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किसान भाइयों, मटर की खेती सर्दियों के मौसम (रबी मौसम) की एक प्रमुख नकदी फसल है। मटर की खेती कम समय में अच्छा मुनाफा देने वाली फसल है, लेकिन अगर मटर की सिंचाई (Peas Irrigation) सही तरीके से न की जाए तो पैदावार पर सीधा असर पड़ता है। कई किसान या तो ज़्यादा पानी दे देते हैं या सही समय पर सिंचाई नहीं कर पाते, जिससे फूल गिरना, जड़ सड़न और फलियाँ कम बनना जैसी समस्याएँ आती हैं। इस लेख में हम आपको मटर की सिंचाई से जुड़ी पूरी जानकारी आसान, बोलचाल की भाषा में बताएँगे ताकि आप कम लागत में ज़्यादा उत्पादन ले सकें।
मटर की सिंचाई की आवश्यकता (Need for Peas Irrigation)
मटर की फसल में सही समय पर सिंचाई करना बहुत जरूरी होता है क्योंकि यह फसल अधिक पानी की नहीं, बल्कि नियमित नमी की मांग रखती है। मटर की सिंचाई (Peas Irrigation) फसल के अंकुरण, फूल आने और फली बनने के समय बेहद जरूरी होती है। पानी की कमी से फली का आकार छोटा और दाना सिकुड़ा रह जाता है। दूसरी ओर, अत्यधिक पानी से जड़ गलने (Root rot) और पीली झुलसा जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
मटर की सिंचाई का समय (Best Time for Peas Irrigation)
मटर की पहली सिंचाई बुवाई के 15–20 दिन बाद करनी चाहिए जब पौधे अंकुरित हो जाएं। दूसरी सिंचाई फूल आने के समय और तीसरी फली बनते समय करनी चाहिए। कुल मिलाकर 3 से 5 बार मटर की सिंचाई (Peas Irrigation) की आवश्यकता पड़ती है। ठंडे मौसम में तापमान के अनुसार सिंचाई की आवृत्ति कम होती है, जबकि गर्म मौसम में सिंचाई अंतराल घटाना पड़ता है।
सही सिंचाई विधि (Right Method of Irrigation)

मटर में पहली सिंचाई कब करें? (First Irrigation in Peas)
बुवाई के बाद मटर की सिंचाई (Peas Irrigation) का पहला चरण बहुत महत्वपूर्ण होता है। आमतौर पर बुवाई के 20–25 दिन बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए, जब पौधे 4–5 पत्तियों की अवस्था में हों। इस समय नमी की कमी होने पर पौधों की बढ़वार रुक जाती है। ध्यान रखें कि खेत में पानी भराव (Waterlogging) न हो, वरना जड़ें सड़ सकती हैं। हल्की और समान मटर की सिंचाई से पौधे तेज़ी से बढ़ते हैं और आगे चलकर फूल ज्यादा आते हैं।
फूल आने के समय सिंचाई (Irrigation at Flowering Stage)
फूल आने का समय मटर की सिंचाई (Peas Irrigation) के लिए सबसे संवेदनशील चरण माना जाता है। इस समय पानी की कमी होने पर फूल झड़ने लगते हैं, जिससे सीधा नुकसान होता है। इसलिए फूल आने से ठीक पहले और फूल अवस्था में एक हल्की लेकिन ज़रूरी सिंचाई करें। ध्यान रहे कि ज़्यादा पानी देने से फूल गिर सकते हैं, इसलिए संतुलन बहुत ज़रूरी है। सही मटर की सिंचाई से फलियाँ ज़्यादा संख्या में लगती हैं और उत्पादन बढ़ता है।
फलियाँ बनने पर सिंचाई (Irrigation at Pod Formation)
फलियाँ बनने के समय मटर की सिंचाई (Peas Irrigation) का सीधा संबंध दानों के आकार और वजन से होता है। इस अवस्था में अगर पानी की कमी हो जाए तो फलियाँ पतली रह जाती हैं और दाने पूरे विकसित नहीं हो पाते। इसलिए इस स्टेज पर 1–2 हल्की सिंचाई ज़रूर करें। याद रखें, पानी हमेशा नालियों (Furrows) के माध्यम से दें ताकि पौधे की जड़ें सुरक्षित रहें। सही मटर की सिंचाई से बाजार में अच्छी क्वालिटी की मटर मिलती है।
मटर में कितनी सिंचाई पर्याप्त है? (Number of Irrigations in Peas)
आमतौर पर मटर की सिंचाई (Peas Irrigation) के लिए 4–5 सिंचाई पर्याप्त होती हैं, लेकिन यह मिट्टी और मौसम पर निर्भर करता है। हल्की मिट्टी में सिंचाई की संख्या थोड़ी बढ़ सकती है, जबकि भारी मिट्टी में कम। ठंडे मौसम में पानी की ज़रूरत कम होती है, जबकि सूखे मौसम में ज़्यादा। सबसे जरूरी बात यह है कि हर सिंचाई के बाद खेत में पानी न रुके। संतुलित मटर की सिंचाई (Peas Irrigation) से लागत कम होती है और पैदावार ज़्यादा मिलती है।
गलत सिंचाई से होने वाले नुकसान (Losses Due to Improper Irrigation)
अगर मटर की सिंचाई (Peas Irrigation) सही तरीके से न की जाए तो कई समस्याएँ पैदा हो सकती हैं। ज़्यादा पानी देने से जड़ सड़न (Root Rot), पीला पड़ना और रोग लगने का खतरा बढ़ जाता है। वहीं कम पानी देने से पौधे कमजोर हो जाते हैं और फलियाँ कम बनती हैं। इसलिए समय और मात्रा का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। सही मटर की सिंचाई से आप इन नुकसानों से बच सकते हैं और बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं।
मटर की सिंचाई के लिए आधुनिक तरीके (Modern Irrigation Methods for Peas)

आजकल मटर की सिंचाई (Peas Irrigation) के लिए पारंपरिक बहाव विधि (Flood Irrigation) के बजाय आधुनिक तकनीकें जैसे फव्वारा सिंचाई (Sprinkler) और ड्रिप सिंचाई (Drip Irrigation) बहुत कारगर साबित हो रही हैं। मटर की फसल को हल्की सिंचाई पसंद है, और फव्वारा विधि ओस जैसी नमी प्रदान करती है जो पाले से भी बचाव करती है। वहीं ड्रिप सिंचाई सीधे जड़ों तक पानी पहुँचाती है, जिससे पानी की 40-50% तक बचत होती है और खाद भी सीधे जड़ों तक दी जा सकती है। इन तकनीकों को अपनाकर किसान भाई न केवल पानी बचा सकते हैं, बल्कि खरपतवार की समस्या को भी कम कर सकते हैं।
सिंचाई के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां (Precautions During Irrigation)
मटर की सिंचाई (Peas Irrigation) करते समय कुछ सावधानियां रखना बहुत जरूरी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मटर के खेत में पानी का भराव नहीं होना चाहिए; जल निकासी की व्यवस्था दुरुस्त होनी चाहिए। यदि खेत में पानी जमा रहता है, तो ‘उकठा’ (Wilt) जैसी बीमारियां लगने का खतरा बढ़ जाता है। हमेशा शाम के समय या सुबह जल्दी सिंचाई करें ताकि वाष्पीकरण कम हो। साथ ही, तेज हवा चलते समय सिंचाई न करें, क्योंकि इससे मटर के कमजोर पौधे जमीन पर गिर सकते हैं। सही मात्रा और सही दिशा में पानी का प्रबंधन ही सफल खेती की कुंजी है।
सरकारी योजनाएँ और किसान क्रेडिट कार्ड (Government Schemes and KCC)
मटर के रोग (Peas diseases): खेती में मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए किसान सरकारी योजनाओं का भी लाभ उठा सकते हैं। ये योजनाएँ खेती की लागत को कम करने और पूंजी (Capital) की व्यवस्था करने में मदद करती हैं।
मटर के रोग (Peas diseases): भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा चलाई जाने वाली कई योजनाएँ हैं, जो किसानों को सब्ज़ी और बागवानी (Horticulture) फसलों के लिए सब्सिडी (Subsidy) देती हैं।
- राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM): इस योजना के तहत, आलू की खेती के लिए उन्नत बीज, प्लांटर मशीन, कोल्ड स्टोरेज बनाने और माइक्रो-इरिगेशन सिस्टम लगाने पर सब्सिडी मिल सकती है।
- प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN): यह योजना सीधे किसानों के खाते में सालाना ₹6,000 की वित्तीय सहायता देती है, जिसका उपयोग किसान खेती के छोटे-मोटे ख़र्चों के लिए कर सकते हैं।
सबसे ज़रूरी है किसान क्रेडिट कार्ड (Kisan Credit Card – KCC)। केसीसी के ज़रिए किसान बहुत कम ब्याज दर पर (लगभग 4% प्रति वर्ष) खेती के लिए लोन (Loan) ले सकते हैं। इस पैसे का उपयोग आलू के बीज, खाद, कीटनाशक खरीदने या बुवाई के ख़र्चों को पूरा करने के लिए किया जा सकता है। इससे किसान को तुरंत पैसा उधार लेने या अपनी बचत को ख़र्च करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। किसान को हमेशा अपने क्षेत्र के कृषि विभाग या बागवानी विभाग से संपर्क करके नवीनतम योजनाओं और सब्सिडी के बारे में जानकारी लेते रहना चाहिए।
- सीड ड्रिल और पैडी ड्रिल मशीन पर सब्सिडी उपलब्ध
- कृषि विभाग द्वारा प्रशिक्षण और डेमो प्लॉट
- ऑनलाइन जानकारी: भारत सरकार कृषि पोर्टल
- प्रेस इनफार्मेशन सरकारी रिलीज
- बीज आवेदन के लिए यहाँ क्लिक करें।
FAQ: मटर की सिंचाई (Peas Irrigation) पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
मटर में कितनी सिंचाई की आवश्यकता होती है?
सामान्यतः मटर में 2 से 3 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है, जो मिट्टी की नमी और जलवायु पर निर्भर करती है।
क्या बहुत अधिक पानी देने से मटर की फसल खराब हो सकती है?
हाँ, मटर को अधिक पानी सहन नहीं होता। जलभराव से जड़ें सड़ सकती हैं और पौधों का विकास रुक सकता है।
क्या पाले से बचाने के लिए सिंचाई जरूरी है?
जी हाँ, जब कड़ाके की ठंड और पाला पड़ने की संभावना हो, तब मटर की सिंचाई (Peas Irrigation) हल्की मात्रा में करने से फसल को नुकसान से बचाया जा सकता है।
मटर की खेती के लिए सबसे अच्छी मिट्टी कौन सी है?
मटर के लिए दोमट या मटियार दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो।
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