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असिंचित क्षेत्रों में गेहूँ के इन किस्मों लगाकर किसान कर सकते गेहूँ की उन्नत खेती

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भारत में खरीफ फसलों (Kharif Crops) में जहाँ धान (Rice) प्रमुख है, वहीं रबी फसलों (Rabi Crops) में गेहूं (Wheat) को सबसे मुख्य माना जाता है। दुनिया भर में अगर अनाज की खेती की बात करें तो मक्का (Maize) के बाद गेहूं दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसल है, जबकि धान तीसरे स्थान पर आता है।

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भारत में गेहूं (Wheat) की खेती मुख्य रूप से हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में सबसे अधिक की जाती है। देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन (Food Grain Production) में गेहूं का योगदान लगभग 37% है, जो इसे भारत की सबसे अहम फसलों में शामिल करता है।

गेहूं में प्रोटीन (Protein) की मात्रा अन्य अनाजों की तुलना में काफी ज्यादा होती है, इसलिए इसे पोषक और ऊर्जावान भोजन के रूप में जाना जाता है। यही कारण है कि इसकी मांग भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में लगातार बनी रहती है।

लगातार बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए गेहूं (Wheat) की पैदावार और उत्पादकता में लगातार सुधार करना बेहद जरूरी है। अच्छी फसल पाने के लिए गेहूं की सही समय पर सिंचाई करना आवश्यक होता है। चूँकि सर्दियों में भारत में बारिश बहुत कम होती है, इसलिए किसानों को सिंचाई के लिए नलकूप, कुएं या नहरों जैसे अन्य साधनों पर निर्भर रहना पड़ता है।

इसी समस्या को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और इसके विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिकों ने ऐसी नई गेहूं (Wheat) की किस्में विकसित की हैं जो कम पानी में भी अधिक उत्पादन देने में सक्षम हैं।

बेहतर उत्पादन के लिए केवल अच्छी किस्में ही नहीं, बल्कि नई खेती तकनीकें (Modern Farming Methods) और संतुलित इनपुट प्रबंधन (Efficient Input Management) भी जरूरी हैं। इससे खेती की लागत घटेगी और लाभ में बढ़ोतरी होगी।

इसी दिशा में, किसान समाधान आपके लिए असिंचित क्षेत्रों (Rainfed Areas) में गेहूं की सफल खेती से जुड़ी उपयोगी जानकारी लेकर आया है, ताकि किसान भाई कम पानी में भी अच्छी पैदावार ले सकें।

कम पानी या बारानी (Rainfed) क्षेत्रों में गेहूं की खेती

भारत के कई हिस्सों में ऐसे इलाके हैं जहाँ सिंचाई की सुविधा सीमित होती है या बारिश पर ही खेती निर्भर रहती है वहाँ गेहूं (Wheat) की औसत पैदावार (Yield) आमतौर पर सिंचित क्षेत्रों की तुलना में कुछ कम रहती है। कई परीक्षणों से यह बात सामने आई है कि बारानी या असिंचित इलाकों में गेहूं के बजाय राई, जौ और चना जैसी फसलें अधिक लाभदायक साबित होती हैं। फिर भी, ऐसे क्षेत्रों में भी किसान गेहूं की खेती सफलतापूर्वक कर सकते हैं, बशर्ते कि वे उपयुक्त किस्मों (Suitable Varieties) और सही खेती तकनीकों (Farming Practices) को अपनाएँ।

इसके लिए अक्टूबर में, जब मिट्टी में पर्याप्त नमी (Moisture) हो, बुवाई (Sowing) करनी चाहिए। यदि अक्टूबर–नवंबर के दौरान अच्छी बारिश हो जाए, तो गेहूं (Wheat) की फसल के लिए यह समय सबसे अनुकूल होता है।

बारानी या असिंचित परिस्थितियों (Unirrigated Conditions) में गेहूं (Wheat) की फसल को सफल बनाने के लिए मिट्टी का चुनाव, समय पर बुवाई, उचित बीज मात्रा, और नमी संरक्षण पर विशेष ध्यान देना जरूरी होता है।

अगर किसान कम पानी में उगने वाली उन्नत किस्में अपनाएँ और मल्चिंग, खरपतवार नियंत्रण जैसी तकनीकें इस्तेमाल करें, तो बिना नियमित सिंचाई के भी अच्छी उपज (Better Yield) प्राप्त की जा सकती है।

इस प्रकार, थोड़ी समझदारी और वैज्ञानिक पद्धति अपनाकर असिंचित क्षेत्रों में भी गेहूं की खेती किसानों के लिए लाभदायक और टिकाऊ विकल्प साबित हो सकती है। नीचे असिंचित क्षेत्रों में गेहूं की खेती से जुड़ी कुछ अहम बातें दी गई हैं —

असिंचित क्षेत्रों में खेत की तैयारी कैसे करें (Moisture Conservation Tips for Rainfed Areas)

बारानी या असिंचित इलाकों में गेहूं (Wheat) की अच्छी फसल के लिए मानसून की आखिरी बारिश का पूरा फायदा उठाना बहुत जरूरी होता है। जब बरसात का मौसम खत्म होने लगे, तभी से खेत की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए ताकि मिट्टी की नमी (Soil Moisture) लंबे समय तक बनी रहे।

ऐसे क्षेत्रों में बार-बार जुताई (Repeated Ploughing) करने की जरूरत नहीं होती, क्योंकि ज्यादा जुताई करने से मिट्टी की नमी उड़ जाती है और फसल पर असर पड़ सकता है। इसलिए, शाम के समय जुताई करें ताकि रातभर मिट्टी में ठंडक और नमी बनी रहे। फिर अगली सुबह पाटा (Leveling) लगाकर खेत को समतल कर दें। इससे नमी का संरक्षण बेहतर होता है और फसल की शुरुआती वृद्धि भी अच्छी रहती है।

इस तरीके से किसान बिना अतिरिक्त सिंचाई के भी मिट्टी में मौजूद नमी को लंबे समय तक बचा सकते हैं, जिससे गेहूं (Wheat) की असिंचित खेती अधिक सफल और लाभदायक बनती है।

भूमि उपचार

गेहूं की असिंचित विकसित किस्में (Drought-Tolerant Wheat Varieties for Rainfed Areas):-

देश के भारतीय कृषि वैज्ञानिकों (Indian Agricultural Scientists) ने अलग-अलग मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए गेहूं (Wheat) की कई उन्नत और उपयुक्त किस्में (Improved Wheat Varieties) विकसित की हैं। किसान भाई अपने इलाके की मिट्टी, तापमान और वर्षा के अनुसार सही किस्म चुनें, ताकि उन्हें बेहतर उत्पादन और गुणवत्ता मिल सके।

किसान चाहें तो अपने जिले के कृषि विभाग या कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से संपर्क करके यह जानकारी प्राप्त कर सकते हैं कि उनके क्षेत्र में कौन-सी गेहूं की किस्में (Wheat Verity) सबसे उपयुक्त रहेंगी।

इसके अलावा, देश में गेहूं (Wheat) में लगने वाले प्रमुख रोगों से बचाव के लिए भी कई रोग-रोधी (Disease Resistant) किस्में तैयार की गई हैं, जो फसल को सुरक्षित रखती हैं और उत्पादन में स्थिरता बनाए रखती हैं।

नीचे कुछ ऐसी विकसित गेहूं (Wheat) की किस्में और उनकी खासियतें दी जा रही हैं, जिनका चयन किसान भाई अपने क्षेत्र की परिस्थितियों के अनुसार कर सकते हैं।

गेहूं की अन्य विकसित किस्में-

बीज की मात्रा एवं बुआई

संस्तुत गेहूं (Wheat) की किस्मों की बुवाई अक्टूबर के मध्य से लेकर नवंबर की शुरुआत तक तब करें, जब जमीन में पर्याप्त नमी हो। बीज की मात्रा लगभग 100 किग्रा प्रति हेक्टेयर रखें। बुवाई करते समय बीज को 23 सेमी की दूरी पर कूंडों में डालें और सुनिश्चित करें कि बीज के ऊपर मिट्टी की परत 4–5 सेमी से ज्यादा न हो। इस तरह से बोने पर बीज अच्छी तरह अंकुरित होते हैं और फसल का उत्पादन बेहतर रहता है।

गेहूँ (Wheat) के बीज शोधन और रोग नियंत्रण के उपाय

खाद और उर्वरक का उपयोग

बारानी परिस्थितियों में गेहूँ (Wheat) की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 40 किग्रा नत्रजन (Nitrogen), 30 किग्रा फॉस्फेट (Phosphate) और 30 किग्रा पोटाश (Potash) इस्तेमाल करें। यह पूरी मात्रा बुवाई के समय बीज के 2–3 सेमी नीचे, कूंडों में, नाई या चोगें, या फर्टीड्रिल की मदद से डालनी चाहिए।

यदि बाली निकलने से पहले बारिश हो जाती है, तो अतिरिक्त 15–20 किग्रा नत्रजन प्रति हेक्टेयर देने से लाभ होता है। अगर वर्षा नहीं होती है, तो 2% यूरिया का पर्णीय छिड़काव किया जा सकता है, जिससे फसल को पर्याप्त पोषण मिलता है।

असिंचित खेत में गेहूं (Wheat) की सिंचाई

असिंचित क्षेत्रों में यदि तीन बार सिंचाई की सुविधा हो, तो इसे ताजमूल अवस्था, बाली निकलने से पहले और दुग्धावस्था में करें। अगर केवल दो बार सिंचाई संभव हो, तो इसे ताजमूल और पुष्पावस्था में दें। और यदि सिर्फ एक बार सिंचाई संभव हो, तो इसे ताजमूल अवस्था में ही करें।

ऊसर या पानी जल्दी सूखने वाली जमीन में पहली सिंचाई बुवाई के 28–30 दिन बाद करनी चाहिए। इसके बाद बाकी सिंचाई हल्की और जल्दी-जल्दी करके मिट्टी की नमी बनाए रखना जरूरी है, ताकि फसल को पर्याप्त पानी मिलता रहे और मिट्टी सूखने न पाए।

सरकारी योजनाएँ और सहायता | Government Schemes and Support

गेहूँ (Wheat) की फसल में खरपतवार प्रबंधन

गेहूँ की फसल में खरपतवार दो प्रकार के होते हैं

1. सकरी पत्ती वाले खरपतवार: गेहूँसा, जंगली जई।
2. चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार: बथुआ, सेंजी, कृष्णनील, हिरनखुरी, चटरी–मटरी, अकरा-अकरी, जंगली गाजर, गजरी, प्याजी, खरतुआ, सत्यानाशी आदि।

सकरी पत्ती वाले खरपतवार का नियंत्रण:

बुवाई के 20–25 दिन बाद सकरी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए निम्नलिखित हर्बिसाइड का उपयोग करें। रसायन को लगभग 500–600 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर में घोलकर फ्लैटफैन नॉजल से छिड़काव करें।

चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार का नियंत्रण:

बुवाई के 25–30 दिन बाद निम्नलिखित हर्बिसाइड का उपयोग करें। रसायन को लगभग 500–600 लीटर पानी में घोलकर फ्लैटफैन नॉजल से छिड़काव करें।

सकरी और चौड़ी पत्ती दोनों खरपतवार एक साथ नियंत्रित करना:

यदि फसल में दोनों प्रकार के खरपतवार मौजूद हों, तो निम्नलिखित हर्बिसाइड का उपयोग करें। रसायन को 300 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर में घोलकर फ्लैटफैन नॉजल से छिड़काव करें।

इस तरह से सकरी और चौड़ी पत्ती दोनों प्रकार के खरपतवारों को समय पर नियंत्रित करने से गेहूँ की फसल स्वस्थ रहती है और उत्पादन बढ़ता है।

गेहूँ (Wheat) की फसल में प्रमुख रोग और नियंत्रण

गेहूँ (Wheat) में बीमारियाँ, कीट और सूत्रकृमियों के कारण आमतौर पर 5–10% तक उपज की कमी हो जाती है। इसके अलावा दानों और बीज की गुणवत्ता भी खराब होती है। इससे लागत बढ़ती है और उत्पादन कम होने से किसानों की आय पर भी असर पड़ता है। इसलिए बीज उपचार और रोग-प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग सबसे महत्वपूर्ण होता है।

गेहूँ की फसल में जो रोग सबसे अधिक देखे जाते हैं, उनमें शामिल हैं:

खड़ी फसल में अक्सर अल्टरनेरिया, गेरुई, रतुआ और ब्लाइट के प्रकोप से नुकसान होता है। उदाहरण के लिए:

यदि फसल में झुलसा, रतुआ और करनाल बंट तीनों रोगों का संदेह हो, तो प्रोपिकोनाजोल का छिड़काव करना आवश्यक है।

गेहूँ (Wheat) की फसल में प्रमुख कीट

गेहूँ की फसल में कई कीट आते हैं जो उत्पादन और दानों की गुणवत्ता दोनों को प्रभावित करते हैं। प्रमुख कीट निम्नलिखित हैं:

1. दीमक (Termite):
दीमक एक सामाजिक कीट है और यह समूह में रहकर फसल को नुकसान पहुंचाता है। एक कॉलोनी में लगभग 90% श्रमिक, 2–3% सैनिक और एक रानी-राजा होते हैं। श्रमिक दीमक सफेद रंग के, पंखहीन और पीलेपन वाले होते हैं जो फसल की जड़ों और तनों को खाकर हानि करते हैं। दीमक नियंत्रण के लिए विशेषज्ञ की सलाह और तकनीकी उपाय अपनाने जरूरी हैं।

2. गुजिया विविल (Gujia Weevil):
यह कीट भूरे और मटमैले रंग का होता है और सुखी मिट्टी में दरारों और ढेलों में छिप जाता है। यह उग रहे पौधों को जमीन की सतह से काटकर नुकसान पहुंचाता है।

3. माहूँ (Aphid):
माहूँ छोटे हरे कीट होते हैं, जिनके शिशु और वयस्क दोनों पत्तियों और हरी बालियों का रस चूसते हैं। इससे पौधे कमजोर होते हैं और यह मधुश्राव (honeydew) छोड़ते हैं, जिस पर काली फफूंद लग जाती है। यह काली फफूंद प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) में बाधा डालती है और फसल की वृद्धि धीमी कर देती है।

गेहूँ में कीट नियंत्रण के उपाय

1. दीमक (Termite) नियंत्रण:

2. गुजिया (Gujia) नियंत्रण:

3. माहूँ (Aphid) नियंत्रण:

कीट का नामफसल की अवस्थानियंत्रण उपायमात्रा / दरनोट्स
दीमक (Termite)बुआई से पहलेबीजशोधन क्लोरपाइरीफास 20% E.C. या थायोमेथाक्सम 30% F.S.3 मिली/किग्रा बीजबीज को छिड़ककर बोने से दीमक नियंत्रित होते हैं
दीमक (Termite)बुआई से पहलेजैविक – ब्यूवेरिया बैसियाना 1.15%2.5 किग्रा./हे. + 60–70 किग्रा. सड़ी गोबर की खाद8–10 दिन छाया में रखें, आखिरी जुताई में मिट्टी में मिलाएँ
दीमक / गुजियाखड़ी फसलक्लोरपाइरीफास 20% E.C.2.5 ली./हे. (सिंचाई पानी के साथ)सिंचाई के पानी में मिलाकर डालें
माहूँ (Aphid)खड़ी फसलडाइमेथोएट 30% E.C. / ऑक्सीडेमेटन-मिथाइल 25% E.C. / थायोमेथाक्सम 25% W.G.1 ली./50 ग्राम / 50 ग्राम, 750 लीटर पानी मेंपत्तियों और बालियों पर छिड़काव करें
माहूँ (Aphid)खड़ी फसलजैविक – एजाडिरेक्टिन (नीम तेल) 0.15% E.C.2.5 ली./हे.पर्यावरण मित्र विकल्प, रसायन कम उपयोग करें

सारांश (Summary)

क्र.विषयविवरणमात्रा / दरसमय / अवस्थानोट्स
1बीजबुआई के लिए उपयुक्त विकसित किस्में (क्षेत्र अनुसार)100 किग्रा./हे.अक्टूबर के द्वितीय पक्ष – नवम्बर के प्रथम पक्षबीज को 4–5 सेमी. मिट्टी से ढकें
2बीज उपचारअनावृत कण्डुआ, करनाल बंट, अन्य बीज जनित रोग नियंत्रणथीरम 75% W.S. – 2.5 ग्राम / कार्बेन्डाजिम 50% W.P. – 2.5 ग्राम / कार्बाक्सिन 75% W.P. – 2.0 ग्राम / टेबूकोनाजोल 2% D.S. – 1.0 ग्राम प्रति किग्रा. बीजबुआई से पूर्वबीज को 2–3 बार धोकर सुखा लें
3उर्वरकनत्रजन, फास्फेट, पोटाशN – 40 किग्रा., P – 30 किग्रा., K – 30 किग्रा./हे.बुआई के समयबुआई के 2–3 सेमी. नीचे डालें; वर्षा न होने पर 2% यूरिया पर्णीय छिड़काव
4सिंचाईअसिंचित खेत में1–3 सिंचाई (उपलब्धता अनुसार)ताजमूल अवस्था, बाली निकलने से पहले, दुग्धावस्थाऊसर भूमि में हल्की और जल्दी सिंचाई करें
5खरपतवार नियंत्रणसकरी पत्ती: गेहूँसा, जंगली जई; चौड़ी पत्ती: बथुआ, सेंजी, कृष्णनील, हिरनखुरी, आदिविभिन्न खरपतवारनाशी रसायन (जैसे: आइसोप्रोटयूरान, सल्फोसल्फ्यूरान, पेंडिमेथलीन, मेट्रिब्युजिन)बुआई के 3–30 दिन बादपानी की मात्रा रसायन अनुसार रखें; फ्लैटफैन नाजिल से छिड़काव करें
6रोग नियंत्रणपर्ण रतुआ / भूरा रतुआ, धारीदार रतुआ, कंडुआ, झुलसा, लीफ ब्लाइट, फ्लैग समट, हिल बंट, फुट राँटमैन्कोजेब 2 किग्रा./हे. या प्रोपिकोनाजोल 25% E.C. – 0.5 ली./1000 ली. पानीरोग प्रकोप परबीज उपचार और प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें
7कीट नियंत्रणदीमक, गुजिया, माहूँदीमक: बीजशोधन – क्लोरपाइरीफास 20% E.C. / थायोमेथाक्सम 30% F.S. – 3 मिली /किग्रा. बीज; खड़ी फसल – क्लोरपाइरीफास 2.5 ली./हे.बुआई से खड़ी फसल तकजैविक विकल्प: ब्यूवेरिया बैसियाना 1.15% – 2.5 किग्रा./हे., एजाडिरेक्टिन (नीम तेल) 0.15% – 2.5 ली./हे.

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

गेहूं की कौन सी किस्में असिंचित क्षेत्रों में अधिक उपज देती हैं?

असिंचित क्षेत्रों में गेहूं की कुछ प्रमुख किस्में हैं:
के-8027 (मगहर): यह किस्म 140-145 दिनों में पककर तैयार होती है और प्रति हेक्टेयर 30-35 क्विंटल उपज देती है।
के-8962 (इन्द्रा): 90-110 दिनों में पककर तैयार होती है और प्रति हेक्टेयर 25-35 क्विंटल उपज देती है।
के-9465 (गोमती): 90-110 दिनों में पककर तैयार होती है और प्रति हेक्टेयर 28-35 क्विंटल उपज देती है।
के-9644: 105-110 दिनों में पककर तैयार होती है और प्रति हेक्टेयर 35-40 क्विंटल उपज देती है।
एच.डी.आर.-77: 105-115 दिनों में पककर तैयार होती है और प्रति हेक्टेयर 25-35 क्विंटल उपज देती है।

गेहूं की किस्मों में कौन सी किस्में उच्च गुणवत्ता वाली चपाती देती हैं?

कुछ उच्च गुणवत्ता वाली चपाती देने वाली गेहूं की किस्में हैं:
पूसा व्हीट 3237 (एच.डी.3237): यह किस्म चपाती बनाने योग्य है।
के-9644: यह किस्म चपाती बनाने योग्य है।
राज-4120: यह किस्म चपाती बनाने योग्य है।

गेहूं की किस्मों में कौन सी किस्में उच्च प्रोटीन वाली हैं?

कुछ उच्च प्रोटीन वाली गेहूं की किस्में हैं:
एच.डी.-2888: इसमें प्रोटीन की मात्रा 13.2% है।
के-9644: इसमें प्रोटीन की मात्रा 13.0% है।
राज-4120: इसमें प्रोटीन की मात्रा 12.5% है।

गेहूं की किस्मों में कौन सी किस्में छोटे पौधों वाली हैं?

कुछ छोटे पौधों वाली गेहूं की किस्में हैं:
के-8962 (इन्द्रा): पौधे की ऊँचाई 110-120 से.मी. है।
के-9465 (गोमती): पौधे की ऊँचाई 90-100 से.मी. है।
के-9644: पौधे की ऊँचाई 95-110 से.मी. है।
एच.डी.आर.-77: पौधे की ऊँचाई 90-95 से.मी. है।
एच.डी.-2888: पौधे की ऊँचाई 100-110 से.मी. है।

गेहूं की किस्मों में कौन सी किस्में कम समय में पकती हैं?

कुछ कम समय में पकने वाली गेहूं की किस्में हैं:
के-8962 (इन्द्रा): यह किस्म 90-110 दिनों में पककर तैयार होती है।
के-9465 (गोमती): यह किस्म 90-110 दिनों में पककर तैयार होती है।
के-9644: यह किस्म 105-110 दिनों में पककर तैयार होती है।
एच.डी.आर.-77: यह किस्म 105-115 दिनों में पककर तैयार होती है।
एच.डी.-2888: यह किस्म 120-125 दिनों में पककर तैयार होती है।

गेहूं की किस्मों में कौन सी किस्में लम्बे समय तक पकती हैं?

कुछ लम्बे समय तक पकने वाली गेहूं की किस्में हैं:
डब्लू.एच.1142: यह किस्म 150-156 दिनों में पककर तैयार होती है।
डब्लू.एच.1080: यह किस्म 151 दिनों में पककर तैयार होती है।
राज-4120: यह किस्म 119 दिनों में पककर तैयार होती है।

गेहूं की किस्मों में कौन सी किस्में उच्च उपज देती हैं?

कुछ उच्च उपज देने वाली गेहूं की किस्में हैं:
पूसा व्हीट 3237 (एच.डी.3237): यह किस्म प्रति हेक्टेयर 48.4 क्विंटल उपज देती है।
ए.ए.आई.डब्लू.-10: यह किस्म प्रति हेक्टेयर 45-50 क्विंटल उपज देती है।
डब्लू.एच.1142: यह किस्म प्रति हेक्टेयर 48.1 क्विंटल उपज देती है।
डी.बी.डब्लू.110: यह किस्म प्रति हेक्टेयर 39.0 क्विंटल उपज देती है।
राज-4120: यह किस्म प्रति हेक्टेयर 47.0 क्विंटल उपज देती है।

गेहूं की किस्मों में कौन सी किस्में रोग प्रतिरोधी हैं?

कुछ रोग प्रतिरोधी गेहूं की किस्में हैं:
के-9644: यह किस्म आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र के लिए उपयुक्त है।
एच.डी.आर.-77: यह किस्म असम, बिहार, पश्चिम बंगाल के लिए उपयुक्त है।
एच.डी.-2888: यह किस्म रतुआ अवरोधी है और असम, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल के लिए उपयुक्त है।
पूसा व्हीट 3237 (एच.डी.3237): यह किस्म पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी है और चपाती बनाने योग्य है।
पूसा व्हीट 1612 (एच.डी.1612): यह किस्म पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी है और ताप सहिष्णु है।

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