सरकार द्वारा, धान की फसल के लिए DSR (DIRECT SEEDING RICE) तकनीक अपनाने पर भारी जोर, पानी खर्च 35 प्रतिशत तक घटेगा, प्रति एकड़ 10 से 15 हजार रुपये तक की होगी बचत।

सरकार द्वारा डायरेक्ट सीडेड राइस (DIRECT SEEDED RICE – DSR) पद्धति अपनाने पर भरपूर जोर दिया जा रहा है। इस पद्धति के तहत बीज सीधे खेत में बोए जाते हैं, जिससे बुवाई में लगने वाला समय और लागत दोनों कम हो जाता है। इस पद्धति से खेती करने पर 35 प्रतिशत पानी का खर्च बच सकता है और किसान प्रति एकड़ 10 से 15 हजार तक बचाया जा सकता है।

DSR (DIRECT SEEDING RICE)
DSR (DIRECT SEEDED RICE)
DSR (DIRECT SEEDED RICE)

ये सभी किसान भाई जानते हैं धान को परंपरागत तरीके से उगाने में बहुत पानी की खपत होती है। यही वजह है कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारें लगातार किसानों को धन की खेती के लिए ऐसी तकनीक अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं, जिसमें पानी का कम से कम इस्तेमाल हो। वहीं, भूजल का लगातार गिरता स्तर भी किसानों की चिंता का एक बड़ा कारण बन रहा है। इसी को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकार अब धान की सीधी बुवाई (Direct Seeded Rice -DSR) तकनीक से करने को बढ़ावा दे रही है और किसानों से इसे अपनाने का आग्रह कर रही है। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार किसानों (Direct Seeded Rice -DSR) मशीन पे आर्थिक सहायता भी दे रही है।

डायरेक्ट सीडेड राइस (Direct Seeded Rice -DSR) पद्धति अपनाने पर सरकार द्वारा काफी जोर दिया जा रहा है। इस पद्धति के तहत खेत में सीधे बीज बोए जाते हैं। जबकि पारंपरिक बुवाई में पहले धान की नर्सरी तैयार की जाती है और फिर करीब 20 से 25 दिन बाद धान की नर्सरी को खेत में लगा दिया जाता है। पारंपरिक पद्धति Direct Seeded Rice -DSR पद्धति के तुलना में दोगुनी लागत आती है और समय भी ज्यादा लगता है।
किसानों द्वारा Direct Seeded Rice -DSR पद्धति अपनाने की गति अभी भी काफी धीमी है। किसानों द्वारा Direct Seeded Rice -DSR पद्धति अपनाने के लिए निजी कंपनियां भी काफी प्रयास कर रही है।

खेत की तैयारी एवं बुआई की विधि

खेत का समतलीकरण

उपयुक्त जमाव के लिए खेत का समतल होना आवश्यक है तथा खेत के समतल होने से सिंचाई के समय में बचत के साथ ही पैदावार भी बढ़ती है। खेत को लेजर लैण्ड लेवलर से समतल कराना चाहिए। अगर लेजर लैण्ड लेवलर उपलब्ध नहीं है तो खेत को परम्परागत विधि से समतल किया जा सकता है। (उचित जुताई तथा उसके बाद पाटा लगाकर समतल करना)।

बुआई की विधि

सीधी बुआई की दो विधियां हैं-

  • नम विधि (Vattar/Water)- इस विधि में बुआई से पहले एक गहरी सिंचाई करते हैं और जब खेत जुताई करने योग्य होता है तो खेत को तैयार करते हैं (दो से तीन जुताई + एक पाटा) और उसके तुरन्त बाद Direct Seeded Rice -DSR द्वारा बुआई करते हैं। बुआई करते समय हल्का पाटा लगाते हैं जिससे बीज अच्छी तरह से मिट्टी से ढक जाय। इस विधि से बुआई शाम के समय करनी चाहिए जिससे नमी का कम से कम हास हो। इस विधि का प्रयोग करने से नमी संरक्षित रहती है।
  • सूखी विधि- इस विधि से धान की सीधी बुआई के लिए खेत को अच्छी तरह से तैयार करते हैं (दो से तीन जुताई एक पाटा)। इसके बाद मशीन से बुआई कर देते हैं और जमाव के लिए सिंचाई लगाते हैं (या वर्षा का इन्तजार करते हैं)। यदि एक सिंचाई पर सही जमाव नहीं आता तो तुरन्त 4-5 दिन के अन्दर दूसरी सिंचाई कर देनी चाहिए।

बुआई की कौन सी विधि अपनानी है यह मौसम एवं संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर करता है। अगर किसान के पास सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हैं और वर्षा प्रारम्भ होने से पहले बुआई करना चाहता है तो नम विधि द्वारा बुआई करना अच्छा रहता है। इस विधि का प्रयोग करने से फसल में दो-तीन सप्ताह तक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, साथ ही खरपतवारों की समस्या में भी कमी आती है।

बुआई के लिए मशीन

Direct Seeded Rice (DSR) कम फर्टीलाइजर ड्रिल (जीरो टिलेज मशीन) या सीड ड्रिल का प्रयोग कर सकते हैं। धान की बुआई के लिए इन्क्लाइंट प्लेट वाली मशीन अधिक उपयुक्त होती है। यदि पावर टिलर चालित सीडर या दो पहिया चालित ट्रैक्टर वाली सीड ड्रिल उपलब्ध है, तो उसका प्रयोग कर सकते हैं।

बुआई का समय

धान की सीधी बुआई का उपयुक्त समय 20 मई से 30 जून तक होता है। सही समय मानसून आने से 10-15 दिन पहले है या मई का आखिरी सप्ताह से लेकर मध्य जून तक हैं। यदि 30 जून के बाद बुआई करनी है तो कम अवधि वाली प्रजातियों का चयन करना चाहिए।

प्रजातियां बुआई का समय
लम्बी अवधि वाली (145 से 155 दिन)20 मई से 20 जून
मध्यम अवधि वाली (130 से 135 दिन)25 मई से 30 जून
छोटी अवधि वाली (115 से 120 दिन)01 जून से 30 जून
बीज दर

प्रजातियों का 10 से 12 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ आवश्यक होता है। संकर धान लगाने पर बीज की मात्रा 8 किलोग्राम प्रति एकड़ प्रयोग करते हैं।

गहराई

बुआई करते समय गहराई 2 से 3 सेमी होनी चाहिए। (गहराई 3 सेमी से अधिक नहीं होनी चाहिए) तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 18 से 20 सेमी होनी चाहिए। खरपतवार नियंत्रित करने के लिए यदि वीडर का प्रयोग करते हैं तो पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 सेमी होनी चाहिए।

ध्यान दें:- बीज की गुणवत्ता हमेशा प्रमाणित बीज ही प्रयोग करें।

बीज उपचार

बीज उपचार के लिए बीज को पानी तथा फफूंदीनाशक के घोल में मिलाकर 12 से 24 घंटे के लिए भिगोते हैं (बावस्टीन या एमीसान 1 ग्राम/किग्रा धान का बीज + स्टेप्टोसाइक्लीन 0.1 ग्राम/किग्रा की दर से प्रयोग करें)। बीज उपचार के लिए पानी की मात्रा बीज की मात्रा के बराबर होनी चाहिए। बीज को 24 घंटे बाद फफूंदीनाशक घोल में से निकालकर छाया में 1 से 2 घंटा सुखाते हैं। भिगोये हुए बीज केवल नम विधि द्वारा बुआई करने पर ही प्रयोग कर सकते हैं और मशीन इनक्लाइंड प्लेट वाली ही प्रयोग करनी चाहिए। भिगोये हुए बीज सूखी विधि द्वारा बुआई करने पर प्रयोग नहीं करना चाहिए और न ही जिस मशीन में फ्लूटेड रोलर टाइप सीड मिटरिंग सिस्टम हो उस दशा में बीज उपचार निम्न तरीके से करें। सूखे की दशा में इमीडाक्लोरोपिड (गोचो-350° एससी 3 मिली/किग्रा बीज) और ट्यूबाकोनाजोल (रैक्सिल-ईजी 1 मिली/किग्रा बीज) उपचारित करें। उपचारित करने के लिए रसायन को 15 मिली पानी/किग्रा की दर से उपचारित करें।

बीज प्रजातियों का चयन:-

धान कटाई के बाद गेहूँ की समय से बुआई एवं सिंचाई की बचत के लिए कम समय में पकने वाली या संकर धान का प्रयोग करना चाहिए। यद्यपि लम्बी अवधि वाली प्रजातियों का फायदा है जहाँ जल निकास की उचित व्यस्था हो जिससे कि कटाई जल्दी हो जाय। पूर्वी गंगा सिंधु के मैदानों के लिए उपयुक्त प्रजातियां एवं संकर धान निम्न है-

  • लम्बी अवधि वाले धान– बीपीटी 5204 (सांभा महसूरी), एमटीयू 7029 (नाटा महसूरी), राजेन्द्र महसूरी-1, मोती, स्वर्णा सब-1 (बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए) एवं राजश्री
  • मध्यम अवधि वाले धान– एराइज 6444, पीएचबी-71, एराइज प्राइमा, एराइज धानी, डी.आर.एच. 748, आर.एच. 1531, यू.एस.312 27 पी. 31 एवं एन के 5251ए आदि। प्रजातियां राजेन्द्र स्वेता, राजेन्द्र सुभाषिनी, एम.टी.यू. 1001 एवं एन.डी.आर.-359
  • छोटी अवधि वाले धान– सरयू 52, राजेन्द्र भगवती, पी.आर.एच.-10. एराइज-6129, एराइज तेज, आर.एच.-257, डी.आर.एच.-2366, डी.आर.एच.-834, पी.ए.सी.-807, सहभागी धान एवं अभिषेक (सूखा प्रभावित के लिए) आदि।

खरपतवार प्रबंधन:-

यांत्रिक:-

नम विधि से बुआई करने पर खरपतवार एवं जंगली धान की समस्या कम होती है क्योंकि बुआई से पहले सिंचाई करने से खरपतवारों का जमाव आ जाने से या तो हल्की जुताई कर या खरपतवापनाशी (ग्लाइफोसेट या पैराक्वाट) का प्रयोग कर इनको मार सकते हैं।

रसायनिक नियंत्रण:-

धान की सीधी बुआई में जमाव पूर्व और जमाव के बाद खरपतवारनाशी का प्रयोग प्रभावी पाया गया है।

  • जमाव के बाद खरपतवारनाशी:- खरपतवारों के अनुसार किसी एक का प्रयोग करें। नरकट, घास और चौड़ी पत्ती वाले घासों को नियंत्रित करने के लिए बिस्पाइरीबैक सोडियम 10 एस एल (100 मिली/ एकड़) या बिस्पाइरीबैक सोडियम 10 एस एल पाइराजोसल्पयूरॉन (100 मिली 80 ग्राम) या फिनोक्साप्रोप पी इथाइल सेपनर सहित इथाक्सीसल्पयूरॉन 500 मिली + 48 ग्राम / एकड़। यदि मोथा अधिक है तब बिस्पाइरीबैक सोडियम 10 एस एल पाइराजोसल्फ्यूरॉन और यदि मकड़ा और कौआ घास अधिक है तब फिनोक्साप्रोप पी इथाइल सेपनर सहित + इथाक्सीसल्फ्यूरॉन का प्रयोग करें।
हाथ से निराई:-

खरपतवारनाशियों में प्रतिरोधकता रोकने के लिए खेत में बचे हुए खरपवारों को हाथ से निराई कर निकाल देना चाहिए।

पोषक तत्व प्रबंधन:-

धान-गेहूँ फसल प्रबंधक से आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा की गणना कर सकते हैं। यह टूल http://webapps.irri.org/in/brup/rwcm/. और निम्न उरर्वकों की मात्रा राज्य सरकार की संस्तुति के अनुसार दे सकते हैं।

  • बुआई के समय: 50 किग्रा डीएपी या 75 किग्रा एन पी के (12:32:16) एवं 10 किग्रा एम ओ पी बुआई के समय देना चाहिए।
  • यूरिया का छिड़काव: 3 बार में देना चाहिए।
  1. 15 किग्रा बुआई के 15 दिन बाद
  2. कल्ले निकलते समय कम एवं मध्यम अवधि की प्रजातियों में 35 किग्रा यूरिया प्रति एकड़ की दर से व लम्बी अवधि की प्रजातियों के लिए 45 किग्रा प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
  3. बाली निकलने से पूर्व कम एवं मध्यम अवधि की प्रजातियों में 35 किग्रा यूरिया प्रति एकड़ की दर से व लम्बी अवधि की प्रजातियों के लिए 45 किग्रा प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।

कल्ले निकलने का समय एवं पेनिकल इनिसिएषन का समय यह प्रजातियों की अवधि पर निर्भर करता है। कम अवधि की प्रजातियों 115-120 में कल्ले निकलने का समय बुआई के 30-35 दिन बाद, एवं पेनिकल इनिसिएषन का समय बुआई क 43-47 दिन बाद, मध्यम अवधि 130-135 की प्रजातियों में कल्ले निकलने का समय बुआई के 35-40 दिन बाद, एवं पेनिकल इनिसिएषन का समय बुआई क 60-65 दिन बाद एवं लम्बी अवधि 145-155 की प्रजातियों में कल्ले निकलने का समय बुआई के 45-50 दिन बाद, एवं पेनिकल इनिसिएषन का समय बुआई के 75-80 दिन बाद होता हैं।

सिंचाई प्रबंधन:-

  1. नम विधि से बुआई करने पर पहली सिंचाई बुआई के 10 से 21 दिन बाद मौसम की दशा के अनुसार करनी चाहिए। यदि बारिश नहीं होती तो आगे की सिंचाइ एक सप्ताह के अन्तराल पर करनी चाहिए।
  2. सूखी विधि से बुआई करने पर पहली सिंचाई बुआई के 4 से 5 दिन बाद कर देनी चाहिए। वर्षा न होने पर नम विधि द्वारा बोये गये धान के समान ही सिंचाई करनी चाहिए। कांतिक अवस्था पर जैसे कि बाली निकलते समय और दाना भरते समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए। चिकनी मिट्टी में दरारें पड़ना सिंचाई की आवश्यकता को दर्शाता है अतः उस समय सिंचाई लगा देनी चाहिए।

कीट एवं रोग प्रबंधन:-

  1. प्रमुख कीट:
    चावल में प्रमुख कीटों में टिड्डा, काली बीटल, चावल बग, हिस्पा, स्टेम बोरर और चावल हॉपर शामिल हैं।
  2. नियंत्रण:
    न कीटों को नियंत्रित करने के लिए, आप टी-आकार के खूंटे लगाकर, खरपतवारों को नियंत्रित करके, संतुलित उर्वरक का उपयोग करके और आवश्यकतानुसार कीटनाशकों का उपयोग करके ऐसा कर सकते हैं।
  • रासायनिक उपाय: ट्राइजोफॉस 40 ईसी या क्विनलफॉस 25 ईसी का छिड़काव कीटों को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।
  • जैविक उपाय: जैविक कीट नियंत्रण विधियाँ, जैसे पक्षियों, बिच्छुओं और अन्य प्राकृतिक शत्रुओं को प्रोत्साहित करना भी एक प्रभावी तरीका है।

रोग प्रबंधन:

  1. मुख्य रोग: धान में प्रमुख रोगों में फफूंदी, जीवाणु, और विषाणु रोग शामिल हैं.

नियंत्रण:
इन रोगों को नियंत्रित करने के लिए, आप रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करके, संतुलित खाद का उपयोग करके, और आवश्यकतानुसार कवकनाशी का उपयोग कर सकते हैं।
रासायनिक उपाय:
हीनोसान या बाविस्टीन जैसे कवकनाशकों का उपयोग रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखने पर किया जा सकता है।

धान की सीधी बुआई क्या है?

धान की सीधी बुवाई एक ऐसी तकनीक है जिसमें धान के बीजों को नर्सरी में उगाने के बाद रोपने के बजाय सीधे खेत में बोया जाता है। इसमें खेत में उचित नमी की स्थिति में सीधे खेत में बीज बोए जाते हैं।

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