Table of Contents
खेती के पारंपरिक तरीकों में सीमित भूमि से रिटर्न सीमित रहता है। लेकिन आधुनिक दृष्टिकोण अपनाकर किसान कम निवेश में अधिक लाभ पा सकते हैं। यह लेख बताता है कैसे मल्टी लेयर फार्मिंग और इंटीग्रेटेड मॉडल अपनाकर खेती को मुनाफे का जरिया बनाया जा सकता है।
मल्टी लेयर (फार्मिंग) कृषि का परिचय – Multi layer Farming Explained

मल्टी लेयर फार्मिंग (खेती) (Multi layer farming) एक ऐसी उन्नत कृषि तकनीक है जिसमें एक ही खेत या प्लॉट पर अलग‑अलग ऊँचाई और समय पर तैयार होने वाली फसलें एक साथ उगाई जाती हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि जमीन का उपयोग अधिकतम स्तर पर होता है और किसान को एक ही सीजन में कई फसलों की पैदावार मिलती है।
मल्टी लेयर फार्मिंग खेती क्यों जरूरी है?
- सीमित भूमि का अधिकतम उपयोग: मल्टी लेयर फार्मिंग छोटे और सीमित प्लॉट वाले किसानों के लिए यह तकनीक बहुत उपयोगी है।
- निरंतर आमदनी: अलग‑अलग फसलें अलग समय पर तैयार होती हैं, जिससे साल भर नियमित आमदनी मिलती है।
- जोखिम में कमी: मल्टी लेयर फार्मिंग में अगर एक फसल खराब हो जाए तो दूसरी से नुकसान की भरपाई हो जाती है।
- मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है: मल्टी लेयर फार्मिंग में अलग-अलग फसलों की जड़ें मिट्टी की गहराई में अलग स्तर पर पोषण लेती हैं, जिससे मिट्टी का संतुलन बना रहता है।
कौन‑कौन सी फसलें उगाई जा सकती हैं?
- भूमिगत फसलें: मूली, गाजर, अदरक, हल्दी।
- मध्यम ऊँचाई की फसलें: पालक, मेथी, धनिया।
- ऊँची फसलें या बेलदार पौधे: टमाटर, लौकी, करेला।
- पेड़ या लम्बी अवधि वाली फसलें: केला, पपीता या ड्रमस्टिक (सहजन)।
इस मॉडल से कम लागत में ज्यादा उत्पादन और दोगुनी आमदनी संभव हो जाती है।
ऑर्गेनिक एवं प्राकृतिक खेती – Organic and Natural Farming
ऑर्गेनिक खेती (Organic farming) और प्राकृतिक खेती (Natural farming) आधुनिक कृषि का वह मॉडल है, जहाँ रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का उपयोग न करके, पूरी तरह जैविक तरीकों से फसल उगाई जाती है। यह न केवल स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है।
ऑर्गेनिक खेती (Organic farming) के फायदे
- स्वस्थ और स्वादिष्ट उत्पादन: ऑर्गेनिक फसल में केमिकल का अवशेष नहीं रहता, जिससे इसका स्वाद और पोषण बेहतर होता है।
- मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है: जैविक खाद और वर्मी कम्पोस्ट से मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्व बने रहते हैं।
- दीर्घकालिक टिकाऊपन: लगातार ऑर्गेनिक प्रैक्टिस अपनाने से खेत लंबे समय तक उपजाऊ रहता है।
- बाजार में अधिक मूल्य: ऑर्गेनिक उत्पादों की मांग बढ़ रही है, जिससे किसान को प्रीमियम दाम मिलते हैं।
प्राकृतिक खेती (Natural farming) में क्या शामिल है?
- जैविक खाद का प्रयोग: गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद।
- जैविक कीटनाशक: नीम का तेल, जीवामृत, दशपर्णी अर्क।
- मल्चिंग तकनीक: मिट्टी की नमी बनाए रखने और खरपतवार रोकने के लिए।
- स्थानीय बीजों का उपयोग: स्थानीय परिस्थितियों में अनुकूलित देसी बीज।
ऑर्गेनिक खेती (Organic farming) में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें
- सब्जियाँ: भिंडी, बैंगन, टमाटर, लौकी।
- अनाज: ज्वार, बाजरा, मक्का।
- फल: अमरूद, केला, पपीता।
- मसाले: हल्दी, अदरक, धनिया।
ऑर्गेनिक एवं प्राकृतिक खेती – Organic and Natural Farming किसानों की आमदनी कैसे बढ़ाती है?
- उत्पाद का प्रीमियम मूल्य – ऑर्गेनिक लेबल मिलने पर बाजार मूल्य 20-30% अधिक मिलता है।
- कम इनपुट लागत – रसायन खरीदने का खर्च नहीं, घर का बना जैविक खाद उपयोग।
- ग्राहक सीधा जुड़ाव – किसान बाजार (farmer market) या ऑनलाइन ऑर्गेनिक स्टोर्स से सीधी बिक्री।
क्रॉप डाइवर्सिफिकेशन और मल्टिक्रॉप मॉडल – Crop Diversification Strategy
क्रॉप डाइवर्सिफिकेशन (Crop Diversification) और मल्टिक्रॉप मॉडल खेती का ऐसा तरीका है जिसमें एक ही खेत में अलग-अलग मौसम और समय की कई फसलें एक साथ उगाई जाती हैं। इसका उद्देश्य है – आय के स्रोत बढ़ाना, जोखिम कम करना और मिट्टी की सेहत बनाए रखना।

क्रॉप डाइवर्सिफिकेशन (Crop Diversification) क्यों जरूरी है?
- एक फसल पर निर्भरता खत्म होती है: अगर किसी कारणवश एक फसल खराब हो जाए तो अन्य फसलों से नुकसान की भरपाई हो सकती है।
- आय का निरंतर स्रोत: अलग-अलग फसलें अलग समय पर तैयार होने से सालभर आमदनी होती रहती है।
- मिट्टी का पोषण संतुलन: दलहनी, तिलहनी और अनाज की फसलों का मिश्रण मिट्टी को प्राकृतिक रूप से उर्वर बनाता है।
- बाजार की मांग पूरी करना: अलग-अलग उत्पाद होने से किसान अलग-अलग मंडियों और ग्राहकों तक पहुंच पाता है।
मल्टिक्रॉप (Multi Crop) मॉडल कैसे अपनाएं?
- फसल चयन: ऐसी फसलें चुनें जो मौसम, मिट्टी और पानी की उपलब्धता के अनुसार एक-दूसरे के पूरक हों।
- फसल चक्र (Crop Rotation): एक सीजन में अनाज, दूसरे में सब्जी, तीसरे में दलहन – इससे मिट्टी का पोषण बना रहता है।
- सिंचाई और पोषण प्रबंधन: अलग-अलग फसलों के लिए अलग सिंचाई जरूरतों को समझें और ड्रिप या स्प्रिंकलर अपनाएं।
- समय पर कटाई और बुवाई: प्रत्येक फसल के लिए समय का तालमेल महत्वपूर्ण है।
कौन-कौन सी फसलें एक साथ ली जा सकती हैं?
- दलहन + अनाज: चना + गेहूं, मटर + जौ।
- सब्जी + फल: टमाटर + पपीता, बैंगन + केला।
- मसाले + अनाज: हल्दी + धान, अदरक + मक्का।
क्रॉप डाइवर्सिफिकेशन (Crop Diversification) दोगुनी आमदनी कैसे होती है?
- एक ही सीजन में दो-तीन उत्पाद बेचने से कुल आमदनी बढ़ जाती है।
- अलग-अलग फसलों के मूल्य का संयोजन लाभदायक साबित होता है।
- जोखिम विभाजन होने से किसानों की वित्तीय स्थिरता बढ़ती है।
एग्रीटेक और स्मार्ट उपकरण – AgriTech Integration
खेती में एग्रीटेक (AgriTech) और स्मार्ट उपकरणों का उपयोग आज की सबसे बड़ी जरूरत बन चुका है। आधुनिक तकनीकें जैसे ड्रिप इरिगेशन, सेंसर बेस्ड मॉनिटरिंग, मोबाइल ऐप और ड्रोन सर्वे न केवल किसानों का समय और मेहनत बचाती हैं, बल्कि उत्पादन को भी कई गुना बढ़ा देती हैं।

खेती में एग्रीटेक (Agritech) का महत्व
- सटीक सिंचाई (Precision Irrigation): ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम से पानी सीधा पौधों की जड़ों तक पहुंचता है, जिससे पानी की 50-60% बचत होती है।
- स्मार्ट मॉनिटरिंग: मिट्टी और मौसम सेंसर से नमी, तापमान और पोषक तत्वों की जानकारी तुरंत मिल जाती है।
- ड्रोन टेक्नोलॉजी: फसल की सेहत जांचने, कीटनाशक छिड़काव और सर्वे के लिए ड्रोन बेहद कारगर हैं।
- मोबाइल ऐप और पोर्टल: कीमतों की जानकारी, मौसम पूर्वानुमान और खेती की सलाह मोबाइल पर उपलब्ध।
स्मार्ट उपकरणों के उदाहरण
- ड्रिप और स्प्रिंकलर किट: कम लागत में पानी की बचत।
- सोइल मॉइस्चर सेंसर: नमी मापकर सही समय पर सिंचाई की योजना।
- ड्रोन स्प्रेयर: बड़े खेतों में कीटनाशक छिड़कने के लिए।
- कृषि मोबाइल ऐप: मंडी भाव, सरकारी योजना और उर्वरक जानकारी।
एग्रीटेक (Agritech) से दोगुनी आमदनी कैसे होती है?
- पानी और खाद की बचत: कम खर्च और अधिक उत्पादन।
- सटीक जानकारी: गलत फैसलों से होने वाला नुकसान रुकता है।
- तेज़ कामकाज: फसल प्रबंधन समय पर होने से गुणवत्ता बनी रहती है।
- बेहतर बाजार संपर्क: मोबाइल ऐप से सीधे ग्राहकों तक पहुंच।
किन किसानों के लिए एग्रीटेक (Agritech) तकनीक सही है?
- छोटे किसान: कम लागत वाले सेंसर और ड्रिप सिस्टम।
- मध्यम किसान: ड्रोन और ऑटोमेटिक स्प्रिंकलर।
- बड़े किसान: IoT आधारित मॉनिटरिंग सिस्टम।
प्रशिक्षण और साझा‑शिक्षा मॉडल – Farmer Training & Knowledge Sharing
खेती को मुनाफे का व्यवसाय बनाने के लिए केवल तकनीक ही काफी नहीं होती, बल्कि ज्ञान (Knowledge) और प्रशिक्षण (Training) भी उतना ही महत्वपूर्ण है। जब किसान नई तकनीकों, फसल चक्र, ऑर्गेनिक खाद और बाजार प्रबंधन के बारे में सीखते हैं और आपस में जानकारी साझा करते हैं, तो उनकी सफलता दर कई गुना बढ़ जाती है।
प्रशिक्षण क्यों जरूरी है?
- नई तकनीकों की जानकारी: एग्रीटेक, मल्टी-लेयर फार्मिंग, ड्रिप इरिगेशन जैसी तकनीकों का सही उपयोग।
- फसल रोग और कीट प्रबंधन: स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार रोग पहचानना और जैविक नियंत्रण सीखना।
- बाजार समझना: मंडी भाव, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और सीधा ग्राहक जुड़ाव।
- सरकारी योजनाओं का लाभ: सब्सिडी और स्कीम की जानकारी समय पर मिलना।
साझा‑शिक्षा (Peer Learning) के फायदे
- किसान एक-दूसरे से व्यावहारिक अनुभव साझा कर सकते हैं।
- स्थानीय समस्याओं के लिए स्थानीय समाधान जल्दी मिलते हैं।
- छोटे समूह बनाकर सामूहिक खरीद और बिक्री करना आसान होता है।
- नेटवर्किंग से नई संभावनाएं और पार्टनरशिप बढ़ती हैं।
प्रशिक्षण कहाँ से लें?
- कृषि विज्ञान केंद्र (KVK): नियमित ट्रेनिंग प्रोग्राम।
- ऑनलाइन वेबिनार और मोबाइल ऐप: मुफ्त या कम कीमत पर प्रशिक्षण।
- किसान उत्पादक संगठन (FPO): सामूहिक ट्रेनिंग और स्किल डेवलपमेंट।
- सरकारी कृषि मेलें और एक्सपो: नवीनतम उपकरण और तरीकों की जानकारी।
इससे दोगुनी आमदनी कैसे संभव?
- नई तकनीकों के सही उपयोग से फसल नुकसान कम और उत्पादन ज्यादा होता है।
- सही समय पर मार्केटिंग सीखने से उत्पाद का बेहतर दाम मिलता है।
- सामूहिक ताकत से लागत कम और मुनाफा बढ़ता है।
आर्थिक लेखा‑जोखा और लागत पर लाभ – Economics: Cost vs. Profit
खेती में सही आर्थिक योजना (Economic Planning) बेहद जरूरी है। बहुत से किसान अच्छी फसल उगाने के बावजूद नुकसान झेलते हैं क्योंकि उन्हें लागत (Cost) और लाभ (Profit) का संतुलन समझ में नहीं आता। अगर किसान मल्टी‑लेयर खेती, ऑर्गेनिक मॉडल और क्रॉप डाइवर्सिफिकेशन को अपनाते हैं, तो शुरुआती लागत थोड़ी अधिक हो सकती है, लेकिन लंबे समय में लाभ दोगुना होता है।
लागत के मुख्य घटक
- बीज और रोपाई की लागत – उच्च गुणवत्ता वाले बीज या पौध तैयार करने पर खर्च।
- खाद और उर्वरक – ऑर्गेनिक खाद तैयार करने का श्रम और सामग्री।
- सिंचाई प्रणाली – ड्रिप या स्प्रिंकलर इंस्टॉलेशन का खर्च।
- श्रम लागत – बुवाई, निराई, कटाई और पैकेजिंग का श्रम मूल्य।
- उपकरण और तकनीक – सेंसर, मोबाइल ऐप, ड्रोन जैसी तकनीकें।
लाभ (Profit) के मुख्य स्रोत
- बहु-फसल आय (Multiple Crops Income): एक ही सीजन में कई फसलें बेचने से आमदनी बढ़ती है।
- ऑर्गेनिक प्रीमियम मूल्य: ऑर्गेनिक फसलों की कीमत सामान्य फसलों से 20–30% अधिक होती है।
- कम इनपुट लागत: रसायन और पानी की बचत होने से कुल खर्च कम होता है।
- सीधा विक्रय (Direct Marketing): बिचौलियों को हटाकर अधिक मुनाफा।
उदाहरण: एक एकड़ मल्टी-लेयर खेती का अनुमानित लेखा-जोखा
- लागत:
- बीज और रोपाई – ₹15,000
- जैविक खाद – ₹8,000
- सिंचाई और उपकरण – ₹12,000
- श्रम – ₹10,000
- कुल लागत: लगभग ₹45,000
- लाभ:
- फसल A (सब्जी) – ₹40,000
- फसल B (फल) – ₹50,000
- फसल C (दलहन/मसाला) – ₹30,000
- कुल आमदनी: लगभग ₹1,20,000
- शुद्ध लाभ: ₹75,000 (यानी लागत का लगभग 1.7 गुना)
दीर्घकालिक लाभ (Long term Profit)
- तकनीक और प्रशिक्षण में शुरुआती निवेश एक-दो साल में निकल आता है।
- मिट्टी की सेहत सुधरने से आगे की लागत घटती है।
- मार्केट नेटवर्क बन जाने से उत्पाद बेचने में स्थिरता आती है।
पालन‑पोषण और मार्केटिंग रणनीतियाँ – Crop Management & Marketing
खेती में सही प्रबंधन (Crop Management) और स्मार्ट मार्केटिंग (Marketing Strategies) उतने ही जरूरी हैं जितनी फसल की बुवाई और कटाई। सही देखभाल से पैदावार की गुणवत्ता बढ़ती है और स्मार्ट बिक्री रणनीतियों से मुनाफा कई गुना बढ़ सकता है।
फसल का पालन‑पोषण कैसे करें?
- समय पर सिंचाई:
- ड्रिप इरिगेशन से पौधों को जरूरत के मुताबिक पानी दें।
- मिट्टी की नमी पर नज़र रखने के लिए मॉइस्चर सेंसर का उपयोग करें।
- खरपतवार नियंत्रण:
- जैविक मल्चिंग और हाथ से निराई करें।
- नीम आधारित बायो‑पेस्टीसाइड से खरपतवार और कीट प्रबंधन।
- पौधों की नियमित जांच:
- रोग के शुरुआती संकेतों पर तुरंत जैविक उपचार करें।
- फसल की पत्तियों और जड़ों की हेल्थ चेक करें।
- मिट्टी परीक्षण:
- हर सीजन के बाद मिट्टी का pH और पोषक तत्व जाँचें।
- जरूरत के हिसाब से ऑर्गेनिक खाद और हरी खाद डालें।
स्मार्ट मार्केटिंग रणनीतियाँ
- सीधा ग्राहक विक्रय (Direct to Consumer):
- किसान बाजार, हाट-बाजार या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का उपयोग करें।
- ताजगी और गुणवत्ता दिखाने के लिए सोशल मीडिया पेज बनाएं।
- फसल ब्रांडिंग:
- अपनी पैकिंग पर “ऑर्गेनिक” या “केमिकल-फ्री” टैग लगाएँ।
- आकर्षक लेबलिंग से उपभोक्ता का विश्वास बढ़ता है।
- कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग:
- कंपनियों या रेस्टोरेंट के साथ पहले से अनुबंध कर लें।
- तय कीमत मिलने से जोखिम कम होता है।
- स्टोरेज और सप्लाई चेन:
- उचित कोल्ड स्टोरेज और लॉजिस्टिक्स अपनाएँ।
- खराब होने वाली फसलों को तुरंत बेचें और लंबे समय तक टिकने वाली फसलों को बाद में।
लाभ क्यों बढ़ता है?
- सीधी बिक्री से बिचौलियों का मार्जिन बचता है।
- ब्रांडिंग और प्रीमियम क्वालिटी से ऊँचे दाम मिलते हैं।
- समय पर प्रबंधन से फसल खराब होने की संभावना घटती है।
सक्सेस स्टोरीज़ (उदाहरण स्वरूप) – Case Studies Without Names
खेती के नए मॉडल को अपनाने वाले किसानों की कहानियाँ इस बात का सबूत हैं कि सही तकनीक, योजना और मार्केटिंग से दोगुनी आमदनी पूरी तरह संभव है। यहाँ तीन उदाहरण प्रस्तुत हैं, जिनमें किसी किसान का नाम या स्थान नहीं लिया गया है, लेकिन उनके तरीके और नतीजे आपको प्रेरित करेंगे।
उदाहरण 1: मल्टी-लेयर फार्मिंग से सब्जी और फल का संगम
एक छोटे किसान ने अपनी आधी एकड़ जमीन पर मल्टी-लेयर खेती शुरू की।
- नीचे की परत में अदरक और हल्दी,
- बीच की परत में टमाटर और भिंडी,
- और ऊपरी परत में पपीता लगाया।
साल भर में अलग-अलग समय पर फसलें तैयार हुईं। कुल आमदनी पहले से 2.2 गुना बढ़ी और मिट्टी की उर्वरता भी बेहतर हुई।
उदाहरण 2: ऑर्गेनिक खेती और डायरेक्ट मार्केटिंग का मेल

दूसरे किसान ने पूरी तरह जैविक खाद और नीम आधारित बायो‑पेस्टीसाइड का उपयोग शुरू किया।
- उत्पाद को सीधे लोकल बाजार और सोशल मीडिया पर प्रमोट किया।
- ग्राहकों को “केमिकल-फ्री सब्जी” की गारंटी दी।
नतीजा – ग्राहकों का भरोसा बढ़ा और सब्जियाँ सामान्य से 25% ऊँचे दाम पर बिकीं।
उदाहरण 3: टेक्नोलॉजी और प्रशिक्षण का संयोजन
तीसरे किसान ने स्मार्ट सेंसर और ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगाया।
- किसान प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया और फसल प्रबंधन सीखा।
- मोबाइल ऐप से मंडी भाव और मौसम अपडेट लेता रहा।
नतीजा – पानी की 50% बचत, रोग का सही समय पर पता और फसल नुकसान में भारी कमी। आमदनी एक साल में दोगुनी हो गई।
इन कहानियों से सीख
- नवाचार अपनाने से डरें नहीं।
- छोटा शुरू करें, अनुभव लेकर धीरे-धीरे विस्तार करें।
- तकनीक, प्रशिक्षण और मार्केटिंग का संतुलन बनाकर काम करें।
FAQs (Google पर पूछे जाने वाले प्रश्न)
मल्टी लेयर फार्मिंग क्या है? – What is Multi Layer Farming?
मल्टी‑लेयर फार्मिंग वह पद्धति है जिसमें एक ही खेत पर अलग‑अलग ऊँचाई और समय पर तैयार होने वाली फसलें एक साथ उगाई जाती हैं, जैसे – नीचे अदरक/हल्दी, बीच में सब्जियाँ और ऊपर फलदार पेड़।
मल्टी लेयर फार्मिंग (खेती) की ट्रेनिंग कहाँ मिल सकती है? – Where to Get Multi Layer Farming Training?
मल्टी लेयर फार्मिंग (खेती) की ट्रेनिंग:-
कृषि विज्ञान केंद्र (KVK)
राज्य कृषि विश्वविद्यालय
सरकारी किसान मेले और एक्सपो
ऑनलाइन कृषि वेबिनार और मोबाइल ऐप
क्या मल्टी लेयर फार्मिंग शहरी क्षेत्रों में भी की जा सकती है? – Can Multi‑Layer Farming be Done in Urban Areas?
हाँ, छोटे पैमाने पर इसे रूफटॉप गार्डन या बैकयार्ड में भी मल्टी लेयर फार्मिंग अपनाया जा सकता है।
मल्टी लेयर फार्मिंग में मिट्टी की गुणवत्ता पर क्या असर पड़ता है? – Soil Quality Impact in Multi Layer Farming?
मल्टी लेयर फार्मिंग से मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन बना रहता है और दीर्घकालिक उर्वरता बढ़ती है।
मल्टी लेयर फार्मिंग शुरू करने की लागत कितनी है? – Cost to Start Multi Layer Farming?
मल्टी लेयर फार्मिंग शुरू करने में प्रारंभिक लागत लगभग ₹20,000–₹25,000 प्रति एकड़ आती है, जो पहली या दूसरी फसल के बाद निकल सकती है।
क्या मल्टी लेयर फार्मिंग के लिए सरकारी सब्सिडी मिलती है? – Is Government Subsidy Available for Multi Layer Farming?
हाँ, कई राज्यों में जैविक और मल्टी लेयर फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी और ट्रेनिंग प्रोग्राम उपलब्ध हैं।
मल्टी लेयर फार्मिंग में पानी और खाद की खपत कैसी होती है? – Water and Fertilizer Use in Multi Layer Farming?
इस पद्धति में ड्रिप इरिगेशन और ऑर्गेनिक खाद का उपयोग होता है, जिससे पानी और खाद की खपत 40-50% कम हो जाती है।
मल्टी लेयर फार्मिंग के लिए कितनी जमीन चाहिए? – Land Requirement for Multi Layer Farming?
यह खेती आधे एकड़ से लेकर बड़े खेतों तक में की जा सकती है। छोटे किसानों के लिए भी यह तकनीक फायदेमंद है।
मल्टी लेयर फार्मिंग में कौन‑सी फसलें सबसे उपयुक्त हैं? – Best Crops for Multi Layer Farming?
निचली परत (Root Crops): अदरक, हल्दी, शकरकंद
मध्य परत (Leafy/Vegetables): टमाटर, भिंडी, बैंगन
बेलदार परत (Climbers): लौकी, करेला, खीरा
ऊपरी परत (Fruits): पपीता, केला, सहजन
मल्टी लेयर फार्मिंग से कितना मुनाफा होता है? – How Profitable is Multi Layer Farming?
सही योजना और मार्केटिंग से यह खेती पारंपरिक खेती की तुलना में 1.5 से 2 गुना ज्यादा मुनाफा देती है।