविक पोषण विधियों का उपयोग करते हैं तो यह बढ़कर 15 क्विंटल/एकड़ तक हो सकती है।
कपास की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट और उनके नियंत्रण के उपाय क्या हैं?
कपास के प्रमुख कीटों में गुलाबी सुंडी (Pink Bollworm), सफेद मक्खी (Whitefly), माहू (Aphids), हरा तेला (Jassids) और चेपा (Thrips) शामिल हैं।
नियंत्रण के उपाय: गुलाबी सुंडी: फेरोमोन ट्रैप, जैविक नियंत्रण (ट्राइकोग्रामा कार्ड), सही समय पर कीटनाशकों का प्रयोग (क्लोरेंट्रानिलिप्रोल)।
सफेद मक्खी, माहू, हरा तेला, चेपा: पीले चिपचिपे जाल, नीम आधारित कीटनाशक, जैविक नियंत्रण (लेडीबग), आवश्यकता पड़ने पर रासायनिक कीटनाशक (इमिडाक्लोप्रिड, थायामेथोक्साम)।
सामान्य उपाय: फसल चक्र, स्वस्थ बीज, खरपतवार नियंत्रण और नियमित निगरानी।
कपास की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनके नियंत्रण के उपाय क्या हैं?
कपास के प्रमुख रोगों में उकठा (Wilting), पत्ती मोड़ विषाणु (Leaf Curl Virus) और जीवाणु अंगमारी (Bacterial Blight) शामिल हैं।
नियंत्रण के उपाय: उकठा (विल्ट): रोग प्रतिरोधी किस्में, बीज उपचार (कार्बेन्डाजिम), जल निकासी, फसल चक्र।
पत्ती मोड़ विषाणु: रोगग्रस्त पौधों को हटाना, सफेद मक्खी का नियंत्रण (जैसा ऊपर बताया गया है), प्रतिरोधी किस्में।
जीवाणु अंगमारी: प्रतिरोधी किस्में, स्वच्छ बीज, बीज उपचार, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का छिड़काव।
सामान्य उपाय: खेत की स्वच्छता, संतुलित पोषण, और रोगों के शुरुआती लक्षणों पर ध्यान देना।
Note:– प्रमुख रोग:
लीफ कर्ल वायरस
बोल वॉर्म (Bollworm)
एंथ्रेक्नोज (Anthracnose)
नियंत्रण उपाय:
रोगरोधी किस्मों का चुनाव करें
नीम आधारित कीटनाशक छिड़कें
समय पर खरपतवार नियंत्रण करें
फेरोमोन ट्रैप लगाएं
क्या कपास की खेती के लिए सिंचाई आवश्यक है?
हाँ, कपास की खेती के लिए सिंचाई अक्सर आवश्यक होती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ वर्षा अनियमित या अपर्याप्त हो। हालांकि कपास को बहुत अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन फूल आने और टिंडे बनने के दौरान पानी की कमी से उपज पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
ड्रिप सिंचाई (Drip Irrigation): यह पानी बचाने और पौधों को सीधे पानी पहुंचाने का एक बहुत ही कुशल तरीका है, जो कपास की खेती के लिए अत्यधिक अनुशंसित है।
Note:- कपास की फसल को 5-6 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई 20-25 दिन में और फिर फूल निकलने के समय और जब बॉल बनने लगे तब करें। ड्रिप सिंचाई से जल की बचत और अधिक उपज मिलती है।
कपास की अच्छी गुणवत्ता और अधिक उपज के लिए कौन से उर्वरक और पोषक तत्व आवश्यक हैं?
कपास की अच्छी उपज और गुणवत्ता के लिए संतुलित पोषण महत्वपूर्ण है।
मुख्य पोषक तत्व: नाइट्रोजन (N), फास्फोरस (P) और पोटेशियम (K) आवश्यक हैं। नाइट्रोजन: वानस्पतिक वृद्धि और उपज के लिए महत्वपूर्ण।
फास्फोरस: जड़ विकास और प्रारंभिक वृद्धि के लिए।
पोटेशियम: रोग प्रतिरोधक क्षमता और रेशे की गुणवत्ता में सुधार करता है।
अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व: जिंक (Zn), बोरॉन (B), सल्फर (S) जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की भी आवश्यकता होती है।
उर्वरक प्रबंधन: मिट्टी परीक्षण के आधार पर और फसल की विभिन्न अवस्थाओं (बुवाई से पहले, वानस्पतिक वृद्धि, फूल आने के दौरान) में उचित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करें।
प्रति एकड़ मुख्य पोषक तत्त्व:
नाइट्रोजन (N) – 60-80 किग्रा
फास्फोरस (P) – 40-60 किग्रा
पोटाश (K) – 40-60 किग्रा
जैविक खाद जैसे गोबर खाद और वर्मी कंपोस्ट से भी अच्छा परिणाम मिलता है।
Note:- प्रति एकड़ मुख्य पोषक तत्त्व:
नाइट्रोजन (N) – 60-80 किग्रा
फास्फोरस (P) – 40-60 किग्रा
पोटाश (K) – 40-60 किग्रा
जैविक खाद जैसे गोबर खाद और वर्मी कंपोस्ट से भी अच्छा परिणाम मिलता है।
कपास की उन्नत किस्में कौन-कौन सी हैं?
भारत में लोकप्रिय कपास किस्में:
एच-4 (H-4)
बीटी कॉटन (Bt Cotton)
सी-आइलैंड कॉटन (Sea Island Cotton)
ईजिप्शियन कॉटन (Egyptian Cotton)
इनमें से सी-आइलैंड और ईजिप्शियन कॉटन उच्च गुणवत्ता व लंबी रेशों के लिए प्रसिद्ध हैं।
कपास की मार्केटिंग कैसे करें और कहां बेचें?
किसान मंडियों, APMC बाजार, ई-नाम (e-NAM) पोर्टल और कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (CCI) से सीधे संपर्क करके कपास को अच्छी कीमत पर बेच सकते हैं।