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परिचय (Introduction):
प्रयागराज के साइंस ग्रेजुएट शैलेंद्र कुमार सिंह गौर ने पारंपरिक IC इंजन में ऐसा नवाचार किया है, जिससे गाड़ियों की माइलेज कई गुना बढ़ सकती है और प्रदूषण में भी कमी आ सकती है। उनका विकसित किया गया इंजन 100cc बाइक को 176 किलोमीटर प्रति लीटर तक चलाने में सक्षम है। खास बात यह है कि यह इंजन पेट्रोल, डीजल, CNG और एथनॉल जैसे अलग-अलग ईंधनों पर भी आसानी से काम करता है।

शैलेंद्र गौर जी (Shailendra Gaur) का जन्म उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के एक छोटे से गाँव, परसपुर में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं हुई। एक साधारण किसान परिवार से आने के बावजूद, उनके मन में हमेशा कुछ नया करने का जुनून था। उनके पास कोई बड़ी इंजीनियरिंग की डिग्री नहीं थी, लेकिन उनका ज्ञान और उनकी जिज्ञासा किसी भी डिग्री से कहीं ज्यादा थी। वे अपने गाँव में ही छोटे-मोटे प्रयोग करते रहते थे और हमेशा इंजन की दक्षता (efficiency) बढ़ाने के बारे में सोचते थे। उनका मानना था कि अगर किसी चीज को बेहतर बनाना है, तो उसके मूल सिद्धांत (core principles) को समझना जरूरी है।
शैलेंद्र गौर जी का जीवन शुरू से ही संघर्षों से भरा रहा। साधारण परिवार में जन्म लेने वाले शैलेंद्र जी के पास बड़े संसाधन नहीं थे, लेकिन उनके भीतर कुछ कर दिखाने की आग हमेशा जलती रही। पढ़ाई के दिनों से ही उन्हें मशीनों और इंजनों से खास लगाव था। वे छोटे-मोटे प्रयोग करते रहते और दोस्तों को बताया करते कि “एक दिन मैं ऐसा इंजन बनाऊँगा जो दुनिया को चौंका देगा।”
सन 1983 में उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी (अब प्रयागराज) से B.Sc. की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्हें 2007 में टाटा मोटर्स से जॉब ऑफर भी मिला, लेकिन शैलेंद्र जी का दिल नौकरी में नहीं, बल्कि अपने सपने को पूरा करने में लगा था। उन्होंने आराम और सुरक्षित भविष्य छोड़कर एक जोखिम भरा रास्ता चुना। यही निर्णय आगे चलकर उन्हें एक महान आविष्कारक के रूप में पहचान दिलाने वाला था।
उनकी यह शुरुआत हमें सिखाती है कि जीवन में बड़ा बनने के लिए हमेशा साहसिक कदम उठाने पड़ते हैं।
शैलेन्द्र जी की शिक्षा और संघर्ष भरी जिंदगी
शैलेंद्र गौर की औपचारिक शिक्षा बहुत ज्यादा नहीं थी, लेकिन उनका सीखने का जुनून कभी कम नहीं हुआ। आर्थिक तंगी के कारण उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उनके पास अपने प्रयोगों के लिए पैसे नहीं होते थे, इसलिए वे कबाड़ से चीजें इकट्ठा करके अपने मॉडल बनाते थे। कई बार लोग उनका मजाक उड़ाते थे और उन्हें पागल समझते थे, लेकिन शैलेंद्र जी ने कभी हार नहीं मानी। उनका मानना था कि हर असफलता एक नया सबक सिखाती है।
संघर्ष का दौर—ज़मीन, घर और हिम्मत
“जब साधन गिरे, पर विश्वास कम नहीं हुआ—इसी हौसले ने उसे चलने दिया।”
शैलेंद्र गौर का संघर्ष आसान नहीं था। एक आम आदमी सोचता है कि नौकरी करनी है, परिवार संभालना है, लेकिन शैलेंद्र जी का सपना इतना बड़ा था कि उसके लिए उन्होंने सबकुछ दांव पर लगा दिया। इंजन बनाने के लिए पैसे की ज़रूरत थी। बैंक और संस्थानों से मदद नहीं मिली तो उन्होंने अपनी जमीन, दुकान और घर तक बेच दिया। किराये का छोटा सा मकान लिया और उसे ही कार्यशाला बना लिया।
दिन-रात वे इंजन के पुर्ज़ों से जूझते रहते। कभी असफलता मिलती तो हिम्मत टूटती, लेकिन अगले दिन फिर वही जुनून उन्हें मशीन के पास खींच लाता। परिवार और रिश्तेदारों को लगता था कि यह सब बेकार है, लेकिन शैलेंद्र जी के भीतर का विश्वास अडिग था।
कई बार वे आर्थिक तंगी के कारण पेट्रोल और पुर्ज़ों तक खरीदने में असमर्थ रहे, लेकिन पुराने पार्ट्स को जोड़कर प्रयोग करते रहे।
पैसे की कमी के कारण अपनी प्रॉपर्टी भी बेच दी
अपनी रिसर्च को आगे बढ़ाने के लिए शैलेंद्र गौर ने निजी जीवन में बड़े त्याग किए। आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण उन्हें अपनी संपत्ति तक बेचनी पड़ी और किराए का घर ही उनकी प्रयोगशाला और वर्कशॉप बन गया। ज्ञान और अनुभव हासिल करने के लिए उन्होंने MNNIT में प्रोफेसर अनुज जैन के मार्गदर्शन में करीब छह महीने तक रोजाना पाँच से छह घंटे इंजन की तकनीकी बारीकियों का गहन अध्ययन किया।
यही जज़्बा और हिम्मत आखिरकार उन्हें कामयाबी तक ले गया। उनका यह संघर्ष बताता है कि सपना पूरा करने के लिए सिर्फ़ पैसा नहीं, बल्कि पक्की नीयत और मजबूत हौसला चाहिए।
6-स्ट्रोक इंजन की खोज

“जब़ दूसरों ने ‘नहीं हो सकता’ कहा, तब उसने इंजन से 6 स्ट्रोक निकाल दिए।”
लंबे शोध और कड़ी मेहनत के बाद शैलेंद्र गौर ने दुनिया को चौंकाने वाला आविष्कार किया—छह-स्ट्रोक (Six Stroke) इंजन। आमतौर पर गाड़ियों में चार-स्ट्रोक इंजन इस्तेमाल होते हैं, लेकिन शैलेंद्र जी ने इसमें दो अतिरिक्त स्ट्रोक जोड़कर इसे अनोखा बना दिया। यह इंजन पेट्रोल, डीज़ल और अन्य ईंधनों पर चल सकता है यानी यह मल्टी-फ्यूल इंजन है।
सबसे बड़ी खासियत इसकी माइलेज है—यह इंजन 176 किलोमीटर प्रति लीटर (KMPL) तक चलता है। इतना ही नहीं, यह 70% तक ऊर्जा का उपयोग करता है और प्रदूषण भी बहुत कम करता है। साल 2017 की TVS बाइक में इस इंजन को लगाकर उन्होंने 50 मिली पेट्रोल से 35 मिनट तक बाइक चलाकर दिखाया। यह प्रयोग देखने वाले लोग दंग रह गए।
शैलेंद्र गौर का यह आविष्कार आने वाले समय में ऑटोमोबाइल सेक्टर के लिए क्रांतिकारी साबित हो सकता है। जहां महंगाई और ईंधन की कमी से लोग परेशान हैं, वहीं उनका इंजन उम्मीद की किरण बनकर सामने आया है।
Innovation in Science: इंजीनियरिंग और विज्ञान की दुनिया लगातार नई खोजों और प्रयोगों से आगे बढ़ रही है। लेकिन कई बार किसी एक इंसान का जुनून और अथक प्रयास पूरी इंडस्ट्री की दिशा बदल सकता है। प्रयागराज के साइंस ग्रेजुएट शैलेंद्र कुमार सिंह गौर ने भी कुछ ऐसा ही कर दिखाया है। उन्होंने इंटरनल कंबशन (IC) इंजन में ऐसा अनोखा सुधार किया है, जिससे न सिर्फ वाहनों की माइलेज चौंकाने वाली हो सकती है, बल्कि प्रदूषण को भी लगभग समाप्त किया जा सकता है।
नए इंजन और पुराने इंजन के बीच का अंतर
शैलेंद्र गौर का दावा है कि उनके विकसित किए गए प्रोटोटाइप ने 100cc बाइक पर 176 किलोमीटर प्रति लीटर तक का माइलेज हासिल किया है। उनका कहना है कि यदि पर्याप्त फंड और संसाधन मिल जाएँ, तो यह आंकड़ा आसानी से 200 किलोमीटर प्रति लीटर तक पहुँच सकता है। उन्होंने पारंपरिक इंजनों और अपने इंजन के बीच फर्क स्पष्ट करते हुए बताया कि जहाँ पुराने इंजन मात्र 30% ऊर्जा का उपयोग करते थे, वहीं उनका इंजन 70% तक ऊर्जा को प्रभावी रूप से इस्तेमाल करता है।
सभी प्रकार के ईंधन पर चलता है और प्रदूषण भी नहीं करता है
शैलेंद्र गौर द्वारा विकसित यह इंजन बहु-ईंधन (Multi-fuel) क्षमता से लैस है। इसका इस्तेमाल पेट्रोल, डीजल, CNG से लेकर एथनॉल तक किसी भी ईंधन के साथ किया जा सकता है। प्रदूषण नियंत्रण की दृष्टि से भी यह इंजन बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। इसमें साइलेंसर का तापमान बेहद कम रहता है और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) का उत्सर्जन लगभग नगण्य है, जिससे यह पर्यावरण के लिए एक क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है।
सरकारी योजनाएँ और सहायता | Government Schemes and Support
- सीड ड्रिल और पैडी ड्रिल मशीन पर सब्सिडी उपलब्ध
- कृषि विभाग द्वारा प्रशिक्षण और डेमो प्लॉट
- ऑनलाइन जानकारी: भारत सरकार कृषि पोर्टल
मीडिया में पहचान और पेटेंट
“जब दुनिया देख रही थी, तो उसे मिल गई असली मंज़िल की मंज़ूरी।”
शैलेंद्र गौर की मेहनत बेकार नहीं गई। धीरे-धीरे उनके आविष्कार की चर्चा मीडिया तक पहुंची। हिंदुस्तान टाइम्स और अन्य बड़े अखबारों ने उनकी कहानी को प्रमुखता से छापा। खबर छपते ही देशभर में लोग उन्हें जानने लगे। सोशल मीडिया पर उनके इंजन के वीडियो वायरल हुए और लोग उन्हें ‘फ्यूल क्रांति का इंजीनियर’ कहने लगे।
इतना ही नहीं, उनके इस अनोखे इंजन को पेटेंट भी मिला। भारत सरकार ने उनके 6-स्ट्रोक इंजन के लिए दो पेटेंट जारी किए। यह उनके संघर्ष की सबसे बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि अब यह साबित हो चुका था कि उनका आविष्कार केवल सपना नहीं, बल्कि हकीकत है।
आज शैलेंद्र गौर का नाम उन चुनिंदा भारतीय आविष्कारकों में गिना जाता है, जिन्होंने अपनी मेहनत और जुनून से दुनिया को नई दिशा दिखाई। उनका यह सफर बताता है कि अगर इंसान ठान ले तो असंभव भी संभव हो सकता है।
भविष्य की दिशा—प्रेरणा और उम्मीद

“अभी घोड़े दौड़ रहे हैं, लेकिन उसकी सोच अब हवा में उड़ेगी—इंजन से निकलकर उड़ान लेगी।”
आज जब दुनिया प्रदूषण और ईंधन संकट से जूझ रही है, तब शैलेंद्र गौर जैसे आविष्कारक नई राह दिखा रहे हैं। उनका 6-स्ट्रोक इंजन सिर्फ़ एक मशीन नहीं, बल्कि आने वाले भारत का सपना है। अगर इस इंजन का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू हो जाए, तो गाड़ियों का खर्च बहुत कम होगा, प्रदूषण घटेगा और ईंधन पर हमारी निर्भरता भी घटेगी।
युवा इंजीनियरों और छात्रों के लिए शैलेंद्र गौर की कहानी एक प्रेरणा है। यह सिखाती है कि अगर जुनून और मेहनत हो तो कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। आने वाले समय में उनका यह आविष्कार देश को तकनीकी और पर्यावरणीय दोनों स्तर पर आगे ले जा सकता है।
शैलेंद्र जी का जीवन हमें यह संदेश देता है कि परिस्थितियाँ कैसी भी हों, सपनों पर विश्वास और मेहनत की ताकत कभी बेकार नहीं जाती।
शैलेंद्र गौर का मानना है कि उनकी विकसित की गई तकनीक सिर्फ मोटरसाइकिलों तक सीमित नहीं है। इसका इस्तेमाल बड़े इंजनों में, यहाँ तक कि पानी के जहाजों और छोटे टू-व्हीलर इंजनों में भी किया जा सकता है। अब तक उनके नाम दो पेटेंट दर्ज हो चुके हैं और वे कुछ और नए पेटेंट दाखिल करने की प्रक्रिया में हैं। अपनी यात्रा को समेटते हुए शैलेंद्र ने कहा—“मैंने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया है, अब यह देश पर है कि वह इस खोज का उपयोग किस तरह करता है।”
FAQs – अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
शैलेंद्र गौर कौन हैं?
शैलेंद्र गौर एक भारतीय आविष्कारक हैं जिन्होंने 6-स्ट्रोक इंजन बनाया है। यह इंजन 176 KMPL तक माइलेज देता है और मल्टी-फ्यूल पर चल सकता है।
शैलेंद्र गौर का 6-स्ट्रोक इंजन खास क्यों है?
यह इंजन पारंपरिक 4-स्ट्रोक इंजन से अधिक कुशल है। यह 70% तक ऊर्जा का उपयोग करता है, माइलेज ज्यादा देता है और प्रदूषण भी कम फैलाता है।
क्या शैलेंद्र गौर को पेटेंट मिला है?
जी हाँ, भारत सरकार ने उनके 6-स्ट्रोक इंजन के लिए दो पेटेंट जारी किए हैं।
शैलेंद्र गौर ने यह आविष्कार कैसे किया?
उन्होंने करीब 18 वर्षों तक दिन-रात मेहनत की। आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने अपनी जमीन और घर तक बेच दिया और किराए के कमरे को ही प्रयोगशाला बनाकर शोध किया।
शैलेंद्र गौर का आविष्कार भविष्य में कैसे काम आएगा?
अगर इस इंजन का बड़े पैमाने पर उपयोग शुरू हो गया तो गाड़ियों का खर्च घटेगा, प्रदूषण कम होगा और भारत ईंधन के मामले में आत्मनिर्भर बन सकेगा।