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भारत में गेहूँ (Wheat) किसानों की जिंदगी का अहम हिस्सा है। हर किसान यही चाहता है कि उसकी फसल अच्छी हो, उपज ज्यादा हो और खर्चा कम पड़े। इसी सोच के साथ कृषि वैज्ञानिक हर साल नई किस्में (new wheat varieties) तैयार करते हैं। साल 2025 में भी कुछ ऐसी किस्में आई हैं जो किसानों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकती हैं। इन किस्मों की खासियत यह है कि इनमें रोगों से लड़ने की ताकत है, कम पानी में भी उपज देती हैं और बाजार में अच्छा दाम भी दिला सकती हैं।

आसान भाषा में समझे तो भारत दुनिया के सबसे बड़े गेहूँ (Wheat) उत्पादक देशों में से एक है। किसानों की आमदनी (farmer’s income) और देश की खाद्य सुरक्षा (food security) दोनों के लिए गेहूँ बेहद अहम फसल है। हर साल कृषि अनुसंधान संस्थान (Agricultural Research Institutes) और विश्वविद्यालय नई-नई किस्में (new wheat varieties) तैयार करते हैं ताकि किसान कम मेहनत में ज़्यादा उत्पादन पा सकें और बदलते मौसम (climate change) से होने वाले नुकसान से बच सकें।
2025 में कई नई गेहूँ की किस्में किसानों के बीच चर्चा में हैं — 2025 में भारत के किसानों के लिए कई नई गेहूँ (Wheat) की किस्में लॉन्च की गई हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य अधिक उपज, पोषण, रोग-प्रतिरोध और बदलते मौसम के अनुकूलता है। जैसे PBW 872, PBW 826, PBW 757 (Punjab Agricultural University – PAU की देन), और IARI (Indian Agricultural Research Institute) की biofortified varieties HI 8840, HD 3390, HD 3410।
इस लेख में हम इन किस्मों के बारे में विस्तार से जानेंगे:
किस संस्थान (institute) ने किस्म तैयार की
भारत में गेहूँ (Wheat) की खेती बहुत ज्यादा होती है और किसानों की जरूरतें लगातार बदलती रहती हैं। इसी वजह से देश के बड़े और नामी कृषि संस्थान, जैसे पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), वक्त-वक्त पर नई गेहूँ की किस्में बनाते हैं। ये संस्थान किसान भाई-बहनों तक अच्छी गुणवत्ता, ज्यादा उत्पादन और ज्यादा सुरक्षित किस्में पहुंचाने के लिए मेहनत करते हैं। नई किस्में तैयार करने के पीछे मुख्य मकसद है, कम मेहनत में ज्यादा फसल, कम बीमारियाँ और मौसम की मार से बच सकना, जिससे देश की खाद्य सुरक्षा भी बनी रहे।

क्यों जरूरी हैं नई किस्में? (Why new wheat varieties are important)
किसान अक्सर पूछते हैं कि जब पुरानी किस्में अच्छी चल रही हैं तो नई किस्म की जरूरत क्यों है? इसका जवाब बहुत आसान है। पुरानी किस्मों में कई बार रोग लग जाते हैं, मौसम बदलने पर फसल कमजोर हो जाती है और पैदावार भी कम होती है। वहीं नई किस्मों में वैज्ञानिक रोग-प्रतिरोधक क्षमता, ज्यादा उपज और बेहतर दाने की क्वालिटी जोड़ते हैं। इसका मतलब है कि किसान को कम मेहनत में ज्यादा फायदा मिलता है। यही वजह है कि 2025 में आई नई गेहूँ (Wheat) की किस्में किसानों को अपनानी चाहिए।
PBW 872 – पंजाब की नई उम्मीद
PBW 872 किस्म पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) ने तैयार की है। यह किस्म किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है क्योंकि इसमें उपज क्षमता बहुत ज्यादा है। इस किस्म से औसतन 24–25 क्विंटल प्रति एकड़ तक उत्पादन लिया जा सकता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह पीली रतुआ (yellow rust) जैसी बीमारी से भी बचाती है। समय पर बोई गई फसल के लिए यह बेहतरीन है। किसान अगर इसे नवंबर में बोते हैं और सही तरीके से सिंचाई करते हैं तो यह किस्म शानदार नतीजे देती है।
उपज (Yield)
PBW 872 किस्म ने प्रदर्शन (demonstration) में लगभग 24–25 क्विंटल प्रति एकड़ (q/acre) उपज दी है। यानी 60–65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
बुवाई और बीज दर (Sowing & Seed Rate)
- समय: नवंबर का पहला–दूसरा पखवाड़ा (timely sown)
- बीज दर: 40–45 किलो प्रति एकड़
- कतार दूरी: 20–22 सेमी
सिंचाई (Irrigation)
- कुल 3–4 बार सिंचाई काफी है
- पहली सिंचाई – बुवाई के 20–25 दिन बाद (crown root initiation)
- दूसरी – टिलरिंग (tillering) के समय
- तीसरी – बालियों के निकलने से पहले (booting/heading stage)
रोग प्रतिरोधकता (Disease Resistance)
PBW 872 को पीली रतुआ (yellow rust) और अन्य बीमारियों से बेहतर सहनशील पाया गया है।
किसानों के लिए फायदा
- ज्यादा उपज (high yield wheat variety)
- रोग से सुरक्षा
- बाजार में अच्छा भाव मिलने की संभावना
PBW 826 – मोटा दाना और अच्छी उपज
PBW 826 भी पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की ही एक नई किस्म है। इस किस्म में मोटे और भारी दाने आते हैं जो बाजार में ज्यादा भाव दिलाते हैं। इस किस्म से औसतन 24 क्विंटल प्रति एकड़ उपज ली जा सकती है। बेकरी और मिलिंग उद्योग के लिए यह गेहूँ (Wheat) बहुत उपयुक्त है क्योंकि इसका दाना मजबूत होता है। किसान इसे नवंबर में समय पर बोएं और 45 किलो प्रति एकड़ बीज इस्तेमाल करें तो परिणाम बेहतर होंगे। खास बात यह है कि यह किस्म सिंचित जमीन पर बहुत अच्छा प्रदर्शन करती है।
उपज
लगभग 24 क्विंटल प्रति एकड़
खासियत
- दाना मोटा और वजनदार
- बेकरी और मिलिंग इंडस्ट्री में पसंद की जाती है
- सिंचित क्षेत्र (irrigated fields) के लिए बढ़िया
बुवाई टिप्स
- बीज दर: 45 किलो/एकड़
- समय: नवंबर में समय पर बोई गई फसल
देखभाल
- नाइट्रोजन (Nitrogen fertilizer) संतुलित मात्रा में दें
- जरूरत से ज्यादा नाइट्रोजन देने पर फसल गिर सकती है

PBW 757 – देर से बोने वालों के लिए वरदान
बहुत से किसान धान की कटाई के बाद खेत खाली होने में देर कर देते हैं, ऐसे में गेहूँ (Wheat) की बुवाई भी देर से होती है। PBW 757 ऐसी स्थिति के लिए एकदम सही किस्म है। यह किस्म लेट-सोड (late-sown) परिस्थितियों में भी अच्छी उपज देती है। यानी अगर आप दिसंबर या जनवरी में गेहूँ बोते हैं तो भी यह किस्म आपको निराश नहीं करेगी। इसकी उपज समय पर बोई गई फसल से थोड़ी कम हो सकती है, लेकिन देर से बुवाई करने वालों के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है।
खासियत
- यह किस्म लेट-सोड (late-sown wheat variety) के लिए उपयुक्त है
- दिसंबर–जनवरी तक बुवाई करने वाले किसान भी इसका फायदा उठा सकते हैं
उपज
समय से देर में बोने पर भी यह बेहतर उत्पादन देती है
किसानों के लिए फायदा
- देर से गेहूँ (Wheat) बोने वाले किसान भी अच्छी फसल ले सकते हैं
- यह किस्म खासतौर पर उन किसानों के लिए बनाई गई है जो धान की कटाई के बाद देर से खेत खाली करते हैं
HI 8840 – पोषण से भरपूर गेहूँ

HI 8840 किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने विकसित किया है। यह किस्म खासतौर पर पोषण को ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसमें Iron (लोहा) और Zinc (जिंक) की मात्रा ज्यादा होती है। यह एक biofortified durum wheat है। इसका आटा और सूजी (semolina) उन लोगों के लिए बहुत अच्छा है जिन्हें पोषण की जरूरत है। इस किस्म से किसानों को फायदा यह है कि ऐसे गेहूँ (Wheat) की बाजार में मांग बढ़ रही है और प्रीमियम रेट मिलने की संभावना रहती है। यानी उपज के साथ-साथ कमाई भी ज्यादा।
खासियत
- यह biofortified durum wheat variety है
- इसमें Iron (लोहा) और Zinc (जिंक) ज्यादा पाया जाता है
- पोषण सुरक्षा (nutrition security) के लिए बहुत उपयोगी
उपयोग
- इसका आटा और सूजी (semolina) स्वास्थ्य उत्पादों (health products) और खाद्य उद्योग (food industry) में इस्तेमाल किया जा सकता है
किसान के लिए लाभ
- अगर आपके इलाके में पोषण गेहूँ की मांग है तो यह किस्म प्रीमियम दाम पर बिक सकती है
HD 3390 और HD 3410 – प्रोटीन से भरपूर गेहूँ
HD 3390 और HD 3410 किस्में भी IARI की ओर से विकसित की गई हैं। ये किस्में bread wheat varieties हैं और इनका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इनमें प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है। इसका मतलब है कि ये किस्में बेकरी, ब्रेड और बिस्किट बनाने वाली इंडस्ट्री के लिए बहुत उपयोगी हैं। किसान अगर इन्हें उगाते हैं तो उन्हें ऐसे खरीदार मिल सकते हैं जो ज्यादा दाम देकर खरीदना चाहेंगे। यह किस्म भी समय पर बोई गई सिंचित जमीन पर अच्छी पैदावार देती है और गुणवत्ता के हिसाब से बेहतरीन है।
खासियत
- Bread wheat varieties
- इन किस्मों में प्रोटीन कंटेंट ज्यादा है
- बेकरी उद्योग (bakery industry) और न्यूट्री-फूड्स में इनकी मांग है
फायदा
- किसानों को इन किस्मों के लिए मार्केट में ज्यादा दाम मिल सकते हैं
सरकारी योजनाएँ और सहायता | Government Schemes and Support
- सीड ड्रिल और पैडी ड्रिल मशीन पर सब्सिडी उपलब्ध
- कृषि विभाग द्वारा प्रशिक्षण और डेमो प्लॉट
- ऑनलाइन जानकारी: भारत सरकार कृषि पोर्टल
- प्रेस इनफार्मेशन सरकारी रिलीज
IIWBR की अनुशंसा – जोन के हिसाब से किस्म चुनें
भारतीय गेहूँ (Wheat) एवं जौ अनुसंधान संस्थान (IIWBR) हर साल अलग-अलग जोनों के लिए गेहूँ (Wheat) की किस्में सुझाता है। जैसे उत्तर-पश्चिमी मैदान, पूर्वी मैदान, मध्य भारत, और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए किस्में अलग-अलग होती हैं। किसान के लिए सबसे जरूरी यह है कि वह अपने इलाके की zone-specific wheat variety चुने। अगर किसान सही जोन वाली किस्म बोते हैं तो उन्हें बेहतर उपज और गुणवत्ता मिलती है। इसलिए बीज खरीदते समय हमेशा ध्यान रखें कि वह किस्म आपके जिले और मौसम के हिसाब से सही है या नहीं।
IIWBR हर साल अलग-अलग जोन (NWPZ, NHZ, CZ, PZ) के लिए अनुशंसित किस्मों की सूची जारी करता है।
👉 किसान को हमेशा अपने जोन (zone-specific wheat varieties) के हिसाब से किस्म चुननी चाहिए।
खेती प्रबंधन – बीज, खाद और सिंचाई
नई किस्में तभी अच्छा प्रदर्शन करती हैं जब किसान खेती के सही तरीके अपनाते हैं। बीज हमेशा प्रमाणित (certified seed) लें और बोने से पहले बीज उपचार (seed treatment) जरूर करें। खाद (fertilizer) में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश संतुलित मात्रा में दें। सिंचाई (irrigation) का भी खास ध्यान रखें। गेहूँ को कम से कम 3–4 बार पानी देना जरूरी है – पहली सिंचाई crown root initiation पर, दूसरी टिलरिंग पर, तीसरी heading stage पर और चौथी दाने भरने के समय। अगर किसान ये सब नियम मानते हैं तो नई किस्में पूरी क्षमता से उपज देंगी।
1. बीज (Seed)
- केवल certified seed का उपयोग करें
- बीज उपचार (seed treatment) ज़रूरी है – थिरम, कार्बोक्सिन, या recommended fungicide से
2. बुवाई (Sowing Method)
गेंहू (Wheat) की फसल लगाने का तरीका यानी बुवाई, फसल की सफलता में बहुत बड़ा रोल निभाता है। अच्छी किस्म की बुवाई में बीज की सही मात्रा, सही समय और सही तरीका (मशीन या हाथ से) मायने रखता है। नई किस्में आमतौर पर 100-125 किलो बीज प्रति हेक्टेयर में, मशीन (ड्रिल) की मदद से बोई जाती हैं, जिससे पौधे बराबर दूरी पर और एक जैसा विकास करते हैं। लेट बुवाई के लिए भी कुछ किस्में उपयुक्त हैं, जिससे बिजली-पानी कम खर्च होता है।
3. खाद (Fertilizer Management)
- सामान्य अनुशंसा:
- नाइट्रोजन (N) – 120 kg/ha
- फॉस्फोरस (P) – 60 kg/ha
- पोटाश (K) – 40 kg/ha
- नाइट्रोजन को 3 हिस्सों में दें – 1/3 बेसल, 1/3 टिलरिंग पर, 1/3 बालियों के निकलने से पहले
4. सिंचाई (Irrigation Schedule)
गेहूँ (Wheat) की फसल को समय-समय पर पानी देना जरूरी है। नई किस्मों को कुल 4-5 सिंचाइयां दी जाती हैं। पहली सिंचाई बुवाई के 20-22 दिन बाद और बाकी बालियां निकलने के पहले-पहले करनी चाहिए। कभी-कभी बारिश हो जाए तो सिंचाई कम करनी पड़ती है। आधुनिक गेहूँ की किस्मों में पानी की जरूरत कम बताई गई है ताकि खर्च भी कम हो और पानी की बर्बादी न हो। किसान चाहें तो बारी-बारी से क्यारियों में पानी देने वाली विधि (Alternate Furrow Irrigation) भी अपना सकते हैं।
- पहली सिंचाई – 20–25 दिन बाद
- दूसरी – टिलरिंग पर
- तीसरी – heading stage
- चौथी – दाने भरने (grain filling) पर
रोग प्रबंधन और फसल की देखभाल
गेहूँ (Wheat) में सबसे आम समस्या रतुआ (rust disease) की होती है। नई किस्मों को वैज्ञानिकों ने इस बीमारी से लड़ने लायक बनाया है, लेकिन फिर भी सतर्क रहना जरूरी है। फसल पर नजर रखें और जैसे ही रोग दिखे, तुरंत दवा का छिड़काव करें। इसके अलावा नई किस्मों को अच्छी उपज के लिए देखभाल जरूरी है। इसके लिए समय-समय पर निराई, गुड़ाई, और खरपतवार (weeds) को हटाना पड़ता है।
खेत की मिट्टी जांचकर उचित मात्रा में यूरिया, डीएपी, पोटाश आदि खाद डाले जाएं। पौधों पर कीटनाशक और फफूंदीनाशक का भी छिड़काव करें ताकि फसल सुरक्षित रहे। बुवाई के एक महीने में पहली निराई जरूरी होती है। पौधों के बीच जगह बराबर हो, तो उनकी बढ़वार भी अच्छी होती है। खेती में अच्छी देखभाल करने से न सिर्फ उत्पादन बढ़ता है बल्कि दाने की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है। नई किस्में किसान को मदद करती हैं कि कम खर्च और कम दवाइयों में भी अच्छी फसल हो सके।
1. रोग प्रबंधन (Disease Management)
- रतुआ (rust disease) के लिए सतर्क रहें
- जरूरत पड़ने पर प्रोपिकोनाजोल या हेक्साकोनाजोल का छिड़काव करें
5. फसल कटाई (Harvesting)
- जब दाना कठोर (hard dough stage) हो जाए तो कटाई करें
- देर से कटाई करने पर दाने की गुणवत्ता घट सकती है
तुलना तालिका (Comparison Table)
| किस्म (Variety) | संस्थान (Institute) | उपज (Yield) | बुवाई समय (Sowing Time) | खासियत (Special Feature) |
|---|---|---|---|---|
| PBW 872 | PAU, Ludhiana | 24–25 q/acre | समय पर (Nov) | ज्यादा उपज, रोग प्रतिरोधक |
| PBW 826 | PAU, Ludhiana | 24 q/acre | समय पर (Nov) | मोटा दाना, बेकरी में उपयोग |
| PBW 757 | PAU, Ludhiana | देर से बोने पर भी अच्छी | लेट-सोड (Dec–Jan) | देर से बोने वालों के लिए सही |
| HI 8840 | IARI, New Delhi | पोषण-केंद्रित | Zone specific | Iron और Zinc से भरपूर |
| HD 3390/3410 | IARI, New Delhi | Protein rich | समय पर (Nov) | बेकरी उद्योग के लिए बढ़िया |
| IIWBR अनुशंसित | ICAR-IIWBR | Zone अनुसार | Zone अनुसार | हर क्षेत्र के लिए सही किस्म |
किसानों को क्या फायदे होंगे?
नई किस्में अपनाने से किसानों को सीधे तौर पर फायदा मिलता है। सबसे बड़ा लाभ है – सबसे कम खर्च और मेहनत में सबसे ज्यादा उत्पादन। पोषक तत्वों से भरपूर अनाज घर की सेहत के लिए भी अच्छा रहता है। समय पर फसल काटकर ज्यादा कमाई की जा सकती है। नई किस्में बदलते मौसम, रोग और सूखा जैसी आपदाओं में भी मजबूत रहती हैं। इससे किसानों की आमदनी बढ़ती है और देश को खाद्य सुरक्षा मिलती है।
- उपज बढ़ेगी (High yield wheat seeds)
- रोग-प्रतिरोधक किस्में (Disease resistant wheat varieties) होने से दवा पर खर्च कम होगा
- कम पानी में ज्यादा उत्पादन मिलेगा
- बाजार में अच्छा दाम मिलेगा (विशेषकर biofortified और high-protein varieties)
- पोषण सुरक्षा भी बढ़ेगी – यानी उपभोक्ता को भी फायदा
निष्कर्ष (Conclusion)
साल 2025 में गेहूँ (Wheat) की नई किस्में किसानों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकती हैं। PBW 872 और PBW 826 समय पर बोने वालों के लिए बढ़िया हैं, PBW 757 देर से बोने वालों के लिए सही है और IARI की HI 8840, HD 3390 व HD 3410 जैसी किस्में पोषण और प्रोटीन की दृष्टि से खास हैं। किसान अगर अपनी जमीन और इलाके के हिसाब से सही किस्म चुनें, सही समय पर बुवाई करें और खेती के नियमों का पालन करें तो उन्हें ज्यादा उपज, बेहतर गुणवत्ता और अच्छा दाम मिलेगा। यही नई किस्मों का सबसे बड़ा फायदा है।
FAQ (Frequently Asked Questions)
2025 में गेहूं की कौन-कौन सी नई किस्में जारी हुई हैं?
2025 में कई नई हाई-यील्ड (High Yield) गेहूं की किस्में आई हैं, जिनमें प्रमुख हैं – HD 3226 (Pusa Wheat), DBW 187, HD 2967, HI 8759 (Shresth), और PBW 803। ये किस्में ज्यादा उत्पादन देती हैं और रोग-प्रतिरोधी (Disease Resistant) भी हैं।
किसानों को नई किस्में पुराने गेहूं से क्यों ज्यादा फायदेमंद हैं?
नई किस्में कम पानी, कम खाद और रोगों से बचाव करते हुए ज्यादा उपज देती हैं। यानी किसान को कम लागत (Low Cost Farming) में ज्यादा फायदा मिलता है।
क्या नई किस्में हर मौसम और हर राज्य में लगाई जा सकती हैं?
नहीं, हर किस्म हर जगह फिट नहीं बैठती। उदाहरण के लिए, HD 3226 उत्तर भारत में ज्यादा लोकप्रिय है, जबकि HI 8759 (Shresth) मध्य भारत के लिए बेहतर है। किसान को अपने इलाके के अनुसार किस्म चुननी चाहिए।
गेहूं की नई किस्में किस संस्थान (ICAR/IARI/राज्य कृषि विश्वविद्यालय) ने विकसित की हैं?
ज्यादातर किस्में ICAR (Indian Council of Agricultural Research) और IARI (Indian Agricultural Research Institute, Pusa, New Delhi) ने विकसित की हैं।
Pusa Wheat HD-3226 किस संस्थान ने बनाई है?
HD 3226 (Pusa Wheat) को IARI, New Delhi ने विकसित किया है।
क्या राज्य स्तरीय कृषि विश्वविद्यालय भी गेहूं की किस्में बनाते हैं?
हाँ, कई राज्य कृषि विश्वविद्यालय जैसे PAU (Punjab Agricultural University), JNKVV Jabalpur, और BHU भी गेहूं की किस्में विकसित करते हैं।
गेहूं की नई किस्मों को कितनी सिंचाई की जरूरत पड़ती है?
गेहूं की नई किस्मों को औसतन 4 से 5 सिंचाई की जरूरत होती है।
गेहूं की फसल के लिए सबसे महत्वपूर्ण सिंचाई कौन-सी होती है?
पहली सिंचाई Crown Root Initiation (CRI) Stage पर (20-25 दिन बाद) और दूसरी Heading Stage पर सबसे महत्वपूर्ण होती है।
क्या ड्रिप या स्प्रिंकलर से गेहूं की सिंचाई करना फायदेमंद है?
हाँ, ड्रिप और स्प्रिंकलर से पानी 40% तक बचाया जा सकता है और फसल स्वस्थ रहती है।
नई गेहूं की किस्मों की औसत उपज कितनी होती है (क्विंटल प्रति हेक्टेयर)?
नई किस्मों की औसत उपज 60 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है।
कौन-सी किस्म सबसे ज्यादा उपज देती है?
HD 3226 और DBW 187 सबसे ज्यादा उपज देने वाली किस्में हैं।
क्या नई किस्में कम पानी और कम खाद में भी ज्यादा उपज देती हैं?
हाँ, यही इन किस्मों का सबसे बड़ा फायदा है। ये किस्में Water Efficient और Fertilizer Efficient हैं।
नई गेहूं की किस्में बोने का सही समय कौन-सा है?
गेहूं की बुवाई का सही समय 15 नवंबर से 10 दिसंबर तक है।
गेहूं बोने के लिए बीज दर (Seed Rate) कितनी होनी चाहिए?
100 से 120 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है।
क्या नई किस्में मशीन से बोना बेहतर है या हाथ से?
मशीन (Seed Drill) से बोना बेहतर है क्योंकि इसमें बीज और खाद समान रूप से पड़ते हैं और उपज ज्यादा मिलती है।
नई गेहूं की किस्मों में खाद और उर्वरक कैसे डालने चाहिए?
120-150 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फॉस्फोरस और 40 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए।
गेहूं की फसल में खरपतवार (Weed) नियंत्रण का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
बुवाई के बाद 2-3 दिन के भीतर Pre-Emergent Herbicide (जैसे Pendimethalin) का छिड़काव करना चाहिए।
क्या जैविक खाद (Organic Manure) से गेहूं की उपज बढ़ाई जा सकती है?
हाँ, गोबर की खाद और वर्मी-कम्पोस्ट डालने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और उपज भी अच्छी मिलती है।
नई किस्मों में कौन-कौन से रोग ज्यादा आते हैं?
गेहूं में मुख्य रोग हैं – पीला करनाल बंट, स्मट और रतुआ (Rust Disease)।
गेहूं की फसल में पीला रोग (Yellow Rust) से कैसे बचाव करें?
रोग-प्रतिरोधी किस्म बोएं और जरूरत पड़ने पर Fungicide (Propiconazole) का छिड़काव करें।
क्या नई किस्में रोग प्रतिरोधक (Disease Resistant) हैं?
हाँ, कई किस्में जैसे HD 3226 और PBW 803 रोग-प्रतिरोधक हैं।
कौन-सी गेहूं की किस्म ज्यादा उपज देती है – HD 3226 या DBW 187?
दोनों ही ज्यादा उपज देती हैं, लेकिन HD 3226 औसतन 75 क्विंटल/हेक्टेयर तक और DBW 187 लगभग 70 क्विंटल/हेक्टेयर तक देती है।
पानी बचाने के लिए कौन-सी गेहूं की किस्म सबसे अच्छी है?
HI 8759 (Shresth) कम पानी में भी अच्छी उपज देती है।
कौन-सी गेहूं की किस्म कम लागत में ज्यादा फायदा देती है?
HD 2967 और DBW 187 किसानों को Low Cost Farming में ज्यादा फायदा देती हैं।
नई गेहूं की किस्में किसानों को आर्थिक रूप से कितना फायदा देती हैं?
किसान को प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल ज्यादा उत्पादन मिलता है, जिससे ₹20,000-₹25,000 तक अतिरिक्त कमाई हो सकती है।
क्या नई किस्में MSP (Minimum Support Price) पर आसानी से बिक जाती हैं?
हाँ, नई किस्में भी सरकार के MSP पर खरीदी जाती हैं।
क्या गेहूं की नई किस्में निर्यात (Export) के लिए भी उपयोगी हैं?
हाँ, खासकर HD 3226 और PBW 803 की डिमांड इंटरनेशनल मार्केट में है।
पुराने गेहूं और नई किस्मों में सबसे बड़ा अंतर क्या है?
पुराने गेहूं में उपज कम और रोग ज्यादा होते थे, जबकि नई किस्मों में ज्यादा उत्पादन, बेहतर दाना और रोग प्रतिरोधक क्षमता है।
क्या भविष्य में गेहूं की और भी ज्यादा किस्में आने वाली हैं?
हाँ, हर साल ICAR और कृषि विश्वविद्यालय नई किस्में रिलीज करते हैं।
किसानों को कौन-सी किस्म अपनानी चाहिए जिससे सबसे ज्यादा फायदा हो?
किसानों को अपनी जगह और मौसम के अनुसार किस्म चुननी चाहिए। उत्तर भारत में HD 3226 और DBW 187, जबकि मध्य भारत में HI 8759 (Shresth) सबसे बेहतर हैं।
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