10 गुना मुनाफा: सरसों की खेती (Mustard Farming) का संपूर्ण गाइड और उन्नत तरीका

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नमस्कार! किसान भाइयों, आज हम उस फसल के बारे में बात करने जा रहे हैं जो आपकी रसोई का स्वाद बढ़ाती है और आपकी आर्थिक स्थिति को मजबूत करती है – जी हां, मैं बात कर रहा हूँ सरसों की खेती (Mustard Farming) की। भारत में सरसों (Mustard) रबी की एक प्रमुख तिलहनी फसल है। यह सिर्फ तेल के लिए ही नहीं, बल्कि इसकी खल पशुओं के चारे के रूप में और हरी पत्तियां सब्जी के रूप में भी इस्तेमाल होती हैं।

पिछले कुछ सालों में, तेल की बढ़ती मांग को देखते हुए सरसों की खेती (Mustard Farming) का महत्व काफी बढ़ गया है। यदि आप सही वैज्ञानिक तरीकों, उन्नत किस्मों, और सटीक प्रबंधन को अपनाते हैं, तो आप पारंपरिक खेती की तुलना में अपनी आय को कई गुना बढ़ा सकते हैं। यह पूरा लेख एक सरल भाषा में तैयार किया गया है, ताकि एक साधारण किसान भी इसे पढ़कर अपनी सरसों की खेती (Mustard Farming) से बंपर उत्पादन ले सके।

आज हमलोग सरसों की खेती (Mustard Farming) के बीज चयन से लेकर खेत की तैयारी, खाद, सिंचाई, रोग-नियंत्रण, उत्पादन बढ़ाने की तकनीक, सरकारी सब्सिडी और मुनाफ़ा कैलकुलेशन तक हर पहलू पर चर्चा करेंगे।

सरसों की खेती क्या है? (What is Mustard Farming?)

सरसों की खेती (Mustard Farming) रबी मौसम में उगाई जाने वाली प्रमुख तिलहनी फसल है। इसे अक्टूबर से दिसंबर तक बोया जाता है और फरवरी-मार्च में कटाई कर ली जाती है। किसान भाइयों के लिए यह फसल इसीलिए फायदेमंद है क्योंकि इसकी लागत कम होती है और बाजार भाव अच्छा मिलता है। सरसों से तेल, खली (पशुचारा), मसाला और हरी खाद भी तैयार होती है। भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा, यूपी, बिहार और एमपी में बड़े पैमाने पर होती है। सही तकनीक से खेती करने पर किसान कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

सरसों की खेती का महत्व और लाभ (Importance and Benefits of Mustard Farming)

सरसों की खेती (Mustard Farming) भारत के कृषि क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह न केवल हमारे देश की तिलहन उत्पादन की जरूरतों को पूरा करती है, बल्कि किसानों के लिए भी एक शानदार मुनाफा देने वाली फसल है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह कम पानी और कम लागत में भी अच्छी उपज दे सकती है।

इसकी खेती करने से खेत की मिट्टी की गुणवत्ता भी सुधरती है, क्योंकि इसकी जड़ें मिट्टी को भुरभुरी बनाने में मदद करती हैं। साथ ही, रबी सीजन में यह फसल जल्दी तैयार हो जाती है, जिससे किसानों को अगली फसल की तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। तेल और खल की बाजार में हमेशा मांग बनी रहती है, जिससे अच्छी कीमत मिलना लगभग तय होता है। इसकी खेती किसानों को जल्दी और अच्छी आय देती है।

सरसों की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Best Climate for Mustard Farming)

सरसों की खेती (Mustard Farming) ठंडे और शुष्क मौसम में सबसे बेहतर होती है। अंकुरण के लिए 20–25°C और फूल/फली बनने के लिए 10–15°C तापमान आदर्श माना जाता है। अधिक गर्मी या बारिश फसल को नुकसान पहुंचाती है। फुलाव के समय तेज हवा और पाला फूल झड़ने और उत्पादन कम होने का कारण बनते हैं। इसलिए किसान भाइयों को चाहिए कि सरसों की बुवाई हमेशा ऐसे समय करें कि फसल का फूलन समय ठंडे मौसम में आए। सर्दियों के हल्के तापमान में पौधे तेजी से बढ़ते हैं और दानों का भराव भी अच्छा होता है।

सरसों की खेती के लिए मिट्टी (Best Soil for Mustard Farming)

सरसों की खेती (Mustard Farming) के लिए दोमट, बलुई दोमट और मध्यम उपजाऊ मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। खेत में पानी का निकास अच्छा होना चाहिए क्योंकि सरसों जलभराव सहन नहीं कर पाती। मिट्टी का pH स्तर 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए। यदि मिट्टी बहुत कड़ी हो या उसमें अधिक नमी बनी रहती हो, तो जड़ें सड़ने लगती हैं जिससे उत्पादन कम हो जाता है। किसान भाइयों को सलाह है कि बुवाई से पहले खेत की 1–2 जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बनाएं और फिर पाटा चलाकर समतल करें ताकि बीज अच्छे से जम सकें।

सरसों की उन्नत किस्में और उनका चयन (Advanced Varieties and Their Selection)

सरसों की खेती (Mustard Farming) में बंपर पैदावार के लिए सही किस्म का चुनाव करना सबसे महत्वपूर्ण कदम है। उन्नत किस्में अधिक तेल प्रतिशत, रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता और कम समय में पकने की क्षमता वाली होनी चाहिए। भारत में मुख्य रूप से राई (Indian Mustard), तोरिया (Tori/Toria), और पीली सरसों (Yellow Mustard) की खेती की जाती है।

कुछ प्रमुख और अधिक उपज देने वाली किस्में हैं: पूसा बोल्ड, वरुणा/वरणा (टी-59), पायनियर 45एस42/46, RH-749, गिरिराज, NRCHB-101 और पुसा सरसों-26। किसान भाई अपनी जमीन और क्षेत्र के मौसम के हिसाब से किस्म का चयन करें। जल्दी पकने वाली किस्में (100-110 दिन) वहाँ के लिए बेहतर हैं, जहाँ रबी के बाद कोई अन्य फसल ली जानी हो। उन्नत किस्मों के बीज हमेशा विश्वसनीय स्रोत से ही खरीदें, ताकि शुद्धता बनी रहे।

खेत की तैयारी और बुवाई का सही समय (Field Preparation and Right Sowing Time)

सरसों की खेती (Mustard Farming) से पहले खेत की तैयारी अच्छे से करनी चाहिए। सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करें। इसके बाद दो से तीन जुताई कल्टीवेटर या रोटावेटर से करें, जिससे मिट्टी एकदम भुरभुरी और समतल हो जाए। बुवाई से पहले खेत को पाटा लगाकर समतल करना जरूरी है, ताकि सिंचाई का पानी पूरे खेत में समान रूप से फैल सके।

सरसों के लिए बुवाई का सबसे अच्छा समय सितंबर के अंतिम सप्ताह से लेकर नवंबर के पहले सप्ताह तक माना जाता है। उत्तर भारत में 15 अक्टूबर–15 नवंबर बुवाई का सबसे अच्छा समय माना जाता है। तोरिया (Toria) जैसी जल्दी पकने वाली किस्मों की बुवाई थोड़ी पहले (सितंबर) की जाती है।

सरसों की बुवाई की विधि (Sowing Methods in Mustard)

सरसों की बुवाई दो तरीके से की जाती है – छिट्टा विधि और कतार विधि। आधुनिक किसान आमतौर पर कतार विधि अपनाते हैं जिसमें पंक्ति-से-पंक्ति दूरी 30–40 सेमी और पौधे-से-पौधे दूरी 10–12 सेमी रखी जाती है। इससे निराई-गुड़ाई, खाद डालना और रोग नियंत्रण करना आसान होता है। बीज 4–5 सेमी की गहराई पर बोएं ताकि अंकुरण अच्छा हो। पलेवा (हल्की नमी) वाली स्थिति में बुवाई सबसे बढ़िया मानी जाती है। सीड ड्रिल से आधुनिक मशीन का इस्तमाल करके किसान काफी पैसा और समय बचा सकते हैं।

Note:-बारिश के तुरंत बाद या अत्यधिक नमी वाली मिट्टी में बुवाई नहीं करनी चाहिए।

खाद और उर्वरक प्रबंधन (Manure and Fertilizer Management)

सरसों के अच्छी पैदावार के लिए संतुलित पोषण देना बहुत जरूरी है। बुवाई के समय, NPK प्रति एकड़ (40 से 60 किलोग्राम नाइट्रोजन (N), 20 से 30 किलोग्राम फॉस्फोरस (P), और 20 किलोग्राम पोटाश (K)) देना चाहिए। इसके अलावा, 10-15 किलोग्राम सल्फर (गंधक) का उपयोग करना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि सल्फर सीधे तेल की मात्रा को बढ़ाता है।

नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फॉस्फोरस, पोटाश और सल्फर की पूरी मात्रा बुवाई के समय खेत की अंतिम जुताई में मिला दें। बाकी बची आधी नाइट्रोजन को पहली सिंचाई के बाद (करीब 30-35 दिन बाद) खेत में छिड़काव के माध्यम से दें। इसके अलावा, अच्छी गुणवत्ता वाली जैविक खाद जैसे गोबर (प्रति एकड़ 6–8 टन)की खाद या केंचुआ खाद, नीमखली, वर्मी कम्पोस्ट और जीवामृत का इस्तेमाल मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में बहुत मदद करता है।

बीज उपचार और बुवाई की विधि (Seed Treatment and Sowing Method)

सरसों की खेती (Mustard Farming) में बीजों को रोगों और कीटों से बचाने के लिए बीज उपचार (Seed Treatment) करना बेहद जरूरी है। बीज उपचार से अंकुरण भी बेहतर होता है। बुवाई से पहले बीजों को फफूंदनाशक दवा जैसे कार्बेन्डाजिम (Carbendazim) या थायरम (Thiram) 2 से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।

इसके लिए बीज की मात्रा, किस्म और बुवाई के समय पर निर्भर करती है, लेकिन सामान्य तौर पर प्रति एकड़ 1.5 से 2.5 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। बुवाई हमेशा पंक्ति में करनी चाहिए। पंक्ति में बुवाई करने से निराई-गुड़ाई, सिंचाई और कटाई में आसानी होती है। बीज को 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई पर ही बोना चाहिए। अधिक गहराई पर बुवाई करने से अंकुरण प्रभावित हो सकता है।

सरसों की सिंचाई (Irrigation in Mustard Farming)

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सरसों की खेती (Mustard Farming) कम सिंचाई वाली फसल है। ज्यादातर क्षेत्रों में सिर्फ 1 से 2 सिंचाई ही पर्याप्त होती हैं। लेकिन सही समय पर पानी देना इसकी पैदावार को दोगुना कर सकता है। सामान्यतः, इसके लिए दो सिंचाई पर्याप्त होती हैं।

पहली सिंचाई: बुवाई के 30 से 35 दिन बाद, जब फसल में फूल आने की अवस्था शुरू होती है (Flowering Stage)। यह अवस्था बहुत ही नाजुक होती है और इस समय नमी की कमी से उपज पर सीधा असर पड़ता है।

दूसरी सिंचाई: फली बनने की अवस्था (Pod Formation Stage) में, यानी पहली सिंचाई के 20 से 25 दिन बाद या बुवाई के 60 से 65 दिन बाद। यदि मिट्टी बहुत हल्की है या लंबे समय तक सूखा पड़ा है, तो तीसरी हल्की सिंचाई की जरूरत पड़ सकती है। ध्यान रखें कि सिंचाई हमेशा हल्की होनी चाहिए; खेत में पानी जमा नहीं होना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण (Weed Control)

सरसों की खेती (Mustard Farming) में खरपतवार (Weeds) फसल के पोषक तत्वों को छीन लेते हैं, जिससे पैदावार में भारी कमी आ सकती है। गाजरघास, मोथा और बथुआ जैसे खरपतवार उत्पादन कम कर देते हैं, इसलिए समय पर नियंत्रण जरूरी है। कतार विधि में निराई आसान होती है। इसकी खेती में शुरुआती 30 से 45 दिन खरपतवार नियंत्रण के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। किसान भाई दो तरीके अपना सकते हैं:

  1. यांत्रिक नियंत्रण: पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 20 से 25 दिन बाद और दूसरी 40 से 45 दिन बाद करें। निराई-गुड़ाई से खरपतवार नष्ट होते हैं और मिट्टी में हवा का संचार भी सुधरता है।
  2. रासायनिक नियंत्रण: यदि खरपतवारों की समस्या ज्यादा है, तो बुवाई के तुरंत बाद (पर अंकुरण से पहले) पेंडीमेथालिन (Pendimethalin) 1 लीटर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। उगने के बाद, चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए 2,4-डी (2,4-D) जैसे खरपतवारनाशक का प्रयोग विशेषज्ञों की सलाह से कर सकते हैं।

रोग और कीट प्रबंधन (Disease and Pest Management)

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सरसों को कई तरह के रोग और कीट नुकसान पहुंचाते हैं। समय पर प्रबंधन करना बहुत जरूरी है। रोग-प्रतिरोधी किस्में अपनाने पर नुकसान काफी कम होता है।

  • प्रमुख कीट: माहू (एफिड) सरसों का सबसे खतरनाक कीट है, जो कोमल तनों और पत्तियों से रस चूसता है। इसकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड (Imidacloprid) 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें या नीम तेल 5ml/लीटर छिड़काव भी लाभकारी होता है।
  • प्रमुख रोग: सफेद रस्ट (White Rust) और अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा (Alternaria Leaf Spot) प्रमुख फफूंद जनित रोग हैं। इनकी रोकथाम के लिए मैन्कोजेब (Mancozeb) या मेटालेक्सिल + मैन्कोजेब (Metalaxyl + Mancozeb) का छिड़काव 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से करें। रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना सबसे अच्छा बचाव है। खेती के दौरान खेत में नियमित रूप से निगरानी रखें।

कटाई और मड़ाई का सही समय और तरीका (Right Time and Method of Harvesting and Threshing)

सरसों की कटाई सही समय पर करना बहुत जरूरी है, क्योंकि देर करने पर फलियाँ चटकने लगती हैं और बीज खेत में ही गिर जाते हैं। सरसों की कटाई तब करनी चाहिए जब पौधे की 75 से 80 प्रतिशत फलियाँ पीली पड़ जाएं और बीज का रंग काला या भूरा हो जाए। यह अवस्था आमतौर पर बुवाई के 110 से 140 दिन बाद आती है।

कटाई सुबह के समय करनी चाहिए, जब ओस के कारण नमी हो, ताकि फलियाँ न चटकें। कटाई के बाद फसल को 3 से 4 दिन तक खेत में छोटे-छोटे गट्ठर बनाकर सुखाएं। पूरी तरह सूखने के बाद मड़ाई (Threshing) करें। मड़ाई के बाद बीजों को अच्छी तरह साफ करके तब तक सुखाएं जब तक नमी 8 प्रतिशत से कम न हो जाए, जो भंडारण के लिए जरूरी है।

NOTE:- जब फली 70–80% तक पक जाए और अच्छा पीला-भूरा रंग दिखने लगे, तब कटाई करें। देर से कटाई करने पर फलियाँ झड़ जाती हैं। कटाई के बाद पौधों को 4–5 दिन धूप में सुखाएं और फिर दानाकरण करें। साफ और सूखे दाने ही भंडारण के लिए रखें।

सरसों की खेती में अंतरफसल (Intercropping in Mustard Farming)

सरसों की खेती (Mustard Farming) में अंतरफसल (Intercropping) एक ऐसी तकनीक है जो किसानों की आय को बढ़ा सकती है और जोखिम को कम कर सकती है। इसमें सरसों की फसल के साथ ही खेत में किसी दूसरी फसल को भी उगाया जाता है। सरसों की खेती (Mustard Farming) के लिए सबसे उपयुक्त अंतरफसली फसलें हैं: चना (Gram), मसूर (Lentil), और गेहूं (Wheat)।

  • गेहूं के साथ: 9 पंक्ति गेहूं के बाद 1 पंक्ति सरसों बोई जा सकती है।
  • चना के साथ: 3 पंक्ति चना के बाद 1 पंक्ति सरसों बोना भी एक सफल मॉडल है।
  • मसूर के साथ: 5 पंक्ति गेहूं के बाद 1 पंक्ति सरसों बोई जा सकती है।

अंतरफसल अपनाने से मुख्य फसल के कीटों और रोगों का प्रकोप भी कम होता है। साथ ही, किसान भाई कम क्षेत्र से ही दोहरी उपज और मुनाफा प्राप्त करते हैं। यह तरीका इसकी खेती को और भी लाभकारी बनाता है।

भंडारण और मार्केटिंग (Storage and Marketing)

सरसों का भंडारण एक महत्वपूर्ण चरण है। बीज को अच्छी तरह सुखाकर (नमी 8% से कम) साफ, हवादार और सूखे स्थान पर ही भंडारित करें। भंडारण के लिए जूट के बोरे सबसे अच्छे होते हैं। नमी ज्यादा होने पर फफूंद लग सकती है।

मार्केटिंग (Marketing) में किसान भाई दो मुख्य तरीके अपना सकते हैं:

  1. सरकारी खरीद केंद्र/मंडी: अपनी उपज को सीधे सरकारी खरीद केंद्र या स्थानीय कृषि उपज मंडी में बेचें, जहाँ प्रतिस्पर्धा के कारण अक्सर अच्छा भाव मिलता है।
  2. तेल मिलों को सीधे बिक्री: यदि मात्रा अधिक है, तो सीधे स्थानीय तेल मिलों या बड़े व्यापारियों से संपर्क करें, जहाँ थोक में बेचने पर बेहतर दर मिल सकती है।

उत्पादन लागत और बाजार मूल्य का हमेशा ध्यान रखें ताकि सरसों की खेती (Mustard Farming) से अधिकतम मुनाफा कमाया जा सके।

सरसों की खेती की लागत और मुनाफ़ा (Cost & Profit in Mustard Farming)

एक एकड़ सरसों की खेती की औसत लागत 7,000–10,000 रुपये आती है। अच्छी उपज 7–10 क्विंटल प्रति एकड़ तक मिल जाती है। बाजार भाव 6,000–7,500 रु/क्विंटल चलता है। यानी किसान भाइयों को प्रति एकड़ 40,000–65,000 रुपये तक की आमदनी हो सकती है। सही तकनीक अपनाने से मुनाफ़ा और बढ़ जाता है।

सरकारी योजनाएँ और किसान क्रेडिट कार्ड (Government Schemes and KCC)

सरसों की खेती (Mustard Farming): सरसों की खेती में मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए किसान सरकारी योजनाओं का भी लाभ उठा सकते हैं। ये योजनाएँ खेती की लागत को कम करने और पूंजी (Capital) की व्यवस्था करने में मदद करती हैं।

भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा चलाई जाने वाली कई योजनाएँ हैं, जो किसानों को सब्ज़ी और बागवानी (Horticulture) फसलों के लिए सब्सिडी (Subsidy) देती हैं।

  1. राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM): इस योजना के तहत, आलू की खेती के लिए उन्नत बीज, प्लांटर मशीन, कोल्ड स्टोरेज बनाने और माइक्रो-इरिगेशन सिस्टम लगाने पर सब्सिडी मिल सकती है।
  2. प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN): यह योजना सीधे किसानों के खाते में सालाना ₹6,000 की वित्तीय सहायता देती है, जिसका उपयोग किसान खेती के छोटे-मोटे ख़र्चों के लिए कर सकते हैं।

सबसे ज़रूरी है किसान क्रेडिट कार्ड (Kisan Credit Card – KCC)। केसीसी के ज़रिए किसान बहुत कम ब्याज दर पर (लगभग 4% प्रति वर्ष) खेती के लिए लोन (Loan) ले सकते हैं। इस पैसे का उपयोग आलू के बीज, खाद, कीटनाशक खरीदने या बुवाई के ख़र्चों को पूरा करने के लिए किया जा सकता है। इससे किसान को तुरंत पैसा उधार लेने या अपनी बचत को ख़र्च करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। किसान को हमेशा अपने क्षेत्र के कृषि विभाग या बागवानी विभाग से संपर्क करके नवीनतम योजनाओं और सब्सिडी के बारे में जानकारी लेते रहना चाहिए।

FAQ: सरसों की खेती (Mustard Farming) अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

सरसों की खेती में प्रति एकड़ बीज की सही मात्रा क्या है? (What is the right seed rate per acre in mustard farming?)

उन्नत किस्मों के लिए सरसों की खेती में प्रति एकड़ 1.5 से 2.5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। यदि बुवाई छिटकवाँ विधि से करते हैं, तो यह मात्रा थोड़ी बढ़ सकती है। पंक्ति में बुवाई करने से बीज की बचत होती है।

सरसों की फसल में तेल की मात्रा (Oil Content) कैसे बढ़ाएं? (How to increase oil content in mustard crop?)

सरसों में तेल की मात्रा बढ़ाने के लिए सल्फर (गंधक) उर्वरक का प्रयोग बहुत जरूरी है। बुवाई के समय 10 से 15 किलोग्राम सल्फर प्रति एकड़ अवश्य डालें। साथ ही, सही समय पर और संतुलित सिंचाई (खासकर फूल और फली बनने के समय) भी तेल की मात्रा को बढ़ाती है।

सरसों की फसल को माहू (Aphid) कीट से कैसे बचाएं? (How to save mustard crop from Aphid pest?)

माहू सरसों के फसल का सबसे आम और हानिकारक कीट है। इसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10 से 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें। नीम तेल आधारित जैविक कीटनाशक भी प्रभावी हैं।

सरसों की खेती में पहली सिंचाई कब करें? (When to do the first irrigation in mustard farming?)

सरसों की खेती में पहली सिंचाई बुवाई के 30 से 35 दिन बाद, फूल आने की अवस्था (Flowering Stage) में करनी चाहिए। यह अवस्था फसल के लिए सबसे नाजुक होती है और इस समय खेत में नमी होना अति आवश्यक है।

सरसों की कटाई का सही समय क्या है? (What is the right time for harvesting mustard?)

सरसों की कटाई तब करनी चाहिए जब 75 से 80 प्रतिशत फलियाँ पीली पड़ जाएं और बीज का रंग काला या भूरा हो जाए। अधिक देर करने से फलियाँ चटक जाती हैं और पैदावार का नुकसान होता है।

सरसों की खेती में सबसे ज्यादा उत्पादन कैसे लें?

उन्नत किस्म, संतुलित NPK, सल्फर और समय पर सिंचाई करके उत्पादन 20–30% तक बढ़ाया जा सकता है।

सरसों की खेती में कौन सी खाद सबसे जरूरी है?

सल्फर और नाइट्रोजन सरसों में तेल मात्रा बढ़ाते हैं और उपज सुधारते हैं।

एक एकड़ सरसों से कितनी कमाई होती है?

कम से कम 40,000 और अधिकतम 60,000 रुपये तक।

सरसों में एफिड कीट से कैसे बचें?

नीम तेल 5ml/लीटर और इमिडाक्लोप्रिड 17.8SL का हल्का छिड़काव करें।

सरसों का तेल कितना लाभदायक बिज़नेस है?

सरसों तेल प्रोसेसिंग यूनिट में मुनाफ़ा मार्जिन 25–40% तक होता है।

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