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प्रयागराज के रहने वाले शैलेंद्र गौर (Shailendra Gaur) ने एक ऐसा विशेष इंजन विकसित किया है, जिसने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। उनका कहना है कि यह इंजन पारंपरिक इंटरनल कंबशन इंजन (Internal Combustion Engine) में कुछ तकनीकी बदलाव करके गाड़ियों की माइलेज क्षमता को कई गुना बढ़ा देता है।

शैलेंद्र द्वारा तैयार किए गए इस प्रोटोटाइप को 100cc की बाइक में लगाया गया और टेस्टिंग के दौरान बाइक ने एक लीटर पेट्रोल में 176 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय की। यह उपलब्धि मौजूदा इंजनों के मुकाबले बेहद चौंकाने वाली है।
उन्होंने इंजन के हैंडल मैकेनिज्म को इस तरह डिज़ाइन किया है कि ईंधन की हर बूंद का अधिकतम उपयोग हो सके। इससे न केवल माइलेज बढ़ता है बल्कि वाहन से निकलने वाला प्रदूषण भी काफी कम हो जाता है।
शैलेंद्र गौर (Shailendra Gaur) का मानना है कि उनकी यह तकनीक सिर्फ मोटरसाइकिल तक सीमित नहीं है, बल्कि बड़े इंजनों और जहाजों तक में इसे इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर इस इनोवेशन को बड़े स्तर पर अपनाया गया, तो यह न सिर्फ ईंधन की खपत को कम करेगा बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाएगा।
👉 यह खोज भविष्य में भारत को ऑटोमोबाइल तकनीक के क्षेत्र में नई पहचान दिला सकती है।
प्रयागराज के साइंस ग्रेजुएट शैलेंद्र कुमार सिंह गौर (Shailendra Kumar Gaur) ने दावा किया है कि उनका विकसित किया गया इंजन ऑटोमोबाइल सेक्टर में बड़ी क्रांति ला सकता है। बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि उन्होंने पारंपरिक इंटरनल कंबशन (IC) इंजन में अहम तकनीकी बदलाव किए हैं, जिसके परिणामस्वरूप माइलेज कई गुना बढ़ गया है।

शैलेंद्र गौर (Shailendra Gaur) द्वारा तैयार प्रोटोटाइप को 100cc बाइक में लगाया गया और टेस्टिंग में यह बाइक 176 किलोमीटर से ज्यादा का माइलेज देने में सफल रही। शैलेंद्र का कहना है कि अगर उन्हें पर्याप्त फंड और रिसर्च का अवसर मिले, तो इस तकनीक से माइलेज को 200 किलोमीटर प्रति लीटर से भी ऊपर ले जाया जा सकता है।
शैलेंद्र गौर (Shailendra Gaur) का मानना है कि यह इनोवेशन न केवल ईंधन बचाएगा बल्कि प्रदूषण को भी काफी हद तक कम करेगा। यह खोज भविष्य में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के लिए एक नई दिशा साबित हो सकती है।
क्या खास है इस अद्भुत तकनीक में?
- शैलेंद्र गौर (Shailendra Gaur) के अनुसार उनकी विकसित तकनीक पारंपरिक इंजनों से बिल्कुल अलग है। उन्होंने समझाया कि पुराने इंजन अधिक दबाव की स्थिति में अधिकतम थ्रस्ट केवल 25 डिग्री पर देते थे, जिसके कारण ईंधन की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं हो पाता था। उन्होंने इस संरचना में बदलाव करते हुए इंजन का अधिकतम थ्रस्ट 60 डिग्री पर सेट किया। इस सुधार से ईंधन की ऊर्जा का बड़ा हिस्सा व्यर्थ जाने के बजाय वास्तविक शक्ति में बदलने लगा। शैलेंद्र का दावा है कि जहां पुराने इंजन महज़ 30% ऊर्जा का उपयोग कर पाते थे, वहीं उनकी तकनीक से तैयार इंजन लगभग 70% ऊर्जा को उपयोग में ला सकता है उनका मानना है कि यह सुधार न केवल माइलेज बढ़ाता है बल्कि प्रदूषण को भी काफी हद तक कम करता है। यह तकनीक आने वाले समय में ऑटोमोबाइल क्षेत्र के लिए एक नई दिशा और ऊर्जा दक्षता (Energy Efficiency) का बेहतरीन उदाहरण बन सकती है।

- शैलेंद्र गौर (Shailendra Gaur) बताते हैं कि उनकी तकनीक का असर सिर्फ माइलेज तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रदूषण को भी लगभग समाप्त कर देती है। उनकी बाइक के साइलेंसर का तापमान बेहद कम रहता है और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) उत्सर्जन लगभग शून्य के बराबर है। यही वजह है कि यह इंजन पर्यावरण के लिए अनुकूल साबित हो सकता है। खास बात यह है कि इस इंजन में पेट्रोल, डीजल, CNG और एथनॉल सभी प्रकार के ईंधन का इस्तेमाल संभव है। इस लचीलापन और कम प्रदूषण के कारण यह तकनीक भविष्य की ऑटोमोबाइल दुनिया में अहम योगदान दे सकती है।
सरकारी योजनाएँ और सहायता | Government Schemes and Support
- सीड ड्रिल और पैडी ड्रिल मशीन पर सब्सिडी उपलब्ध
- कृषि विभाग द्वारा प्रशिक्षण और डेमो प्लॉट
- ऑनलाइन जानकारी: भारत सरकार कृषि पोर्टल
शैलेंद्र गौर के संघर्ष और सफलता की कहानी
- जब सपनों के लिए बेचनी पड़ी संपत्ति:- शैलेंद्र गौर (Shailendra Gaur) ने अपनी रिसर्च के लिए बड़ा बलिदान दिया। उन्होंने खुलासा किया कि फंड की कमी के कारण उन्हें अपनी पूरी संपत्ति बेचनी पड़ी और किराए के घर को ही वर्कशॉप बना लिया। शैलेंद्र गौर (Shailendra Gaur) का कहना है कि उन्होंने टाटा मोटर्स में काम करने से इंकार नहीं किया था, बल्कि अपनी तकनीक का प्रेजेंटेशन देने पहुंचे थे। वहीं उनकी मुलाकात कंपनी की यूके ब्रांच के हेड से हुई, जिन्होंने उनका आइडिया सुनकर प्रोटोटाइप तैयार करने की सलाह दी। कठिनाइयों के बावजूद शैलेंद्र ने अपने जुनून और लगन से इस तकनीक को आकार दिया।
- कड़ी मेहनत से जन्मा कारगर इनोवेशन:- शैलेंद्र गौर (Shailendra Gaur) ने बताया कि इस इनोवेशन की नींव मजबूत करने के लिए उन्होंने मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (MNNIT) में प्रोफेसर अनुज जैन के साथ करीब छह महीने तक रोजाना 5–6 घंटे मेहनत की। इस दौरान उन्होंने इंजन की बारीकियों को गहराई से समझा और अपने आइडिया को प्रैक्टिकल रूप देने की दिशा में काम किया। गौर ने अपनी एक पुरानी प्रोटोटाइप का जिक्र भी किया। उस समय उन्होंने एक कंपनी को यह इंजन दिखाया था, जिसने टेस्टिंग के दौरान 120 किलोमीटर प्रति लीटर का माइलेज हासिल किया। हालांकि, कंपनी की रिसर्च एंड डेवलपमेंट टीम ने उस समय इस मॉडल को नकार दिया। बाद में कंपनी के मालिक ने जब खुद दखल दिया, तभी यह साफ हुआ कि शैलेंद्र की तकनीक कितनी असरदार और भविष्य के लिहाज़ से उपयोगी साबित हो सकती है।
शैलेंद्र गौर के तकनीक का भविष्य और पेटेंट
बाइक से जहाज तक काम आएगी तकनीक:- शैलेंद्र गौर (Shailendra Gaur) का मानना है कि उनकी विकसित तकनीक केवल मोटरसाइकिल तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उपयोग सबसे बड़े इंजनों, जैसे पानी के जहाजों, से लेकर सबसे छोटे इंजनों तक में किया जा सकता है। उनका कहना है कि इस खोज से ईंधन की खपत कम होगी और प्रदूषण पर भी नियंत्रण पाया जा सकेगा।
दो पेटेंट दर्ज, और की तैयारी जारी:- शैलेंद्र गौर (Shailendra Gaur) ने बताया कि अब तक उनके नाम पर दो पेटेंट दर्ज हैं—एक डिज़ाइन और दूसरा प्रोसेस के लिए। साथ ही वे कुछ और पेटेंट दाखिल करने की तैयारी में हैं, ताकि उनकी तकनीक को व्यापक स्तर पर मान्यता मिल सके। बातचीत के दौरान उन्होंने हल्की मायूसी जताते हुए कहा कि, “मैंने अपना काम पूरा कर दिया है, अब यह देश पर निर्भर है कि वह इस तकनीक का कितना और कैसे इस्तेमाल करता है।”
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
शैलेंद्र गौर का बनाया हुआ इंजन कितना माइलेज देता है?
शैलेंद्र गौर (Shailendra Gaur) का दावा है कि उनका इंजन 100cc बाइक में 176 किलोमीटर प्रति लीटर से ज्यादा माइलेज देता है।
यह इंजन किन-किन ईंधनों (Fuels) पर चल सकता है?
यह इंजन मल्टी-फ्यूल तकनीक से बना है और इसमें पेट्रोल, डीजल, CNG और एथनॉल का इस्तेमाल किया जा सकता है।
क्या यह इंजन प्रदूषण को कम करता है?
हाँ, इस इंजन के साइलेंसर का तापमान बेहद कम रहता है और इसमें से निकलने वाली कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) की मात्रा लगभग शून्य होती है।
यह तकनीक पुराने इंजनों से अलग कैसे है?
पारंपरिक इंजन अधिकतम थ्रस्ट 25 डिग्री पर देते हैं, जबकि शैलेंद्र गौर (Shailendra Gaur) ने इसे 60 डिग्री पर सेट किया है। इससे इंजन ऊर्जा का लगभग 70% उपयोग कर पाता है, जबकि पुराने इंजन केवल 30% तक ऊर्जा का इस्तेमाल करते थे।
क्या यह इंजन बड़े वाहनों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है?
शैलेंद्र गौर (Shailendra Gaur) का मानना है कि यह तकनीक न केवल बाइक्स बल्कि कारों, ट्रकों और यहां तक कि जहाजों में भी लागू की जा सकती है।
क्या यह इंजन व्यावसायिक स्तर पर उपलब्ध है?
फिलहाल यह इंजन प्रोटोटाइप स्टेज पर है। शैलेंद्र गौर का कहना है कि रिसर्च और फंडिंग मिलने पर इसे बड़े पैमाने पर बाजार में उतारा जा सकता है।